भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। किसी न किसी वजह से चर्चा में रहते हैं। उनकी जिंदगी सफलता से ज्यादा विवादों से जुड़ी रही है। इसलिए, इन दिनों वह अपने किसी विवाद की वजह से नहीं बल्कि अपने राजनीतिक करियर की वजह से सुर्खियों में हैं। बिहार चुनाव को लेकर एक्टर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उन्होंने घर वापसी कर ली है। वह एनडीए में वापस आ गए हैं। हालांकि, इससे पहले वह बीजेपी का टिकट ठुकरा चुके हैं। आइए बताते हैं उनके बारे में…
पवन सिंह 11 साल की उम्र से भोजपुरी इंडस्ट्री में सक्रिय हैं। उनका पहला म्यूजिक एल्बम ‘ओढ़निया वाली’ था। यह 1997 में रिलीज हुआ था। इसके बाद 2004 में ‘कांच कसीली’ आया, लेकिन 2008 में ‘लॉलीपॉप लागेलु’ से उन्हें लोकप्रियता मिली। उनका यह गाना इंटरनेशनल लेवल पर हिट हुआ। फिर फिल्मों का सिलसिला शुरू हुआ, फिर उन्होंने साल 2007 में ‘रंगली चुनरिया तोहरे नाम में’ से एक्टिंग डेब्यू किया। इसमें वह मुख्य भूमिका में थे।
माँ का सपना पूरा करना चाहते हैं पवन सिंह
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पवन सिंह पिछले 28 सालों से इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं। इस बीच उन्होंने फिल्मों के साथ-साथ गानों में भी शानदार काम किया है। आज स्टारडम की कोई कमी नहीं है, लेकिन अब वह राजनीति में कदम रखना चाहते हैं। पिछले कुछ समय से वे लगातार चुनाव लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच, वह एक बार चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार होने के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अब उन्हें एक बार फिर एनडीए का समर्थन मिल गया है। भाजपा में उनकी वापसी की खूब चर्चा हो रही है। वह किसी लोकप्रियता या पैसे के लिए चुनाव नहीं लड़ना चाहते, बल्कि अपनी माँ का सपना पूरा करना चाहते हैं। अभिनेता का कहना है कि वह अपनी माँ के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
2014 में राजनीति में प्रवेश
पवन सिंह के करियर की बात करें तो उन्होंने 2014 में राजनीति में प्रवेश किया था। उन्होंने भाजपा बिहार प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव की मौजूदगी में भगवा धारण किया था। लगभग 10 वर्षों तक पार्टी से जुड़े रहने के बाद, पवन सिंह को 2024 में पश्चिम बंगाल के आसनसोल से उम्मीदवार बनाया गया। लेकिन भाजपा की घोषणा के बाद उन्होंने टिकट ठुकरा दिया और घोषणा की कि वह किसी कारणवश इस सीट से चुनाव नहीं लड़ पाएँगे। इसके बाद उन्होंने भाजपा पार्टी छोड़ दी और निर्दलीय चुनाव लड़ा। वह बिहार के काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए, लेकिन हार गए। इस हार के बाद, उन्होंने घोषणा की कि वह फिर से इसी सीट से चुनाव लड़ेंगे और जनता की सेवा करेंगे। ऐसे में देखना होगा कि उन्हें एनडीए के टिकट पर कहाँ से मैदान में उतारा जाता है।