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वट सावित्री पूजा समाप्त होने के बाद पत्नियां क्यों करती हैं पति को पंखा, इसके पीछे क्या है धार्मिक महत्व

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वट सावित्री पूजा हिन्दू धर्म की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण परंपरा है, जो मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए की जाती है। इस पूजा का समय सावित्री तिथि पर होता है, जो श्रावण मास की पूर्णिमा के बाद की तिथि मानी जाती है। पूजा के अंत में कई महिलाएं अपने पतियों को पंखा देती हैं, जिसे देखकर बहुत से लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं और सोचते हैं कि इसका क्या धार्मिक महत्व है। आइए इस परंपरा के पीछे के धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों को विस्तार से समझते हैं।

वट सावित्री पूजा का महत्व

वट सावित्री पूजा मुख्य रूप से महिलाओं की श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है, जो वे अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह पूजा ‘सावित्री और सत्यवान’ की प्रसिद्ध पौराणिक कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी अपार भक्ति और बुद्धिमानी का परिचय दिया था। उन्होंने यमराज को भी अपने पति का प्राण छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि एक पत्नी का प्रेम और समर्पण उसके पति के जीवन को लंबा और सुखी बना सकता है। इसलिए इस दिन महिलाएं वट वृक्ष के नीचे व्रत रखकर पूजा करती हैं।

पूजा के बाद पत्नियां क्यों करती हैं पति को पंखा?

पूजा के अंत में पत्नियां अपने पतियों को पंखा देती हैं, जो एक प्रतीकात्मक क्रिया है। इसका धार्मिक महत्व गहरा है:

  1. सुख-समृद्धि का संकेत: पंखा देना पति को ठंडक और आराम देने का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि पत्नी अपने पति के सुख-संपन्न और आरामदायक जीवन की कामना करती है।

  2. प्यार और सेवा का भाव: पंखा देना सेवा और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। यह क्रिया पति के प्रति पत्नी के प्यार, सम्मान और समर्पण को दर्शाती है।

  3. वट वृक्ष की छाया जैसा संरक्षण: जैसा कि पूजा में वट वृक्ष के नीचे बैठकर प्रार्थना की जाती है, जो जीवन को सुरक्षित रखने वाला माना जाता है, वैसे ही पति को पंखा देना उस वृक्ष की छाया जैसा संरक्षण और सुरक्षा देने का प्रतीक है।

  4. शक्ति और ऊर्जा का संचार: हिंदू धर्म में पंखा चलाने को सकारात्मक ऊर्जा फैलाने वाला माना गया है। पूजा के बाद पंखा देना पति के शरीर और मन को शक्ति देने के लिए किया जाता है।

धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण

धार्मिक दृष्टि से, पंखा देना पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना का अंग है। यह क्रिया पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण को भी मजबूत करती है। सामाजिक रूप से, यह परंपरा परिवार और रिश्तों में सामंजस्य और सम्मान बनाए रखने में मदद करती है।

वट सावित्री पूजा में अन्य रस्में

पूजा के दौरान महिलाएं वट वृक्ष को लपेटकर राखी बांधती हैं, पति के लिए उपहार लाती हैं, और जल अर्पित करती हैं। पूजा के बाद पति को पंखा देना इन सभी रस्मों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पूजा की पूर्णता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

वट सावित्री पूजा के बाद पत्नियां अपने पतियों को पंखा देना न केवल एक सांस्कृतिक रस्म है, बल्कि इसमें गहरा धार्मिक और भावनात्मक महत्व भी छुपा है। यह क्रिया पति के प्रति पत्नी के प्रेम, सेवा और उसकी लंबी आयु की कामना का प्रतीक है। इसलिए इस परंपरा को बड़े श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाया जाता है।

यह पूजा और उसके साथ जुड़ी परंपराएं भारतीय संस्कृति की समृद्धि और परिवार की एकता का सुंदर उदाहरण हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं और आने वाले समय में भी इस विश्वास के साथ निभाई जाएंगी।

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