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लोग दर्दनाक अनुभवों को भूलने में क्यों असमर्थ होते हैं? 3 मिनट कजे इस वीडियो में समझे तकलीफदेह यादों का विज्ञान

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हम सभी के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ होती हैं जिन्हें हम भूलना चाहते हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी वे यादें हमारे दिमाग से जाती ही नहीं। बुरी यादों का दिमाग में बार-बार आना और उनसे छुटकारा न मिल पाना मनोविज्ञान का एक बेहद रोचक विषय है। यह सिर्फ भावनात्मक अनुभव नहीं बल्कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली से जुड़ा वैज्ञानिक तथ्य है। आइए जानते हैं आखिर लोग बुरी यादों को क्यों नहीं भूल पाते और इसके पीछे क्या कारण छिपे हैं।

1. मस्तिष्क की संरचना और स्मृतियों का भंडारण

मानव मस्तिष्क में यादों को संग्रहित करने की क्षमता होती है। शोध बताते हैं कि हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) और अमिग्डाला (Amygdala) नामक हिस्से भावनात्मक यादों को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। जब कोई दुखद या आघात देने वाली घटना होती है, तो अमिग्डाला उस घटना को बहुत तीव्र भावनाओं के साथ दिमाग में दर्ज कर देता है। यही वजह है कि बुरी यादें सामान्य यादों की तुलना में अधिक समय तक हमारे दिमाग में जीवित रहती हैं।

2. नकारात्मक भावनाओं का गहरा प्रभाव

अच्छी घटनाओं की तुलना में नकारात्मक घटनाएँ इंसान पर ज्यादा असर डालती हैं। इसे मनोविज्ञान की भाषा में “निगेटिविटी बायस” कहा जाता है। यह स्वभाविक प्रवृत्ति है कि इंसान दुख, असफलता और अपमान जैसी नकारात्मक चीज़ों को अधिक गहराई से महसूस करता है। इसलिए जब भी ऐसी घटना घटती है, तो उसका असर लंबे समय तक हमारे दिमाग में बना रहता है।

3. डर और आघात का जुड़ाव

कई बार बुरी यादें सिर्फ भावनात्मक नहीं बल्कि शारीरिक प्रतिक्रिया भी पैदा करती हैं। उदाहरण के लिए, किसी दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को जब-जब उस घटना से मिलती-जुलती स्थिति का सामना करना पड़ता है, उसका दिमाग स्वतः उस दर्दनाक पल को याद दिला देता है। यह प्रक्रिया पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) से भी जुड़ी होती है, जिसमें व्यक्ति अतीत की घटनाओं को भूल नहीं पाता और बार-बार वही स्थिति जीने जैसा अनुभव करता है।

4. अधूरी बातें और अपूर्ण घटनाएँ

मनोविज्ञान का एक सिद्धांत है जिसे “ज़ाइगार्निक इफेक्ट (Zeigarnik Effect)” कहा जाता है। इसके अनुसार अधूरी या अपूर्ण घटनाएँ दिमाग में अधिक समय तक बनी रहती हैं। अगर किसी दुखद अनुभव में इंसान को closure (समाप्ति या समाधान) नहीं मिल पाता, तो वह घटना उसके दिमाग में बार-बार घूमती रहती है। यही कारण है कि बुरी यादें अक्सर हमें अधिक परेशान करती हैं।

5. सामाजिक और भावनात्मक दबाव

कभी-कभी यादों को भूल पाना सिर्फ मानसिक नहीं बल्कि सामाजिक दबाव से भी जुड़ा होता है। मान लीजिए किसी व्यक्ति ने सार्वजनिक रूप से अपमान झेला हो या किसी रिश्ते में धोखा खाया हो। समाज की प्रतिक्रियाएँ और लोगों के सवाल उस व्यक्ति को लगातार उसी घटना की याद दिलाते रहते हैं। इस तरह बाहरी परिस्थितियाँ भी बुरी यादों को दिमाग से मिटने नहीं देतीं।

6. बार-बार याद करने की आदत

इंसान की प्रवृत्ति होती है कि वह बार-बार अपने अतीत को याद करता है। दुखद अनुभवों को सोचने और दोहराने की आदत उन यादों को और गहरा कर देती है। दिमाग में बार-बार सक्रिय होने से वे स्मृतियाँ और मजबूत हो जाती हैं और भूलना लगभग नामुमकिन हो जाता है।

7. मानसिक स्वास्थ्य पर असर

बुरी यादों का लंबे समय तक बने रहना व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। लगातार तनाव, चिंता और अवसाद की स्थिति पैदा हो सकती है। कई लोग जीवन में आगे बढ़ने के बजाय अतीत में ही उलझे रहते हैं। यह उनके करियर, रिश्तों और निजी जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

8. समाधान और सकारात्मक दृष्टिकोण

हालांकि बुरी यादों को पूरी तरह मिटाना मुश्किल है, लेकिन उन्हें नियंत्रित करना संभव है। ध्यान (Meditation), परामर्श (Counseling), सकारात्मक सोच और नई गतिविधियों में खुद को व्यस्त रखना इस समस्या से बाहर निकलने के अच्छे उपाय हैं। कुछ मामलों में पेशेवर मनोवैज्ञानिक मदद लेकर व्यक्ति अपने अतीत के आघात को कम कर सकता है।

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