जीवन की भागदौड़, प्रतियोगिता और रोज़मर्रा के तनाव भरे माहौल में अक्सर हम वो मूल भावना भूल जाते हैं जो इंसान को इंसान बनाती है—प्यार। यह शब्द जितना सरल लगता है, इसकी गहराई उतनी ही अथाह है। और इसी प्यार की एक अनमोल सच्चाई है—प्यार वह खजाना है जो बांटने से बढ़ता है। जितना बांटोगे, उतना ही समृद्ध बनोगे।
प्यार कोई सौदा नहीं, बल्कि आत्मा की ज़रूरत है
हम अक्सर सोचते हैं कि जो हमें मिलेगा, वही हम दूसरों को देंगे। लेकिन प्यार की दुनिया इससे अलग है। यह कोई लेन-देन नहीं, बल्कि भावनाओं की गहराई और आत्मा की सम्पूर्णता से जुड़ा एक अनुभव है। जब हम बिना किसी शर्त, बिना किसी अपेक्षा के किसी से प्रेम करते हैं, तो वह प्रेम कहीं और नहीं बल्कि सबसे पहले हमें ही भीतर से पूर्ण और समृद्ध करता है।
क्यों कहा जाता है कि प्यार बांटने से बढ़ता है?
आपने देखा होगा कि जब आप किसी को एक मुस्कान देते हैं, तो वो मुस्कान लौटकर आपके पास वापस आती है। जब आप किसी को सच्चा अपनापन, आदर या सहारा देते हैं, तो आप न केवल उस इंसान की ज़िंदगी को सुंदर बनाते हैं, बल्कि खुद को भी एक बेहतर इंसान के रूप में महसूस करते हैं।प्यार को रोक कर रखना यानी खुद को संकीर्णता में बांधना है। जैसे पानी बहता है, वैसे ही प्रेम भी बहना चाहता है। जब आप उसे रोकते हैं, तो वह बासी हो जाता है। लेकिन जब आप उसे बहने देते हैं—बांटते हैं—तो वह शुद्ध, सजीव और ऊर्जावान हो जाता है।
प्यार बांटने से आत्मिक और मानसिक लाभ
आत्मिक शांति: जब हम प्रेम बांटते हैं, बिना किसी अपेक्षा के, तो भीतर एक सुकून पैदा होता है। ये वही सुकून है जो हमें गहरी नींद देता है और आत्मा को हल्का करता है।
तनाव में कमी: रिसर्च बताती हैं कि प्रेम और करुणा जैसे भाव व्यक्त करने से तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल में गिरावट आती है और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
सकारात्मक सोच: जब आप दूसरों के लिए अच्छा सोचते और करते हैं, तो आप नकारात्मकता से दूर हो जाते हैं। यही सकारात्मकता आपके विचारों और कर्मों में परिलक्षित होती है।
सम्बंधों में मिठास: प्यार देने वाला व्यक्ति रिश्तों में कभी अकेला नहीं होता। वो जहां भी जाता है, अपनापन बिखेरता है, और लोग उसे सहजता से स्वीकार करते हैं।
प्यार की संकीर्ण परिभाषा से बाहर आइए
अक्सर हम ‘प्यार’ को सिर्फ रोमांटिक संबंधों से जोड़कर देखते हैं, लेकिन यह उससे कहीं अधिक विस्तृत है। यह माता-पिता का स्नेह, दोस्तों का अपनापन, समाज के प्रति सहानुभूति, पशु-पक्षियों से करुणा और यहाँ तक कि प्रकृति के प्रति सम्मान तक में प्रकट होता है।जब आप किसी भूखे को खाना खिलाते हैं, किसी वृद्ध की सहायता करते हैं, किसी परेशान इंसान को समय देते हैं या किसी के दुःख में उसका सहारा बनते हैं—तो आप प्रेम बांटते हैं। यह बांटने की प्रक्रिया आपको एक उच्च मानसिक स्थिति देती है, जिसे शब्दों में बाँधना कठिन है।
प्यार के माध्यम से सामाजिक समृद्धि
समाज में जो हिंसा, वैमनस्य, और टूटते रिश्तों का माहौल है, उसका मूल कारण प्रेम की कमी है। यदि हर व्यक्ति अपने हिस्से का थोड़ा-सा प्यार भी समाज में बांट दे, तो दुनिया बहुत बेहतर हो सकती है। एक दूसरे के लिए सम्मान, संवेदनशीलता और अपनापन ही हमें एकता की डोर में बांधता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण: क्यों ईश्वर प्रेम में है?
हर धर्म, चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम, ईसाई या सिख—प्रेम को सर्वोपरि मानता है। श्रीकृष्ण की रासलीला, ईसा मसीह का बलिदान, सूफी संतों की कविताएं—हर ओर प्रेम ही प्रेम है। यही कारण है कि कहा गया है “ईश्वर प्रेम हैं और प्रेम ही ईश्वर है।”जब आप प्रेम करते हैं, तो आप ईश्वर के सबसे निकट होते हैं। उस स्थिति में ना आपके भीतर द्वेष होता है, ना ईर्ष्या, ना लालच और ना ही अहंकार। तब आप सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होते हैं।
प्यार कोई खर्च करने वाली चीज़ नहीं, यह तो वो संपत्ति है जिसे जितना लुटाओ, उतना ही बढ़ता है। इसमें घाटा नहीं, सिर्फ मुनाफा है—और वह भी ऐसा मुनाफा जो आपकी आत्मा, मन, संबंध और समाज को समृद्ध करता है।तो आइए, 30 मई 2025 के इस विशेष दिन पर संकल्प लें कि हम प्रेम को सिर्फ पाने की चीज़ नहीं, बांटने की भावना से देखेंगे।क्योंकि सच यही है—प्यार वह खजाना है जो बांटने से बढ़ता है। जितना बांटोगे, उतना समृद्ध बनोगे।