अमेरिका ने वीज़ा नियमों में बड़ा बदलाव किया है। उन्होंने गाजा पट्टी पर आने वाले किसी भी विदेशी नागरिक पर नया कानून लागू कर दिया है। नए नियम के अनुसार, 1 जनवरी 2007 के बाद गाजा पट्टी की यात्रा करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक के वीजा आवेदन के दौरान सोशल मीडिया अकाउंट की जांच की जाएगी। यह निर्णय अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा सचिव मार्को रुबियो के निर्देशन में लिया गया है। यह नियम सभी प्रकार के वीज़ा पर लागू होता है, चाहे वे आप्रवासी हों या गैर-आप्रवासी। इसमें छात्र वीज़ा, पर्यटक वीज़ा और राजनयिक यात्राएं भी शामिल हैं। इसके अलावा, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के कर्मचारी और स्वयंसेवक जिन्होंने गाजा में काम किया है। ये लोग इस नीति के अंतर्गत आएंगे।
सुरक्षा के नाम पर डिजिटल निगरानी
नई नीति का प्राथमिक उद्देश्य गाजा से लौटने वालों के लिए संभावित सुरक्षा जोखिमों की पहचान करना है। यदि किसी व्यक्ति की सोशल मीडिया या डिजिटल गतिविधियों में ऐसी सामग्री पाई जाती है जिसे अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता है, तो उनके वीज़ा आवेदन को अंतर-एजेंसी समीक्षा के लिए भेजा जाएगा। इस मामले पर सचिव मार्को रुबियो ने कहा कि हमने 2025 की शुरुआत से 300 से अधिक ऐसे वीजा रद्द कर दिए हैं, जिनमें कई छात्र वीजा भी शामिल हैं।
इजराइल के आलोचकों पर निशाना?
रिपोर्टों के अनुसार, कई विदेशी छात्रों ने गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाई की आलोचना की। उनके वीज़ा रद्द कर दिए गए हैं। इस कदम से अमेरिकी विदेश नीति की आलोचना पर भी अंकुश लगाने का संकेत मिलता है। जबकि अमेरिकी संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, चाहे उसकी वीज़ा स्थिति कुछ भी हो।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय मुख्य लक्ष्य बना
ट्रम्प प्रशासन ने विशेष रूप से हार्वर्ड विश्वविद्यालय को निशाना बनाया है। गाजा संघर्ष के बाद हार्वर्ड में हुए विरोध प्रदर्शनों के आधार पर प्रशासन ने विश्वविद्यालय से नीतिगत बदलावों की मांग की, जो इस प्रकार हैं।
सकारात्मक कार्रवाई (सकारात्मक आरक्षण) का उन्मूलन।
उन छात्रों को बाहर करना जो “अमेरिकी मूल्यों के विरोधी” हो सकते हैं।
परिसर में यहूदी विरोधी गतिविधियों पर नियंत्रण।
इन मांगों को अस्वीकार करने के परिणामस्वरूप 2 बिलियन डॉलर की संघीय धनराशि रोक दी गई है। होमलैंड सुरक्षा विभाग ने तो यहां तक कहा कि हार्वर्ड अब अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की मेजबानी के लिए उपयुक्त नहीं है।
क्या यह नीति संविधान की भावना के विरुद्ध है?
संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठनों और कई अमेरिकी शिक्षाविदों ने इस कदम को ‘डिजिटल सेंसरशिप’ और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन’ माना है। उनका मानना है कि यह नीति अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है। यह छात्रों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को चुप कराने का प्रयास है। विदेशी आवेदकों को भय के माहौल में डालता है।