भगवान शिव को ‘पंचानन’ यानी पंचमुखी कहे जाने के पीछे एक अद्भुत और रोचक कथा है, जो शिवलीला और दिव्य सृष्टि से जुड़ी हुई है। इस कथा का उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व सहित कई अन्य ग्रंथों में भी मिलता है। इसमें भगवान शिव की दिव्य योगशक्ति, उनकी लीला, देवी पार्वती का रोष, और एक अप्सरा – तिलोत्तमा – का अनूठा प्रसंग शामिल है, जो भगवान शिव के पंचमुख रूप धारण का कारण बना।
तिलोत्तमा का जन्म और शिवलीला की शुरुआत
कथा की शुरुआत होती है दो राक्षसों – सुंद और उपसुंद – से, जिनकी शक्ति और अत्याचार से सृष्टि संकट में पड़ गई थी। देवगण उनकी शक्ति से भयभीत हो उठे थे। तब भगवान शिव की प्रेरणा से ब्रह्माजी ने एक अनुपम सौंदर्य की स्त्री का निर्माण किया। संसार की सबसे सुंदर वस्तुओं से रची गई यह स्त्री ‘तिलोत्तमा’ कहलायी – तिल-तिल सौंदर्य से बनी हुई।
तिलोत्तमा का कार्य था – सुंद और उपसुंद को अपने सौंदर्य से मोहित कर उनका अंत करना। अपनी भूमिका निभाते हुए तिलोत्तमा ने देवसभा में परिक्रमा आरंभ की। जैसे-जैसे वह देवताओं के पास से गुज़रती, सभी सम्मोहित हो जाते। जब वह भगवान शिव के पास पहुंचीं और उनकी परिक्रमा करने लगीं, तब शिवजी ने तिलोत्तमा के रूप को हर दिशा से देखने हेतु चार अतिरिक्त मुख प्रकट कर दिए। इस प्रकार वे पंचमुख हो गए।
देवी पार्वती का रोष और सृष्टि में अंधकार
भगवान शिव का यह पंचमुख रूप और तिलोत्तमा की ओर ध्यान देखकर देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गईं। जब नारदजी ने उन्हें यह घटना बताई, तो उन्होंने अपनी हथेलियों से भगवान शिव की आंखें ढक दीं। इससे समूचे ब्रह्मांड में अंधकार फैल गया, और सृष्टि विनाश की ओर बढ़ने लगी। सभी देवी-देवता देवी पार्वती से प्रार्थना करने लगे कि वे शिवजी की आंखों से हाथ हटा लें, लेकिन वह नहीं मानीं। तब भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिससे सृष्टि में फिर से प्रकाश फैल गया। इस घटना के बाद ही उन्हें त्र्यंबक और त्रिनेत्रधारी के नाम से जाना जाने लगा।
तिलोत्तमा को मिला पार्वती का श्राप
माता पार्वती का क्रोध तिलोत्तमा पर उतर पड़ा। उन्होंने तिलोत्तमा को कुरूप होने का श्राप दे दिया। तिलोत्तमा अपने विकृत रूप को देखकर विलाप करने लगीं और देवी पार्वती से क्षमा याचना की। पार्वती जी को पश्चाताप हुआ और उन्होंने तिलोत्तमा को श्रापमुक्त करने का उपाय बताया।
हटकेश्वर तीर्थ और सौंदर्य की पुनर्प्राप्ति
माघ शुक्ल पक्ष की तृतीया को देवी पार्वती तिलोत्तमा को हटकेश्वर तीर्थ ले गईं। वहां पवित्र स्नान के बाद तिलोत्तमा फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट आईं। प्रसन्न होकर उन्होंने देवी पार्वती से एक वरदान मांगा कि वह स्थान स्त्रियों के कल्याण के लिए प्रसिद्ध हो। देवी पार्वती ने स्वीकार किया कि उस तीर्थ में स्नान करने से स्त्रियों को सौंदर्य और वैवाहिक सुख प्राप्त होगा।