क्या आपने कभी सोचा है कि जब कोई डरावना या दर्दनाक अनुभव हो जाता है, तो वह दिमाग में किस जगह पर छिप जाता है? क्यों कुछ भयानक यादें समय के साथ फीकी नहीं पड़तीं, बल्कि रातों को जगाती हैं और कई बार बेचैनी का कारण बन जाती हैं? इन सवालों के जवाब हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाले शोध के माध्यम से दिए हैं।वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारा मस्तिष्क (Brain) सिर्फ एक सोचने-समझने का केंद्र नहीं है, बल्कि यह यादों का एक जटिल भंडार है। इसमें सुखद और दुखद दोनों तरह की स्मृतियां सहेजी जाती हैं। लेकिन जब बात डरावनी और सदमे देने वाली यादों की होती है, तो उनका ठिकाना हमारे दिमाग के एक खास हिस्से में होता है जिसे “एमिगडाला” (Amygdala) कहा जाता है।
क्या है एमिगडाला?
एमिगडाला दिमाग के अंदर एक बादाम के आकार की संरचना है जो हमारी भावनाओं, विशेष रूप से डर, चिंता और आक्रोश से जुड़ी होती है। जब भी कोई व्यक्ति किसी भयावह अनुभव से गुजरता है — जैसे दुर्घटना, हमला, बाल्यकाल की कड़वी घटनाएं या कोई सदमा — तो एमिगडाला उस अनुभव से जुड़ी भावनाओं को बहुत तीव्र रूप से दर्ज करता है। यही कारण है कि ऐसे अनुभव हमारे ज़ेहन में बहुत गहराई से छप जाते हैं और कई बार PTSD (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) जैसी स्थितियों का कारण भी बनते हैं।
शोध में हुआ बड़ा खुलासा
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और स्टैनफोर्ड जैसे शीर्ष संस्थानों के न्यूरोसाइंटिस्ट्स द्वारा किए गए हालिया शोध में पाया गया कि जब किसी व्यक्ति को कोई डरावनी घटना याद आती है, तो एमिगडाला सक्रिय हो जाता है और उसी वक्त मस्तिष्क का हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) भी उस दृश्य को दोबारा रीकॉल करने लगता है।हिप्पोकैम्पस मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो समय, स्थान और विवरण से जुड़ी स्मृतियों को सहेजता है। जब एमिगडाला और हिप्पोकैम्पस एक साथ काम करते हैं, तो व्यक्ति को न केवल वह घटना याद आती है, बल्कि वह पूरी भावना के साथ उस क्षण को दोबारा जीने लगता है — यही फ्लैशबैक कहलाता है।
डरावनी यादें क्यों नहीं जातीं?
इस शोध में यह भी पता चला कि डरावनी और ट्रॉमेटिक यादें अक्सर अन्य स्मृतियों की तुलना में ज्यादा देर तक मस्तिष्क में रहती हैं। इसका कारण यह है कि जब हम किसी भय या आघात की स्थिति में होते हैं, तो शरीर में ‘कोर्टिसोल’ और ‘एड्रेनालिन’ जैसे हार्मोन तेजी से निकलते हैं। ये हार्मोन यादों को अधिक मजबूत बनाने में मदद करते हैं, खासतौर पर जब वे दर्दनाक होती हैं।दूसरे शब्दों में, दिमाग ऐसे अनुभवों को ‘जिंदगी के लिए जरूरी’ मानकर उन्हें प्राथमिकता देता है ताकि भविष्य में शरीर ऐसे खतरों से बच सके। यही कारण है कि भयावह यादें जल्दी नहीं मिटतीं।
क्या डरावनी यादों को मिटाया जा सकता है?
वैज्ञानिकों के अनुसार, डरावनी और कष्टदायक यादों को पूरी तरह मिटाना संभव नहीं है, लेकिन उन्हें मस्तिष्क की सतह से धीरे-धीरे कम किया जा सकता है। इसके लिए कुछ खास उपाय सुझाए गए हैं:
साइक्लोथेरेपी (Counseling/Therapy): प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ द्वारा दी गई काउंसलिंग भयावह अनुभवों को स्वीकारने और उन्हें संभालने में मदद करती है।
एक्सपोजर थेरेपी: इसमें व्यक्ति को सुरक्षित माहौल में धीरे-धीरे उस भयावह अनुभव से जोड़कर उसके प्रति संवेदनशीलता कम की जाती है।
माइंडफुलनेस और मेडिटेशन: ध्यान और वर्तमान में जीने की कला मस्तिष्क की प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करती है और मानसिक शांति प्रदान करती है।
रचनात्मक अभिव्यक्ति: लेखन, कला, संगीत या किसी अन्य रचनात्मक माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं को बाहर निकाल सकता है जिससे मानसिक दबाव कम होता है।EMDR तकनीक (Eye Movement Desensitization and Reprocessing): यह एक विशिष्ट थेरेपी है जिसमें आंखों की गति के माध्यम से मस्तिष्क को पुरानी यादों से अलग किया जाता है।
हमारा दिमाग एक अद्भुत संरचना है, जो अनुभवों को संजोता भी है और समय आने पर उन्हें दोहराता भी है। डरावनी यादें जब बार-बार आती हैं, तो यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती हैं। लेकिन यदि हम यह जान लें कि ये यादें हमारे मस्तिष्क के किस हिस्से में बसती हैं और कैसे उन्हें शांत किया जा सकता है, तो हम अपने जीवन को फिर से सामान्य बना सकते हैं।