फिल्मों में डबल रोल का कॉन्सेप्ट काफी समय से चला आ रहा है। हेमा मालिनी की ‘सीता और गीता’, शाहरुख खान की ‘डुप्लीकेट’, दिलीप कुमार की ‘राम और श्याम’ और सलमान खान की जुड़वा फिल्मों को दर्शकों ने थिएटर में बैठकर एक टिकट पर दोगुना मजा लिया। उन्हें हमेशा अपने पसंदीदा सितारों को एक ही स्क्रीन पर अलग-अलग किरदारों में देखने का मौका मिलता है। पिछले साल शाहरुख खान ने जहां फिल्म ‘जवान’ में पिता और बेटे का किरदार निभाया था, वहीं अब कृति सेनन का नाम भी डबल रोल निभाने की सूची में शामिल हो गया है। वह अपनी आने वाली फिल्म ‘दो पत्ती’ में डबल रोल निभाती नजर आएंगी।
क्या आप जानते हैं कि भारत में डबल रोल का कॉन्सेप्ट किसने पेश किया था? पौराणिक फिल्म में डबल रोल निभाने वाले पहले अभिनेता कौन थे? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं 107 साल पुरानी उस सुपरहिट फिल्म का इतिहास, जिसमें राम और सीता एक ही अभिनेता थे।
1917 में बनी एक फिल्म में इस अभिनेता ने डबल रोल निभाया था
पहली फिल्म में डबल रोल निभाने वाले अभिनेता कोई और नहीं बल्कि अन्ना सालुंके थे, जिन्होंने भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ में भी काम किया था। अपने करियर के शुरुआती दौर में उन्होंने हीरो के साथ-साथ हीरोइन की भूमिका भी निभाई। दादा साहब फाल्के की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ में रानी तारामती का किरदार निभाने के बाद उन्होंने स्क्रीन पर माता सीता और भगवान श्री राम का किरदार भी निभाया। 1917 में ‘लंका-दहन’ नाम से एक फिल्म रिलीज हुई थी। यह फिल्म महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित हिंदू महाकाव्य ‘रामायण’ पर आधारित थी। इस फिल्म का निर्देशन दादा साहब फाल्के ने खुद किया था। राजा हरिश्चंद्र के बाद निर्देशक की यह दूसरी फीचर फिल्म थी। राजा हरिश्चंद्र की तरह ‘लंका-दहन’ भी एक मूक फिल्म थी।
अन्ना सालुंके को सीता का किरदार क्यों निभाना पड़ा?
भारत की आज़ादी से पहले महिलाओं का कमर्शियल फ़िल्मों में काम करना या इस तरह से पर्दे पर अपनी कला का प्रदर्शन करना गलत माना जाता था. यही वजह थी कि उस समय महिला किरदारों को फ़िल्म के अभिनेता ही निभाते थे. ‘लंका दहन’ में श्रीराम की भूमिका निभाने के बाद उन्होंने उनकी पत्नी माता सीता की भूमिका भी निभाई. वे भारतीय सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने ज़्यादातर फ़िल्मों में अभिनेता और अभिनेत्री दोनों की भूमिकाएँ निभाईं. दादा साहब फाल्के ने अभिनेता को ही नायिका क्यों बनाया? अन्ना सालुंके को फ़िल्मों में नायिका के तौर पर लेना दादा साहब फाल्के की पसंद नहीं थी, बल्कि एक मजबूरी थी.
दरअसल, दादा साहब फाल्के और अन्ना सालुंके की पहली मुलाक़ात एक रेस्टोरेंट में हुई थी, जहाँ कथित तौर पर अभिनेता वेटर का काम करते थे. दादा साहब फाल्के उस समय एक लड़की की तलाश में थे, जिसे वे अपनी फ़िल्म में ले सकें. लेकिन उस समय किसी भी महिला को फ़िल्मों में आने की इजाज़त नहीं थी. ऐसे में दादा साहब फाल्के की नज़र अन्ना सालुंके पर पड़ी, जिनकी लंबाई और नैन-नक्श ऐसे थे कि निर्देशक को वह हीरोइन के रोल के लिए एकदम सही लगीं। इसी तरह दादा साहब फाल्के ने 10 रुपये में काम करने वाले सालुंके को 15 रुपये फीस देकर फिल्मों में आने के लिए राजी कर लिया और एक अभिनेता के तौर पर उनका सफ़र शुरू हो गया।