महाभारत केवल कौरवों और पांडवों के युद्ध की गाथा नहीं है, बल्कि यह ग्रंथ ऐसे असंख्य पात्रों की कहानियों से भरा हुआ है, जिनकी भूमिकाएं भले ही सीमित रहीं, लेकिन उनके संघर्ष, भावना और निर्णय इस महाकाव्य को और भी रहस्यमयी बनाते हैं। ऐसी ही एक अनकही कहानी है नाग अश्वसेन की—एक ऐसा नाग, जिसने अर्जुन को अपना जीवन का शत्रु मान लिया था और जिसका एकमात्र उद्देश्य अर्जुन की मृत्यु था। आइए जानते हैं, अश्वसेन की यह कथा क्यों शुरू हुई और कैसे उसका प्रतिशोध अधूरा रह गया।
खांडवप्रस्थ की आग और अश्वसेन की मां की मृत्यु
महाभारत की कथा के अनुसार, जब पांडवों को खांडवप्रस्थ की निर्जन और घने वनों से घिरी भूमि मिली, तो उसे रहने योग्य बनाने के लिए श्रीकृष्ण के सुझाव पर अर्जुन ने खांडव वन में आग लगा दी। यह आग एक नव निर्माण की शुरुआत थी, लेकिन इसके विनाश से कई जीवों की मृत्यु हो गई। इन्हीं में से एक थी नाग अश्वसेन की मां, जो आग में झुलसकर मारी गईं। अश्वसेन किसी तरह अपनी जान बचाकर निकल गया, लेकिन उसकी आत्मा इस क्षति को कभी भूल नहीं सकी।
अर्जुन के विरुद्ध अश्वसेन का बदला
अपनी मां की मृत्यु के बाद अश्वसेन के मन में अर्जुन के प्रति घृणा और प्रतिशोध की भावना भर गई। उसने प्रतिज्ञा ली कि एक दिन वह अर्जुन को मारकर अपनी मां की मौत का बदला लेगा। लेकिन अर्जुन एक महान योद्धा था और सीधे युद्ध में उसे पराजित करना लगभग असंभव था। इसलिए अश्वसेन ने एक योजना बनाई—एक छिपे हमले की योजना।
कर्ण से मिलन और अर्जुन को मारने की योजना
कौरव-पांडव युद्ध के दौरान जब कर्ण और अर्जुन आमने-सामने युद्ध कर रहे थे, अश्वसेन ने अपने बदले का अवसर देखा। वह सूक्ष्म रूप में एक नागबाण बनकर कर्ण के तरकश में जा बैठा। जैसे ही कर्ण ने अर्जुन पर तीर चलाने के लिए बाण निकाला, अश्वसेन उस पर लिपट गया। कर्ण को यह अजीब लगा, और उन्होंने बाण से अश्वसेन को हटाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं हटा।
कर्ण ने जब अश्वसेन से उसका परिचय पूछा तो उसने पूरी कहानी बताई—”मैं वही अश्वसेन हूं जिसकी मां खांडव वन की आग में मारी गई थी। अर्जुन ने मेरी मां की जान ली और अब मैं उससे बदला लेने आया हूं।”
कर्ण का धर्मसंकट और वीरता का परिचय
कर्ण ने अश्वसेन की कहानी ध्यान से सुनी, लेकिन एक सच्चे योद्धा के रूप में उन्होंने धर्म और नीति का पालन करते हुए अश्वसेन से स्पष्ट कहा, “मैं समझ सकता हूं कि तुम्हारे साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ है। लेकिन अर्जुन ने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। यह आग विनाश के लिए नहीं, बल्कि नव निर्माण के लिए थी।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं अर्जुन से युद्ध अवश्य करूंगा, लेकिन तुम्हारी सहायता से छलपूर्वक नहीं। यदि मैं तुम्हारी सहायता से अर्जुन को मार दूं, तो यह मेरे योद्धा धर्म के विरुद्ध होगा।”
कर्ण के सत्य और निष्ठा की बातों से अश्वसेन प्रभावित हुआ और चुपचाप रणभूमि से लौट गया।
सच्चे योद्धा का परिचय
इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि कर्ण, जो अर्जुन का शत्रु था, फिर भी उसने अपने सिद्धांतों और धर्म का पालन करते हुए सत्य और मर्यादा को सर्वोच्च रखा। यही एक सच्चे योद्धा की पहचान होती है।
अश्वसेन की कहानी महाभारत की उन गहराइयों को उजागर करती है, जहां प्रतिशोध, दुःख और धर्म के बीच संघर्ष चलता है। यह बताती है कि महाभारत केवल युद्ध की गाथा नहीं, बल्कि इंसानी भावनाओं और नैतिकताओं का महासंग्राम भी है।