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प्रेम क्यों है मानव जीवन की सबसे बड़ी ज़रूरत ? 3 मिनट के वीडियो में ओशो से जाने हर व्यक्ति के जीवन में इसका महत्त्व

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प्रेम… एक ऐसा शब्द जो सुनते ही दिल को सुकून देने लगता है। चाहे वह माँ की ममता हो, पिता की छाया, दोस्ती की गर्माहट, या जीवनसाथी की आत्मीयता—प्रेम हर रूप में हमारे जीवन को संवारता है, संजोता है और सशक्त बनाता है। लेकिन सवाल यह है कि इंसान के जीवन में प्रेम की ज़रूरत क्यों है? क्या यह केवल भावनाओं तक सीमित है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक और सामाजिक आधार भी है? आइए इस लेख में हम विस्तार से समझते हैं कि प्रेम हमारे जीवन में कितना अनिवार्य और प्रभावशाली है।

1. प्रेम – जीवन की मूलभूत आवश्यकता
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेले रहकर न तो खुश रह सकता है और न ही पूर्ण जीवन जी सकता है। प्रेम उसकी भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करता है। यह उसे सुरक्षा, अपनापन और आत्मीयता का अनुभव कराता है। जब हमें किसी का साथ, समझ और समर्थन मिलता है, तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और हम जीवन की कठिनाइयों से बेहतर तरीके से निपट सकते हैं।

2. मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन का स्रोत
प्रेम केवल दिल की बात नहीं है, यह हमारे दिमाग और मानसिक स्वास्थ्य से भी गहराई से जुड़ा होता है। जब हम प्रेम में होते हैं, या किसी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, तो शरीर में ऑक्सिटोसिन (Oxytocin) जैसे हार्मोन का स्त्राव होता है, जिसे ‘लव हार्मोन’ कहा जाता है। यह हार्मोन तनाव कम करता है, चिंता को घटाता है और खुशी की अनुभूति देता है।जो लोग प्रेमपूर्ण रिश्तों में रहते हैं, उनमें डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी की संभावना कम होती है। बच्चों में माता-पिता का प्यार, युवाओं में दोस्तों और जीवनसाथी का साथ, और बुजुर्गों में परिवार का प्रेम—हर आयु वर्ग में मानसिक संतुलन का आधार प्रेम ही होता है।

3. सकारात्मकता और जीवन में उद्देश्य का अहसास
जब कोई व्यक्ति यह जानता है कि वह किसी के लिए खास है, उसके जीवन में उसकी अहमियत है, तो उसका आत्म-मूल्य बढ़ता है। उसे लगता है कि उसका अस्तित्व मायने रखता है। यही भावना उसे सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर करती है। प्रेम में रहने वाला व्यक्ति अक्सर दूसरों की मदद करता है, समाज के प्रति उत्तरदायी बनता है और जीवन को अधिक गहराई से समझने की कोशिश करता है।

4. रिश्तों को जोड़ने और बनाए रखने का आधार
परिवार, मित्रता, विवाह—हर रिश्ता प्रेम के धागे से ही बुना गया है। अगर इसमें प्यार न हो, तो संबंध केवल औपचारिक रह जाते हैं। प्रेम में त्याग होता है, समझदारी होती है, और सबसे अहम—क्षमा होती है। यही गुण रिश्तों को समय के साथ और भी मजबूत बनाते हैं। प्रेम हमें सहनशील बनाता है, झुकना सिखाता है और दूसरों की भावनाओं को समझने में सक्षम बनाता है।

5. दुख में राहत और सुख में सहभागी
जीवन में हर किसी को कभी न कभी दुख, हानि या असफलता का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में अगर कोई प्रेम से भरा हाथ साथ हो, तो सबसे बड़ी पीड़ा भी कम लगती है। प्रेम हमें भावनात्मक सहारा देता है और टूटने से बचाता है। वहीं जब जीवन में कोई सफलता मिलती है, और उसे किसी अपने के साथ बाँटा जाए, तो वह सुख कई गुना बढ़ जाता है।

6. प्रेम – आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग
भारतीय संस्कृति में प्रेम को ईश्वर से जोड़ने का माध्यम माना गया है। राधा-कृष्ण का प्रेम, मीरा की भक्ति, शिव-पार्वती का समर्पण—ये केवल प्रेम कहानियाँ नहीं बल्कि आत्मिक चेतना का विस्तार हैं। जब इंसान प्रेम को त्याग, सेवा और समर्पण की भावना से जोड़ता है, तो वह स्वयं को ईश्वर के निकट पाता है। प्रेम ही वह पुल है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ सकता है।

7. प्रेम में ही छिपा है मानवता का सार
आज के युग में जब दुनिया भाग-दौड़ और तनाव से जूझ रही है, तब प्रेम ही वह ऊर्जा है जो समाज को एकजुट रख सकती है। प्रेम में कोई भेदभाव नहीं होता—न जाति का, न धर्म का, न भाषा का। यह वह भावना है जो सभी दीवारों को तोड़कर मानवता को जोड़ने का काम करती है। करुणा, दया, सहयोग, सेवा—ये सब प्रेम की ही शाखाएं हैं।

प्रेम कोई विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है। यह मनुष्य के जीवन का आधार, उसकी आत्मा की खुराक और सामाजिक अस्तित्व का मूल है। प्रेम के बिना जीवन एक सूखी नदी की तरह है, जिसमें न कोई प्रवाह होता है और न कोई गहराई। यदि हम प्रेम को समझें, स्वीकारें और बाँटें, तो न केवल हमारा जीवन सुंदर होगा, बल्कि समाज भी और अधिक शांतिपूर्ण, सहनशील और सशक्त बन पाएगा।

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