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भारत का ऐसा अनोखा मंदिर जहाँ भगवान शिव ने ली थी माता पार्वती की परीक्षा,आज भी इस तरह से होती है शिवलिंग की पूजा

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तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम नगर में स्थित एकाम्रेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा एक विशेष लिंग, जिसे बालुका-लिंग कहा जाता है, के रूप में की जाती है। इस मंदिर में यह बालुका-लिंग अद्वितीय ऊर्जा का प्रतीक है। भगवान् शिव को यहां एकम्बरेश्वर या एकम्बरनाथ के नाम से पूजा जाता है जिसका अर्थ है ‘आम के पेड़ का भगवान’। यह मंदिर हिन्दू धर्म के शैव सम्प्रदाय के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पांच भूत स्थलों में से एक है और विशेष रूप से पृथ्वी तत्व से संबंधित है। मंदिर के परिसर में चार गोपुरम (प्रवेश द्वार) हैं, जिनमें से दक्षिणी गोपुरम सबसे ऊँचा है, जिसकी ऊँचाई 58।5216 मीटर (192 फीट) है, जो भारत के सबसे ऊँचे मंदिर टॉवरों में से एक है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसका निर्माण चोल वंश के शासकों ने 9वीं शताब्दी में किया था जबकि बाद में विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने इसका विस्तार किया।

इस मंदिर के परिसर में एक विशाल आम का पेड़ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह 3500 वर्ष से अधिक समय से मौजूद है। यह भी देखा गया है कि इस पेड़ की हर शाखा पर अलग-अलग रंग के आम लगते हैं और इनका स्वाद भी अलग-अलग है। इस पेड़ से एक पुरानी कथा जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार एक बार माता पार्वती वेगवती नदी के पास मंदिर के प्राचीन आम के पेड़ के नीचे तपस्या करके खुद को पाप से मुक्त करना चाहती थीं। वो पेड़ के पीछे बैठकर तपस्या करने लगीं। कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उन्हें आग में डाल दिया था। माता पार्वती ने मदद के लिए अपने भाई भगवान विष्णु से प्रार्थना की, तो भगवान विष्णु ने भगवान शिव के सिर पर स्थित चंद्रमा की किरणों से आम के पेड़ और पार्वती की जलन को शांत किया था। शिवजी ने पार्वती की तपस्या को भंग करने के लिए फिर से गंगा नदी को भेजा लेकिन पार्वती ने गंगा से अनुरोध किया कि वे दोनों बहनें हैं, इसलिए वे उनकी तपस्या को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए। इसके बाद, गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला। पार्वती ने शिव से एकाकार होने के लिए रेत से एक शिवलिंग बनाया।

माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि तपस्या के दौरान माता पार्वती आम के पेड़ के नीचे पृथ्वी लिंगम के रूप में भगवान् शिव की पूजा करती थीं। एक बार परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने पास में बाह रही वेगवती नदी में तूफ़ान ला दिया जिससे शिवलिंग के बाह जाने का डर था लेकिन माता पार्वती या देवी कामाक्षी ने शिवलिंग को अपने गले से लगाकर उसे बचा लिया। इस कारण उन्हें तमिल में तज़ुवा कुज़ैनथार (वह जो उसके आलिंगन में पिघल गया) कहा जाता है। भगवान शिव माता पार्वती से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने माता पार्वती को दर्शन दे दिया। शिव जी ने माता पार्वती से वरदान माँगने को कहा, तो माता पार्वती ने विवाह की इच्छा व्यक्त की। फिर महादेव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया।इस कथा के आधार पर यहां भगवान शिव व पार्वती जी के मिलन के उपलक्ष्य में वार्षिक ब्रह्मोत्सव में रेत के शिवलिंग वाले एकाम्बरनाथ मंदिर और कामाक्षी मंदिर से प्रतिमाएं ‘पवित्र आम्रवृक्ष’ के नीचे ले जाई जाती हैं और शिवविवाह कल्याणोत्सव मनाया जाता है ।

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