भारत की पौराणिक कथाएं चमत्कारी घटनाओं और गूढ़ रहस्यों से भरी पड़ी हैं। महाभारत काल की कई कहानियां ऐसी हैं, जिनका प्रभाव आज भी कलयुग में देखने को मिलता है। एक ऐसी ही कथा है महाभारत के भीम के पोते की, जो भगवान श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया था, लेकिन फिर भी उसे वरदान मिला कि वह कलयुग में भगवान के रूप में पूजित होगा। इस कथा का संबंध है घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक से, जिन्हें आज श्री खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है।
कौन था बर्बरीक?
बर्बरीक महाबली भीम और नागकन्या अहिलावती के पुत्र घटोत्कच के बेटे थे। यानी वह पांडवों की तीसरी पीढ़ी से थे। बचपन से ही बर्बरीक युद्ध कौशल में निपुण थे। उन्होंने देवताओं से तीन ऐसे दिव्य बाण प्राप्त किए थे, जिनकी मदद से वह किसी भी युद्ध को पलक झपकते जीत सकते थे। बर्बरीक को यह वरदान था कि वह जिस भी युद्ध में भाग लेंगे, वहां केवल वही विजयी होंगे।
महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण की परीक्षा
जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था, तो बर्बरीक ने निश्चय किया कि वह उस पक्ष की ओर से युद्ध करेंगे जो कमजोर होगा। यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण चिंता में पड़ गए, क्योंकि यदि बर्बरीक युद्ध में शामिल होते, तो उनके दिव्य बाणों के कारण युद्ध का संतुलन बिगड़ जाता।
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने का निश्चय किया। वे साधु वेश में उनके पास पहुंचे और उनसे उनके युद्ध कौशल के बारे में पूछा। बर्बरीक ने अपने तीन बाण दिखाए और बताया कि एक बाण से वह किसी भी युद्धभूमि में शत्रुओं का नाश कर सकते हैं।
श्रीकृष्ण ने मांगा बर्बरीक का सिर
श्रीकृष्ण ने जब यह सुना, तो उन्हें युद्ध की निष्पक्षता की चिंता हुई। उन्होंने बर्बरीक से एक वीर योद्धा के रूप में दान मांगा – उनका सिर। बर्बरीक ने मुस्कुराकर अपनी माँ की अनुमति से अपना शीश दान में दे दिया। लेकिन उन्होंने श्रीकृष्ण से एक वर मांगा – कि वे महाभारत का युद्ध अपने कटे हुए शीश से देखना चाहते हैं।
श्रीकृष्ण ने यह वरदान दिया और बर्बरीक का सिर एक पहाड़ी पर स्थापित कर युद्ध दिखाया गया।
कलयुग में बने भगवान – खाटू श्याम
बर्बरीक के इस महान त्याग और भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया: “कलयुग में तुम मेरे ही एक रूप के रूप में पूजे जाओगे। जो भी भक्त सच्चे मन से तुम्हारा नाम लेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।” इस वरदान के बाद कलयुग में बर्बरीक को “श्री श्याम बाबा” के नाम से जाना जाने लगा। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटूधाम में उनका भव्य मंदिर है, जहां लाखों श्रद्धालु हर वर्ष दर्शन करने आते हैं।
खाटू श्याम जी की पहचान
खाटू श्याम जी को कलयुग के भगवान कहा जाता है। उनका नाम ‘श्याम’ इसलिए पड़ा क्योंकि श्रीकृष्ण ने स्वयं उन्हें यह नाम दिया। माना जाता है कि कलयुग में श्रीकृष्ण का ही प्रतिनिधित्व खाटू श्याम जी करते हैं। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से श्याम बाबा का नाम लेता है, उसकी हर परेशानी दूर होती है।
उनकी पूजा विशेषकर फाल्गुन मेले में होती है, जहां लाखों भक्त पैदल चलकर उनके दर्शन के लिए पहुंचते हैं। भक्त उन्हें “श्याम बाबा”, “लक्ष्मण रूपी श्याम”, “श्याम सरकार” और “ठाकुरजी” जैसे नामों से पुकारते हैं।
यह कथा क्यों है महत्वपूर्ण?
यह पौराणिक कथा केवल एक वीर योद्धा की नहीं, बल्कि बलिदान, निष्ठा और भक्ति की पराकाष्ठा की कहानी है। बर्बरीक ने अपने वचन और न्यायप्रियता के लिए अपना शीश दान कर दिया, लेकिन बदले में उन्हें श्रीकृष्ण से वह अमरत्व मिला जो उन्हें “कलयुग के भगवान” के रूप में स्थापित करता है।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सत्य के पक्ष में खड़े होने और न्याय के लिए बलिदान देने वाले कभी व्यर्थ नहीं जाते। उनकी भक्ति अमर हो जाती है और युगों तक लोगों की आस्था का केंद्र बनती है।