नई दिल्ली, 8 अप्रैल (आईएएनएस)। चीन पर 34 प्रतिशत और वियतनाम पर 46 प्रतिशत की तुलना में भारत पर 27 प्रतिशत यूएस रेसिप्रोकल टैरिफ, देश के घरेलू टेक हार्डवेयर सेक्टर को बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई।
सीएलएसए की रिपोर्ट में कहा गया कि इससे भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग, विशेष रूप से स्मार्टफोन, को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी।
रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका के इस कदम से ग्लोबल सप्लाई चेन भारत के पक्ष में काम करेगी और इससे देश की स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिल सकता है।
वैश्विक ब्रोकिंग फर्म के अनुसार, अमेरिका का स्मार्टफोन आयात 51 अरब डॉलर का है, जिसमें चीन, वियतनाम और भारत प्रमुख निर्यातक हैं।
भारत में एप्पल और सैमसंग के पास बड़ी मैन्युफैक्चरिंग सुविधाएं हैं।
भारत पर कम टैरिफ, बड़ा घरेलू बाजार और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के समर्थन से बढ़ता बैकवर्ड इंटीग्रेशन मिलकर देश की प्रतिस्पर्धात्मकता क्षमता को बढ़ाते हैं।
ग्लोबल सप्लाई चेन डायनामिक्स में इस बदलाव का बड़ा लाभ डिक्सन टेक्नोलॉजीज जैसी कंपनियों को हो सकता है।
सीएलएसए ने कहा कि हालांकि, एप्पल और सैमसंग का असेंबली ऑपरेशन या तो इन-हाउस है या फिर भारत में गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के साथ है, लेकिन सप्लाई चेन में डिक्सन की भूमिका बढ़ने की उम्मीद है।
अन्य रिपोर्टों के अनुसार, भारत में विभिन्न सेक्टरों के लिए अमेरिकी रेसिप्रोकल टैरिफ का प्रभाव अलग-अलग होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, कृषि उत्पाद, केमिकल, ऑटोमोबाइल और कंपोनेंट के लिए इसका प्रभाव काफी हद तक न्यूट्रल रहने की उम्मीद है।
केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स में, चीन पर अधिक रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात पर न्यूट्रल प्रभाव होगा।
इसके अतिरिक्त, हाल ही में घोषित 22,919 करोड़ रुपये की इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम (ईसीएमएस), जिसमें लगभग 1 लाख प्रत्यक्ष रोजगार और कई अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा करने की क्षमता है, सब-असेंबली और इंटक्टर्स, रेसिसटर्स, पीसीबी और कैपेसिटर जैसे कंपोनेंट्स के स्थानीय उत्पादन पर केंद्रित है।
–आईएएनएस
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