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मार्गशीर्ष महीने में गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के पाठ की है अनोखी महिमा,, पितृ दोष व जीवन में आने वाली हर विपत्ति से मिलेगी मुक्ति

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भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्र, स्तोत्र और पूजा विधियाँ बताई गई हैं, लेकिन इन सबमें गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र को अत्यंत प्रभावशाली और चमत्कारी माना गया है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है बल्कि जीवन की कठिनाइयों, पापों, कर्ज और मानसिक तनाव से भी मुक्ति दिलाता है। यह स्तोत्र श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में वर्णित है।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का महत्व

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भगवान विष्णु की करुणा, दया, वात्सल्य और परोपकार को दर्शाता है। जब जीवन में निराशा और अंधकार छा जाता है, तब यह स्तोत्र व्यक्ति को आशा की नई किरण देता है। इसमें वर्णित भावनाएं इस बात का प्रतीक हैं कि ईश्वर अपने भक्तों को कभी भी संकट में अकेला नहीं छोड़ते। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से न केवल मानसिक शांति मिलती है बल्कि यह पापों का नाश करता है और मोक्ष की ओर भी मार्ग प्रशस्त करता है।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र की पौराणिक कथा

गजेंद्र मोक्ष की कथा अत्यंत प्रेरणादायक और रोचक है। प्राचीन काल में राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार महर्षि अगस्त्य उनके द्वार आए, लेकिन राजा ध्यानमग्न अवस्था में थे और उनका समुचित स्वागत नहीं कर सके। इससे क्रोधित होकर अगस्त्य मुनि ने उन्हें हाथी बनने का श्राप दे दिया।

श्रापवश राजा ने हाथी के रूप में जन्म लिया और वह गजेंद्र कहलाए। एक दिन गजेंद्र एक सरोवर में स्नान करने गया। तभी एक मगरमच्छ ने उसके पैर को पकड़ लिया और गजेंद्र अपने बल और शक्ति से संघर्ष करने लगा। जब काफी समय बीत गया और उसकी शक्ति क्षीण होने लगी, तब उसने भगवान विष्णु का ध्यान किया और उनसे प्रार्थना करने लगा।

गजेंद्र की अत्यंत भावपूर्ण स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तुरंत प्रकट होकर अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया और गजेंद्र को संकट से मुक्त किया। इस स्तुति को ही गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के रूप में जाना जाता है। यह कथा यह सिद्ध करती है कि भक्त की पुकार भगवान तक अवश्य पहुंचती है, चाहे वह किसी भी योनि में क्यों न हो।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र पाठ की विधि

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ एक विशेष श्रद्धा और पवित्रता के साथ किया जाना चाहिए। इसके लिए नीचे दी गई विधि का पालन करें:

  1. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  2. घर के पूजा स्थान या मंदिर में दीपक जलाएं।

  3. भगवान विष्णु की प्रतिमा को जल से शुद्ध करें और पुष्प, चंदन, धूप, दीप आदि से पूजन करें।

  4. भगवान विष्णु को फल-फूल या घर का बना हुआ भोग अर्पित करें।

  5. शांत मन से गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करें।

  6. पाठ के बाद भगवान विष्णु की आरती करें।

  7. भोग को प्रसाद रूप में परिवारजनों में बांटें।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र | Gajendra Moksha Stotram Lyrics in Hindi

श्री शुक उवाच
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम।।
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गजेंद्र उवाच
ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि।।
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यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम।।
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यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम।
अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्म मूलोsवत् मां परात्परः।।
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कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु।
तमस्तदाऽऽऽसीद गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेsभिविराजते विभुः।।
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न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु-
र्जन्तुः पुनः कोsर्हति गन्तुमीरितुम।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु।।
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दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम
विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूता सुहृदः स मे गतिः।।
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न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वा
न नाम रूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः
स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति।।
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तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेsनन्तशक्तये।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे।।
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नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि।।
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सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता।
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे।।
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नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च।।
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क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे।
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः।।
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सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः।।
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नमो नमस्तेsखिल कारणाय
निष्कारणायाद्भुत कारणाय।
सर्वागमान्मायमहार्णवाय
नमोपवर्गाय परायणाय।।
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गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जित मानसाय।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि।।
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मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोsलयाय।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते।।
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आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै-
र्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय।
मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय।।
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यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा
भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं
करोतु मेsदभ्रदयो विमोक्षणम्।।
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एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थ
वांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः।
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलं
गायन्त आनन्द समुद्रमग्नाः।।
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तमक्षरं ब्रह्म परं परेश-
मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम।
अतीन्द्रियं सूक्ष्ममिवातिदूर-
मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे।।
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यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः।
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः।।
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यथार्चिषोsग्नेः सवितुर्गभस्तयो
निर्यान्ति संयान्त्यसकृत् स्वरोचिषः।
तथा यतोsयं गुणसंप्रवाहो
बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः।।
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स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंग
न स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः।
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन
निषेधशेषो जयतादशेषः।।
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जिजीविषे नाहमिहामुया कि-
मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या।
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लव-
स्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम।।
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सोsहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोsस्मि परं पदम्।।
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योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोsस्म्यहम्।।
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नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-
शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय।
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये
कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने।।
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नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम्।
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोsस्म्यहम्।।
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श्री शुकदेव उवाच
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं
ब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात
तत्राखिलामरमयो हरिराविरासीत्।।
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तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासः
स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि :।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमान –
श्चक्रायुधोsभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः।।
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सोsन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो
दृष्ट्वा गरुत्मति हरिम् ख उपात्तचक्रम।
उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छा –
नारायणाखिलगुरो भगवन्नमस्ते।।
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तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य
सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार।
ग्राहाद् विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं
सम्पश्यतां हरिरमूमुच दुस्त्रियाणाम्।।

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