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नर्क भी यहीं है और देवी भी…,काजोल की दमदार परफॉरमेंस ने फिल्म में बांधा समा

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अजय देवगन और आर माधवन स्टारर फिल्म ‘शैतान’ के हिट होने के बाद अब इस ब्रह्मांड को आगे बढ़ाते हुए फिल्म ‘मां’ रिलीज हो गई है। काजोल स्टारर इस फिल्म का ट्रेलर आते ही हिट हो गया। फिल्म के ट्रेलर में काजोल अपनी बेटी की जान बचाने के लिए अदृश्य शक्तियों से लड़ती और मां काली का आशीर्वाद लेती नजर आईं। एक्ट्रेस ने इस फिल्म का जमकर प्रमोशन किया और दर्शकों के काफी उत्साह और इंतजार के बाद आखिरकार फिल्म सिनेमाघरों में आ ही गई।

क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म ‘मां’ की कहानी पश्चिम बंगाल के चंदरपुर गांव से शुरू होती है। यहां एक बड़ी हवेली के मालिक की पत्नी की डिलीवरी हो रही होती है। वहां हवेली में मां काली की महापूजा चल रही होती है। महिला एक बेटे को जन्म देती है, जिसकी खबर उसके पति समेत पूजा में शामिल लोगों को दी जाती है। सभी खुश होते हैं। लेकिन फिर पता चलता है कि उसे जुड़वा बच्चे होने वाले हैं। दूसरा बच्चा एक बेटी होती है, जो सभी के दुख का कारण बनती है और उसकी बलि दे दी जाती है। हवेली के पीछे खंडहर में एक पेड़ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उस पर एक राक्षस रहता है। राक्षस गांव वालों पर हमला करने वाला होता है, लेकिन लड़की की मौत के बाद रुक जाता है।

अब इस घटना को 40 साल बीत चुके हैं। उस रात पैदा हुआ लड़का शुभांकर (इंद्रनील सेनगुप्ता) अब बड़ा हो चुका है। शुभांकर अपनी पत्नी अंबिका (काजोल) और 12 साल की बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) के साथ कोलकाता में रहता है। उसने अपने गांव चंद्रपुर से दूरी बना ली है और परिवार से यह बात छिपाई है कि वह एक बेटी का पिता है। दूसरी तरफ उसकी बेटी ने भी कभी चंद्रपुर नहीं देखा। ऐसा क्यों है, यह आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगा। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब अंबिका और श्वेता चंद्रपुर पहुंचती हैं और एक पेड़ राक्षस सहित कई मुश्किलों का सामना करती हैं। अब श्वेता की जान खतरे में है और अंबिका को उसे बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी होगी। यह राक्षस मां काली के आशीर्वाद से ही मरेगा। ऐसे में अंबिका मां काली की शक्ति को कैसे जगाएगी और कैसे अपनी बेटी को बचाएगी? फिल्म कैसी है?

इसमें कोई शक नहीं है कि शैतान यूनिवर्स में बनी ‘मान’ एक कमज़ोर फिल्म है। अगर आपने शैतान फिल्म देखी है, तो आपको भी यह पसंद आई होगी। कमियों के बावजूद, यह फिल्म एक बेहतरीन कहानी लेकर हम सबके सामने आई, जो बॉलीवुड में पहले शायद ही देखने को मिले। उस फिल्म में अजय देवगन, आर माधवन, जानकी बोदीवाल और ज्योतिका जैसे बेहतरीन कलाकार थे। यहाँ आपके पास काजोल हैं, जो फिल्म को अपने कंधों पर उठा रही हैं। उनका साथ दे रहे हैं इंद्रनील सेनगुप्ता, जिनका रोल काफी छोटा है, और रोनित रॉय। फिल्म में कलाकारों का अभिनय अच्छा है। लेकिन इसमें कहानी और स्क्रीनप्ले की कमी है।

निर्देशक विशाल फुरिया को शैतान यूनिवर्स को प्रमोट करने का काम दिया गया था, जिसे उन्होंने पूरे नंबरों से पास नहीं किया। फिल्म की कहानी अजीत जगताप, अमिल खान खान और साईविन क्वाड्रास ने लिखी है। यह आपको अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘परी’ और शरवरी वाघ की फिल्म ‘मुंज्या’ की याद दिलाती है। फिल्म बेहद धीमी है। इसका पहला भाग आपके धैर्य की परीक्षा लेता है, लेकिन फिर भी किसी तरह फिल्म आपको बांधे रखती है। दूसरे भाग में फिल्म गति पकड़ती है और इसकी परतें खुलने लगती हैं। फिल्म में कई सारे डरावने दृश्य हैं, जो बीच-बीच में आपके दिल की धड़कनें बढ़ा देते हैं। इसका क्लाइमेक्स भी अच्छा है। हालांकि इसमें से एक पूरा सीन काटा जा सकता था, जो काफी अजीब और समझ से परे है। फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है।

काजोल ने इस फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया है। 90 के दशक की टॉप हीरोइन रहीं काजोल अपने अभिनय में कभी असफल नहीं होती हैं। हालांकि फिल्मों की कहानी और स्क्रीनप्ले हमेशा उनकी सफलता के आड़े आते हैं। इस फिल्म में इंद्रनील सेनगुप्ता और सुरजयाशिखा दास, गोपाल सिंह, रूपकथा चक्रवर्ती, दिब्येंदु भट्टाचार्य जैसे कलाकार अहम भूमिका में हैं। सभी ने अच्छा काम किया है। रोनित रॉय फिल्म के छुपे रुस्तम हैं। उनका काम अच्छा है। हालांकि उनका किरदार काफी प्रेडिक्टेबल है। खेरिन शर्मा ने अच्छा काम किया है। हालाँकि अधिकांश दृश्यों में वह ऐसी चिढ़ाने वाली आवाज में बात करती है जो आपके कानों में चुभती है।

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