कई बार हम अपनी काबिलियत, अनुभव या सामाजिक स्थिति को लेकर इतने आत्ममुग्ध हो जाते हैं कि अनजाने में हमारे अंदर अहंकार जन्म ले लेता है। शुरुआत में यह आत्मविश्वास जैसा लगता है, लेकिन धीरे-धीरे यह हमारे स्वभाव, रिश्तों और समाज में हमारे स्थान को नुकसान पहुँचाना शुरू कर देता है। अहंकार, यानी ‘इगो’, एक ऐसा मनोवैज्ञानिक जहर है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को भीतर से कुरेदता है और उसे दूसरों की नजरों में ‘भद्दा’ और ‘अप्रिय’ बना देता है।
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अहंकार की पहचान – कैसे समझें कि आप इसके शिकार हो चुके हैं?
अहंकारी व्यक्ति को यह एहसास नहीं होता कि उसका व्यवहार बदल चुका है। वह सोचता है कि वही सही है, वही सबसे बेहतर है, और दूसरों की सलाह या भावनाओं का कोई मूल्य नहीं है।अगर आपके साथ यह 5 बातें होने लगी हैं, तो समझ जाइए कि अहंकार ने आपके व्यक्तित्व में प्रवेश कर लिया है:
हर बहस में जीतने की आदत
दूसरों की गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना, अपनी को नजरअंदाज करना
किसी की तारीफ सुनकर जलन महसूस करना
सिर्फ अपनी बात कहना, दूसरों को सुनने का समय न देना
माफ़ी मांगने को कमजोरी समझना
अहंकार से बिगड़ते हैं रिश्ते
अहंकार का सबसे पहला असर आपके रिश्तों पर पड़ता है। चाहे वह पारिवारिक संबंध हों, दोस्ती हो या कार्यस्थल पर सहकर्मी – अगर आप हर समय खुद को सबसे ऊपर समझते हैं, तो धीरे-धीरे लोग आपसे दूरी बनाने लगते हैं। आप अकेले पड़ने लगते हैं और यह अकेलापन आपको और अधिक असहिष्णु और कठोर बना देता है।उदाहरण के तौर पर, अगर कोई बॉस अपने अधीनस्थों की बात को तवज्जो नहीं देता, हर बार खुद को सर्वश्रेष्ठ बताता है, तो धीरे-धीरे उसकी टीम में असंतोष पनपने लगता है। वहीं अगर जीवनसाथी के साथ कोई व्यक्ति सिर्फ खुद की ही भावनाओं को प्राथमिकता देता है, तो वैवाहिक जीवन में दरार आना तय है।
अहंकार आपकी छवि को कैसे बनाता है ‘भद्दा’?
‘भद्दा’ शब्द सिर्फ रूप-रंग से नहीं, बल्कि व्यवहार से जुड़ा होता है। जब किसी के हावभाव, बोलचाल, या प्रतिक्रिया में दूसरों के लिए तिरस्कार या अपमान झलकता है, तो वह व्यक्ति न चाहते हुए भी असभ्य और असंवेदनशील नजर आने लगता है।
चेहरे पर हमेशा घमंड झलकता है।
बातचीत में विनम्रता की कमी हो जाती है।
व्यक्ति खुद को ‘खास’ समझने लगता है और दूसरों को ‘नीचा’।
समाज में आलोचना और तिरस्कार का पात्र बन जाता है।
क्या अहंकार से बाहर निकलना संभव है?
हां, लेकिन इसके लिए आत्ममंथन और विनम्रता जरूरी है। व्यक्ति को सबसे पहले खुद स्वीकार करना होगा कि उसमें बदलाव की जरूरत है। जब आप दूसरों की बातें ध्यान से सुनना शुरू करते हैं, आलोचना को खुले मन से स्वीकारते हैं और जरूरत पड़ने पर माफी मांगने में संकोच नहीं करते – तो यह अहंकार से बाहर निकलने की शुरुआत होती है।
कुछ उपाय जो इस दिशा में सहायक हो सकते हैं:
ध्यान और आत्मनिरीक्षण करें – दिन में कुछ समय अकेले बैठकर अपने व्यवहार पर विचार करें।
फीडबैक स्वीकारें – भरोसेमंद लोगों से अपने व्यवहार के बारे में राय लें और उसे सकारात्मक रूप से लें।
‘मैं’ से ‘हम’ की ओर बढ़ें – टीमवर्क और सह-निर्माण की भावना को अपनाएं।
कभी-कभी झुकना भी सीखें – हर बार सही होने का दावा न करें।
कृतज्ञ रहें – दूसरों के योगदान को स्वीकारें और सराहें।
अहंकार और आत्मसम्मान में फर्क समझें
यह जरूरी है कि हम अहंकार और आत्मसम्मान के बीच के फर्क को समझें। आत्मसम्मान हमें मजबूती देता है, जबकि अहंकार हमें दूसरों से अलग और ऊंचा दिखाने की लालसा में डुबो देता है। एक स्वस्थ आत्मसम्मान में विनम्रता होती है, लेकिन अहंकार में दिखावा और असहिष्णुता।
निष्कर्ष
अहंकार एक ऐसा दोष है जो न केवल दूसरों से आपका जुड़ाव तोड़ता है, बल्कि आपको खुद से भी दूर कर देता है। यह आपके व्यक्तित्व को उस स्तर तक गिरा सकता है जहाँ आप सबके बीच होते हुए भी अकेले रह जाते हैं।
अगर आप चाहते हैं कि लोग आपको सम्मान दें, आपके विचारों को गंभीरता से लें, और आपके साथ संबंध बनाए रखें – तो सबसे पहले अपने भीतर झाँकिए और देखें कि कहीं अहंकार आपके व्यक्तित्व को ‘भद्दा’ तो नहीं बना रहा।