राजस्थान की रेत में दबी कई कहानियां ऐसी हैं जो सिर्फ लोककथाओं में नहीं, बल्कि दिलों की धड़कनों में भी बसी हुई हैं। ऐसी ही एक कहानी है राजकुमार महेंद्र और राजकुमारी मूमल की, जिनकी प्रेमगाथा आज भी सच्चे और निस्वार्थ प्रेम की सबसे सुंदर मिसाल मानी जाती है। यह केवल दो प्रेमियों की कथा नहीं, बल्कि भरोसे, समर्पण, गलतफहमी और अंततः प्रेम की परीक्षा की अमर कहानी है, जो हर उस इंसान को झकझोर देती है जो सच्चे प्रेम में विश्वास रखता है।
मूमल – सौंदर्य और बुद्धिमत्ता की प्रतिमूर्ति
मूमल जैसलमेर की एक राजकुमारी थी, जिसकी सुंदरता, चतुराई और साहस की कहानियां दूर-दूर तक फैली थीं। कहा जाता है कि मूमल अपनी बहनों के साथ एक सुंदर महल में रहती थी, जिसे ‘लोद्रवा’ कहा जाता था। यह स्थान जादुई रहस्यों और चुनौतीपूर्ण परीक्षाओं से भरा हुआ था, जहाँ राजकुमारों को अपने प्रेम और साहस की परीक्षा देनी पड़ती थी। मूमल ने प्रण लिया था कि वह उसी पुरुष से विवाह करेगी जो उसकी शर्तों पर खरा उतरेगा — जिसमें बुद्धिमत्ता, साहस और प्रेम का सच्चा भाव शामिल था।
महेंद्र – सिंध का बहादुर राजकुमार
दूसरी ओर महेंद्र, सिंध का एक राजकुमार था जो न केवल युद्ध कौशल में दक्ष था, बल्कि दिल से भी बेहद सच्चा और प्रेमनिष्ठ था। जब महेंद्र को मूमल के बारे में पता चला, तो वह उसकी परीक्षा देने लोद्रवा पहुंचा। कई राजकुमारों की असफलताओं के बाद, महेंद्र ने अपनी समझदारी और निडरता से मूमल की सभी चुनौतियों को पार किया और दोनों के बीच सच्चे प्रेम की शुरुआत हुई।
प्रेम में परीक्षा और गलतफहमी
मूमल और महेंद्र के प्रेम की गहराई इतनी थी कि वे एक-दूसरे के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। लेकिन जैसा कि हर प्रेम कहानी में होता है, किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। एक रात महेंद्र जब मूमल से मिलने आया, तो मूमल ने अपनी बहन नूर को मजाक में अपने पलंग पर सुला दिया। जब महेंद्र ने यह देखा, तो वह समझ बैठा कि मूमल ने उसे धोखा दिया है। वह बिना कुछ कहे लौट गया — टूटे दिल और टूटी उम्मीदों के साथ।मूमल को जब इस बात का पता चला, तो उसने अपने प्रेमी को सच्चाई बताने की बहुत कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस गलतफहमी ने दो सच्चे प्रेमियों को अलग कर दिया, लेकिन उनके दिलों से एक-दूसरे का प्यार कभी नहीं निकला।
प्रेम का अंतिम बलिदान
कहानी का सबसे करुण और सच्चे प्रेम को परिभाषित करने वाला मोड़ तब आया जब मूमल ने महेंद्र के बिना जीने से इंकार कर दिया। उसने आत्मदाह करने का निर्णय लिया। जब महेंद्र को इसका पता चला, तो वह भागा-भागा मूमल के पास पहुंचा, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। खुद को दोषी मानते हुए महेंद्र ने भी उसकी चिता में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।इस तरह यह प्रेम कहानी एक दिव्य मिलन में तब्दील हो गई, जहाँ दो आत्माएं इस संसार को छोड़कर एक अनंत मिलन की ओर बढ़ गईं।
आज भी प्रेरणा देती है महेंद्र-मूमल की प्रेमगाथा
आज भी राजस्थान की लोकगाथाओं में महेंद्र-मूमल का प्रेम अमर है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम केवल साथ रहने में नहीं, बल्कि समर्पण, विश्वास और त्याग में होता है। यह प्रेम हमें ये भी बताता है कि गलतफहमियां चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अगर विश्वास बना रहे तो प्रेम अटूट रहता है।महेंद्र-मूमल की यह गाथा उन सभी को समर्पित है जो प्रेम को सिर्फ भावनाओं तक नहीं, बल्कि आत्मा के स्तर तक महसूस करते हैं। ये कहानी बताती है कि जब प्रेम निस्वार्थ होता है, तो वह समय, समाज और मृत्यु — किसी भी सीमा में नहीं बंधता।