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वीडियो में जानिए दिमाग के किस हिस्से में रहती है आपकी सबसे भयानक यादें ? वैज्ञानिकों ने खोज निकाला वो रहस्यमयी स्थान

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हमारे जीवन में कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो भुलाए नहीं भूलते – खासकर वे जो डरावने या मानसिक रूप से झकझोर देने वाले होते हैं। एक दर्दनाक दुर्घटना, बचपन का डर, किसी प्रिय की अचानक मौत या कोई भयानक दृश्य, ये सब हमारे मन में वर्षों तक ज्यों के त्यों बने रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसी डरावनी यादें आखिर हमारे दिमाग में कहां छुपी रहती हैं? अब वैज्ञानिकों ने इस सवाल का चौंकाने वाला जवाब खोज निकाला है।हाल ही में हुई एक शोध में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि पुरानी डरावनी और ट्रॉमेटिक यादें दिमाग के “हिपोकैम्पस” और “एमिगडाला” नामक हिस्सों में संग्रहित होती हैं। ये दोनों हिस्से मिलकर न केवल यादों को संग्रहीत करते हैं, बल्कि यह तय भी करते हैं कि कौन सी यादें लंबे समय तक बनी रहेंगी और कौन सी धीरे-धीरे मिट जाएंगी।

एमिगडाला: भावनाओं की अभिव्यक्ति का केंद्र

एमिगडाला (Amygdala) दिमाग का वह भाग है जो हमारे भावनात्मक अनुभवों को नियंत्रित करता है, खासकर डर, गुस्सा और घबराहट जैसी तीव्र भावनाएं। जब कोई डरावनी घटना घटती है, तो एमिगडाला सक्रिय हो जाता है और शरीर को तुरंत “फाइट या फ्लाइट” मोड में डाल देता है। इस प्रक्रिया के दौरान वह उस घटना को गहराई से दर्ज करता है ताकि भविष्य में अगर वैसी स्थिति दोबारा आए तो हम सतर्क रहें।वैज्ञानिकों का कहना है कि एमिगडाला न केवल डरावनी यादों को संग्रहित करता है बल्कि जब भी हमें कोई वैसी स्थिति याद आती है, तो वही हिस्सा उन्हें दोबारा “जिंदा” कर देता है – जैसे वह घटना अभी-अभी हुई हो। यही कारण है कि कुछ लोग ट्रॉमा से बाहर नहीं निकल पाते और उन्हें बार-बार फ्लैशबैक आते रहते हैं।

हिपोकैम्पस: यादों का पुस्तकालय

दिमाग का दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा हिपोकैम्पस (Hippocampus) होता है, जो हमारी दीर्घकालिक स्मृति से जुड़ा होता है। यह हमारे अनुभवों को क्रमबद्ध रूप से सहेजता है – जैसे कोई वीडियो रिकॉर्डर। हालांकि हिपोकैम्पस स्वयं भावनात्मक नहीं होता, लेकिन यह एमिगडाला के साथ मिलकर तय करता है कि कौन सी यादें इतनी “गंभीर” हैं कि उन्हें लम्बे समय तक दिमाग में रहना चाहिए।शोधकर्ताओं ने चूहों पर किए गए प्रयोगों में देखा कि जब चूहे किसी डरावने अनुभव से गुजरे, तो उनके हिपोकैम्पस और एमिगडाला दोनों अत्यधिक सक्रिय हो गए। और जब वही अनुभव दोबारा सुनाया गया या दोहराया गया, तो वे हिस्से पुनः एक्टिवेट हो गए – ठीक वैसे ही जैसे इंसानों को किसी भयावह हादसे की याद दिला दी जाए।

क्या डरावनी यादों को मिटाया जा सकता है?

यह सवाल अब वैज्ञानिकों के लिए नई खोज की दिशा बन गया है। हाल ही में कुछ रिसर्च में ये कोशिशें हो रही हैं कि क्या इन यादों को मस्तिष्क से मिटाया जा सकता है या उनका असर कम किया जा सकता है। इसके लिए न्यूरोस्टिमुलेशन, माइंडफुलनेस थेरेपी और कुछ नई तरह की दवाओं पर परीक्षण जारी हैं।हालांकि विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सभी डरावनी यादें नुकसानदेह नहीं होतीं। कुछ भयावह अनुभव जीवन की सीख भी बनते हैं, और हमें भविष्य में सतर्क रहने में मदद करते हैं।

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