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प्रेम बनता है इंसान की कमजोरी या सबसे बड़ा आत्मबल ? वायरल वीडियो में ओशो से जाने प्यार की सच्चाई

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प्रेम, जिसे अक्सर जीवन का सबसे सुंदर अनुभव कहा जाता है, इंसान के व्यक्तित्व और मानसिक शक्ति पर गहरा प्रभाव डालता है। यह सवाल अक्सर मन में आता है कि प्रेम में इंसान कमजोर हो जाता है या उसका आत्मबल बढ़ता है। इस पर ध्यान केंद्रित करते हुए महान विचारक और ध्यान शिक्षक ओशो का दृष्टिकोण बेहद रोचक और प्रासंगिक है।

ओशो कहते हैं कि प्रेम कभी भी कमजोरी नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के भीतर की ऊर्जा और चेतना को जागृत करने का माध्यम है। जब कोई व्यक्ति सच्चे प्रेम में होता है, तो उसका जीवन केवल भौतिक या सामाजिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी समृद्ध होता है। प्रेम में वह व्यक्ति अपने आप को पूरी तरह व्यक्त कर सकता है, अपने डर और असुरक्षाओं का सामना कर सकता है। यही कारण है कि प्रेम सही दिशा में होने पर आत्मबल को बढ़ाता है, न कि कमज़ोरी।

हालांकि, ओशो यह भी चेतावनी देते हैं कि असली प्रेम और आत्म-संयम रहित प्रेम में अंतर करना जरूरी है। जब कोई व्यक्ति अपने प्रेम में इतना डूब जाता है कि अपनी पहचान, सोच और निर्णय क्षमता खो देता है, तब प्रेम उसे कमजोर बना सकता है। ऐसे प्रेम में व्यक्ति अपनी खुशियों और मानसिक स्थिरता को दूसरों की अपेक्षाओं के हाथ में छोड़ देता है। ओशो इसे ‘निर्भरता का प्रेम’ कहते हैं, जो असल में आत्मबल की कमी को जन्म देता है।

ओशो के अनुसार, प्रेम की असली शक्ति तब प्रकट होती है जब यह स्वतंत्रता और समझदारी के साथ जुड़ा हो। प्रेम का मतलब केवल किसी के लिए भावनाओं का त्याग करना नहीं है, बल्कि यह अपने आप को जानने, समझने और अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करने का अवसर है। प्रेम में संतुलन और आत्म-जागरूकता होने पर व्यक्ति न केवल मानसिक रूप से मजबूत बनता है, बल्कि अपने रिश्तों में भी गहरा समझ और सहानुभूति विकसित करता है।

एक और महत्वपूर्ण दृष्टिकोण जो ओशो साझा करते हैं, वह है आत्म-प्रेम और आत्म-सम्मान का महत्व। जब व्यक्ति खुद से प्रेम करता है, अपनी कमजोरियों और ताकतों को स्वीकार करता है, तभी वह दूसरों के प्रति प्रेम को सच्चाई और सम्मान के साथ निभा सकता है। ऐसे में प्रेम व्यक्ति को कमजोर नहीं बनाता, बल्कि उसके आत्मबल को और प्रगाढ़ करता है।ओशो का यह भी मानना है कि प्रेम केवल रोमांटिक संबंधों तक सीमित नहीं है। यह दोस्ती, परिवार और समाज के प्रति संवेदनशीलता में भी व्यक्त होता है। जब व्यक्ति प्रेम को एक सकारात्मक ऊर्जा के रूप में देखता है, तो यह उसके जीवन में स्थिरता, साहस और मानसिक स्पष्टता लाता है। इसके विपरीत, यदि प्रेम को केवल लालसा, लालच या भय के रूप में लिया जाए, तो यह आत्मबल को कमजोर कर सकता है।

संक्षेप में, ओशो के विचारों के अनुसार प्रेम व्यक्ति के जीवन में या तो शक्ति का स्रोत बन सकता है या कमजोरी का। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम प्रेम को कैसे अनुभव करते हैं। यदि प्रेम में स्वतंत्रता, आत्म-जागरूकता और संतुलन है, तो यह हमारे आत्मबल को मजबूत करता है। वहीं, अगर प्रेम में अंधानुकरण और निर्भरता अधिक है, तो यह हमें मानसिक रूप से कमजोर कर सकता है।इसलिए, प्रेम का अनुभव करना सीखना और इसे समझदारी के साथ निभाना जरूरी है। ओशो हमें यह सिखाते हैं कि प्रेम का वास्तविक उद्देश्य केवल किसी के लिए भावनाएं देना नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर की शक्ति, जागरूकता और स्वतंत्रता को पहचानने और बढ़ाने का माध्यम है।

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