भारत और इंग्लैंड के बीच खेली जा रही 5 मैचों की टेस्ट सीरीज से पहले एक बड़ा फैसला लिया गया, जिसने क्रिकेट जगत को चौंका दिया है। ईसीबी (इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड) और बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) ने आपसी सहमति से “पटौदी ट्रॉफी” का नाम बदलकर “एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी” कर दिया है। यह फैसला जैसे ही सामने आया, क्रिकेट प्रेमियों और दिग्गज खिलाड़ियों में मिला-जुला रिएक्शन देखने को मिला।
कपिल देव का कड़ा रुख
भारत को 1983 में वर्ल्ड कप जिताने वाले कप्तान कपिल देव ने इस फैसले पर अजीबोगरीब और सख्त प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा:
“इतिहास को यूं मिटाना ठीक नहीं है। पटौदी ट्रॉफी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उस दौर का सम्मान है जब भारतीय क्रिकेट ने टेस्ट क्रिकेट में आत्मनिर्भरता सीखी थी। ट्रॉफी के पीछे की विरासत को एक फैसले से बदलना बहुत हल्कापन दिखाता है।”
कपिल ने यह भी जोड़ा कि वह तेंदुलकर और एंडरसन जैसे खिलाड़ियों का बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना सही नहीं है।
क्या है पटौदी ट्रॉफी?
पटौदी ट्रॉफी की शुरुआत 2007 में इंग्लैंड में खेली गई टेस्ट सीरीज के दौरान हुई थी। इसका नाम मंसूर अली खान पटौदी के सम्मान में रखा गया था, जो भारतीय टेस्ट क्रिकेट के पहले युवा और करिश्माई कप्तान थे। वे खुद इंग्लैंड के लिए भी खेल चुके थे, और उनके नेतृत्व में भारत ने विदेशी ज़मीं पर आत्मविश्वास से खेलना सीखा था।
एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी: नई पहचान
ईसीबी और बीसीसीआई ने यह ट्रॉफी भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और इंग्लैंड के दिग्गज तेज़ गेंदबाज़ जेम्स एंडरसन के नाम पर समर्पित की है।
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तेंदुलकर ने इंग्लैंड के खिलाफ सबसे ज़्यादा टेस्ट रन बनाए हैं।
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एंडरसन, भारत के खिलाफ सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले विदेशी गेंदबाज हैं और टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले तेज़ गेंदबाज़ भी हैं।
सोशल मीडिया पर तीखी बहस
इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है।
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कुछ लोगों का कहना है कि इतिहास का सम्मान करते हुए पुराने नाम को बरकरार रखना चाहिए था।
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जबकि कुछ युवा प्रशंसकों का मानना है कि नई पीढ़ी के दिग्गजों को सम्मान देना भी ज़रूरी है।