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वर्ल्ड बैंक का बेटी प्रोजेक्ट माइक्रो लेवल की महिला उद्यमियों को बना रहा सशक्त

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नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड बैंक इंडिया की ओर से बुधवार को जानकारी देते हुए बताया गया कि वर्ल्ड बैंक के बेटी प्रोजेक्ट (बिजनेस एंटरप्राइज टेक्नोलॉजी फॉर इंडियन वूमन) ने देश में माइक्रो लेवल महिलाओं को डिजिटल टूल्स और फाइनेंशियल मैनेजमेंट में प्रशिक्षित किया है, जिससे वे खुद का बिजनेस शुरू करने में सक्षम हुई हैं।

पायलट प्रोजेक्ट ने अनौपचारिक श्रमिकों के विश्व के सबसे बड़े संगठनों में से एक, सेवा (स्व-नियोजित महिला संघ) के साथ मिलकर गुजरात में महिलाओं को मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करने और उनके वित्त का प्रबंधन करने को लेकर ट्रेनिंग दी है।

वर्ल्ड बैंक इंडिया ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा, “गुजरात में माइक्रो-लेवल वुमन एंटरप्रेन्योरर्स बिजनेस को मैनेज करने के लिए मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल कर रही हैं। उन्हें वर्ल्ड बैंक और सेवा पोर्टल के जरिए फाइनेंशियल मैनेजमेंट और मार्केट एक्सेस को लेकर ट्रेनिंग दी गई है।”

वर्ल्ड बैंक ने एक ब्लॉग पोस्ट में बताया कि यह परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में शुरू की गई ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ पहल का विस्तार है।

बेटी परियोजना ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ‘बेटी कमाओ’ का आयाम जोड़ा।

यह परियोजना देश में उद्यमियों और रोजगार सृजकों के रूप में महिलाओं के विकास का समर्थन करती है।

ब्लॉग पोस्ट में लिखा है, “महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना एक आर्थिक प्राथमिकता है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचेगा।”

गुजरात के चार जिलों मेहसाणा, अहमदाबाद, आणंद और बोडेली में संचालित इस पायलट प्रोजेक्ट ने महिलाओं को उनकी बुककीपिंग में सुधार, उनकी इन्वेंट्री और ऋण का बेहतर प्रबंधन और बिक्री के लिए उत्पादों को व्यवस्थित रूप से सूचीबद्ध करने के लिए मोबाइल-आधारित उपकरणों से लैस किया।

डिजिटल टूल्स ने उन्हें राजस्व, लागत और लाभ जैसी बुनियादी व्यावसायिक अवधारणाओं की बेहतर समझ हासिल करने में मदद की।

हालांकि, परियोजना को लेकर कुछ चुनौतियां भी बनी हुई हैं। ब्लॉग पोस्ट के अनुसार, छोटे-स्तर की कई महिला कारोबारियों तक स्मार्टफोन की पहुंचन नहीं है। जबकि कई ऐसी महिलाएं भी हैं, जिन्हें नई तकनीकों पर भरोसानही हैं। खासकर अपने कारोबार से जुड़ी जानकारियों को लेकर वे इन डिवाइस पर भरोसा नहीं करतीं। इसके अलावा, प्रोजेक्ट को लेकर ट्रेनर्स के सुदूर इलाकों में पहुंचने से जुड़ी बाधा भी बनी हुई है।

–आईएएनएस

एसकेटी/

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