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बहुत दर्द हो रहा था, उन्होंने मुझे बार-बार एक ही जगह पर मारा …संन्यास के बाद चेतेश्वर पुजारा ने बयां किया उस घटना का हाल

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किसी भी क्रिकेटर से पूछिए। आपको जवाब मिलेगा कि वह देश के लिए टेस्ट क्रिकेट खेलना चाहता है। कुछ अपने सपने को हकीकत में बदल लेते हैं, कुछ किस्मत वाले नहीं होते और कुछ ऐसे भी होते हैं जो टेस्ट टीम में जगह पाने के लिए ज़रूरी मेहनत नहीं करते। पैसे छापने वाली मशीन टी20 फॉर्मेट के आने के बाद, तीसरी तरह के क्रिकेटरों की संख्या बढ़ी है। जबकि चेतेश्वर पुजारा के संन्यास के बाद, विशुद्ध टेस्ट खिलाड़ियों की संख्या कम हुई है।

विश्व क्रिकेट में खूबसूरत पारियाँ

‘आर्ट ऑफ़ हिटिंग’ के इस दौर में भी, ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ की कला को ज़िंदा रखने वाले पुजारा ने अब बाज़ार के रुख़ को समझते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया है। कुल 103 टेस्ट खेलने वाले इस ‘आखिरी टेस्ट विशेषज्ञ’ की अंतरराष्ट्रीय कहानी लगभग 12 साल पहले ऑस्ट्रेलियाई टीम के ख़िलाफ़ शुरू हुई थी। यह सीरीज़ का दूसरा टेस्ट था और चौथी पारी में 200 से ज़्यादा रनों के लक्ष्य का पीछा कर रही भारतीय टीम ने तीसरे ही ओवर में वीरेंद्र सहवाग का विकेट गंवा दिया। पुजारा अपने डेब्यू टेस्ट की पहली पारी में ज़्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाए, फिर भी कप्तान एमएस धोनी ने राहुल द्रविड़ को बल्लेबाजी क्रम में नीचे खिसकाकर तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए भेजा। घरेलू क्रिकेट में अपनी धाक जमा चुके पुजारा ने 72 रनों की संतुलित पारी खेलकर विश्व क्रिकेट में शानदार शुरुआत की। हालाँकि, लगभग दो साल और दो महीने बाद, उसी साल अहमदाबाद में इंग्लैंड के खिलाफ अपने करियर का पहला दोहरा शतक जड़कर वे भारतीय टीम का अहम हिस्सा बन गए।

शोध विषय पारी
पुजारा ने धीरे-धीरे अपने रक्षात्मक कौशल से विरोधी टीमों को यह यकीन दिला दिया कि राहुल द्रविड़ की तरह उनके डिफेंस को भेदना बेहद मुश्किल है। इधर राहुल द्रविड़ का करियर ढलान पर था और उधर टीम इंडिया की ‘नई दीवार’ के रूपक के साथ पुजारा का सूरज उग आया। द्रविड़ के बाद पुजारा को बल्लेबाजी में तीसरा स्थान मिला। पुजारा ने अपने करियर में कई क्लासिक पारियाँ खेलीं। चाहे वह एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 123 रनों की पारी हो या जोहान्सबर्ग में डेल स्टेन एंड कंपनी की तेज़ गेंदबाज़ी के सामने 153 रनों की पारी, सभी ने खूब तारीफ़ बटोरी। लेकिन कुछ पारियाँ ऐसी भी रहीं जिनमें उन्होंने कोई उपलब्धि हासिल नहीं की, लेकिन अपनी मानसिक मज़बूती, अपने हुनर ​​और खेल के प्रति समर्पण की एक मुकम्मल तस्वीर पेश की, जिसे आने वाले समय में युवा क्रिकेटर शोध का विषय बनाएँगे।

