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महाभारत में अर्जुन से पहले इन्हें मिला था गीता का ज्ञान, 10 में से 9 लोग देते हैं गलत जवाब

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जब भी श्रीमद्भगवद्गीता का नाम आता है, तो सबसे पहले महाभारत के युद्धक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश की छवि हमारे मन में उभरती है। यही गीता आज भी आध्यात्मिक और जीवन के दर्शन की सबसे गूढ़ पुस्तक मानी जाती है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अर्जुन से पहले भी किसी और को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर 10 में से 9 लोग गलत देते हैं।

असल में अर्जुन से पहले यह दिव्य ज्ञान भगवान ने स्वयं “सूर्य देव” को दिया था।

गीता के चौथे अध्याय में हुआ खुलासा

श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 4 (ज्ञानयोग) के श्लोक 1 और 2 में श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन से कहते हैं:

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥

इसका अर्थ है – इस अविनाशी योग (ज्ञान) को मैंने पहले सूर्य (विवस्वान) को बताया, फिर सूर्य ने मनु को, और मनु ने इक्ष्वाकु को बताया।

इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि गीता का ज्ञान नया नहीं था। भगवान श्रीकृष्ण ने इसे समय-समय पर विभिन्न महापुरुषों और देवताओं को प्रदान किया। अर्जुन को यह ज्ञान एक बार फिर युद्ध के समय याद दिलाया गया, न कि पहली बार बताया गया।

सूर्य देव कैसे बने पहले श्रोता?

विवस्वान अर्थात सूर्य देव को भगवान श्रीकृष्ण ने यह ज्ञान सृष्टि के प्रारंभ में दिया था, जब संसार का निर्माण हो रहा था और धर्म की नींव रखी जा रही थी। सूर्य देव को यह ज्ञान इसलिए दिया गया क्योंकि वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाश देने वाले हैं और उनका संबंध जीवनदायिनी ऊर्जा से है।

इसके बाद सूर्य ने इसे मनु को दिया, जो मानव जाति के आदि पूर्वज माने जाते हैं। फिर मनु ने इसे इक्ष्वाकु को दिया, जिससे सूर्यवंश की शुरुआत हुई – यानी भगवान श्रीराम का वंश।

लोग क्यों करते हैं गलत उत्तर?

बहुत से लोग यह मानते हैं कि गीता का ज्ञान केवल अर्जुन को ही दिया गया था, क्योंकि यही प्रसंग सबसे प्रसिद्ध है और गीता का पूरा ग्रंथ इसी संवाद पर आधारित है। लेकिन वे गीता के श्लोकों का गहन अध्ययन नहीं करते, जिससे वे इस गूढ़ तथ्य को नहीं जान पाते।

गीता: केवल युद्ध का नहीं, जीवन का संदेश

गीता केवल युद्ध भूमि का उपदेश नहीं है, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संतुलन, कर्तव्य और आत्मा के सच्चे स्वरूप की पहचान का माध्यम है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को केवल इसलिए ज्ञान नहीं दिया कि वह युद्ध करे, बल्कि इसलिए कि वह अपने धर्म को पहचान सके। यही ज्ञान पहले भी अन्य युगों में अलग-अलग स्वरूप में दिया जाता रहा।

निष्कर्ष

तो अगली बार जब कोई पूछे कि श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान सबसे पहले किसे मिला था, तो याद रखें – उत्तर है “सूर्य देव”। अर्जुन तो केवल उस ज्ञान की अगली कड़ी थे, जिसे समय-समय पर ईश्वर स्वयं धर्म की रक्षा हेतु प्रकट करते हैं।

यही है सनातन सत्य।

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