व्यंग्यात्मक तालियाँ भी मिलीं
2018 में टीम इंडिया दक्षिण अफ्रीका में थी और जोहान्सबर्ग में टीम इंडिया तीन टेस्ट मैचों की सीरीज़ में वाइटवॉश से बचने के लिए मैदान पर उतरी थी, लेकिन वांडरर्स की मुश्किल पिच पर टीम इंडिया ने दस ओवर के अंदर ही अपने दोनों सलामी बल्लेबाज़ों के विकेट गंवा दिए, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि टीम इंडिया वापसी कर पाएगी। लेकिन उस समय क्रीज़ पर पुजारा की मौजूदगी दर्शकों को एक अलग ही खुशी दे रही थी। तीसरे ओवर में क्रीज़ पर आए पुजारा पारी के 20 ओवर पूरे होने के बाद भी अपना खाता नहीं खोल पाए थे। जब पुजारा ने 53वीं गेंद पर अपना खाता खोला, तो दर्शकों ने उन्हें व्यंग्यात्मक तालियाँ दीं, लेकिन बल्लेबाज़ ने ज़ोरदार तालियों से उनका अभिनंदन किया। पुजारा की धीमी पारी पूरे शहर में चर्चा का विषय रही। युवा पीढ़ी हैरान थी कि कोई बल्लेबाज बिना एक भी रन बनाए इतनी देर तक एकाग्रता के साथ क्रीज पर कैसे टिका रह सकता है। पुजारा उस पारी में 179 गेंदों पर 50 रनों की पारी खेलकर आउट हो गए। कई क्रिकेट विशेषज्ञों ने उनकी आलोचना भी की, लेकिन अगले कुछ दिनों में यह साबित हो गया कि पुजारा की संयमित पारी ही थी जिसके इर्द-गिर्द इस टेस्ट मैच में टीम इंडिया की जीत की कहानी लिखी गई थी।

बुरे वक्त में भी डटे रहना

पुजारा ने 2021 में इंग्लैंड में ऐसी ही एक अनोखी पारी खेली। क्रिकेट में कहा जाता है कि आपकी मानसिक मजबूती की असली परीक्षा तब होती है जब आपके बल्ले से रन नहीं निकल रहे होते। बुरे वक्त में एक बल्लेबाज हर गेंद इसी डर से खेलता है कि कहीं इस बार गेंद बल्ले का किनारा लेकर फील्डर के हाथों में न चली जाए। या गेंद सीधे उसके पैड पर न लग जाए। पुजारा भी कुछ ऐसी ही मानसिक स्थिति से गुज़र रहे थे। पिछले कुछ समय से उनके बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे। हालात ऐसे हो गए थे कि टीम में उनकी जगह पर सवाल उठने लगे थे। सीरीज के दूसरे टेस्ट में पुजारा ने अपना खाता खोलने के लिए 35 गेंदें लीं जबकि उनकी पूरी पारी 206 गेंदों पर 45 रनों की थी। इस पारी के बाद कहा गया कि पुजारा रन बनाना भूल गए हैं। लेकिन दूसरे ही टेस्ट में उन्होंने एक बार फिर मानसिक मजबूती का उच्चतम स्तर दिखाया और 91 रनों की पारी खेलकर एक बार फिर अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। टेस्ट क्रिकेटर कहलाने की हर कसौटी पर खरे उतरने वाले पुजारा की अपने करियर के आखिरी दिनों में असली टेस्ट खेलने को लेकर अक्सर आलोचना होती थी। शायद यह बदलते वक्त और खिलाड़ियों व दर्शकों के बदले मिजाज के कारण था। आगे भी पुजारा ने अपना खाता खोलने के लिए 35 गेंदें लीं जबकि उनकी पूरी पारी 206 गेंदों पर 45 रनों की थी। वह बदलेगा, मिजाज भी बदलेगा लेकिन क्रिकेट में एक बात तय है कि पुजारा शायद ‘टेस्ट क्रिकेट के विशेषज्ञ’ का तमगा हासिल करने वाले आखिरी बल्लेबाज होंगे।

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