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वीडियो में जाने अहंकारी और अहंकारहीन व्यक्ति की पहचान और दोनों में गहरा अंतर, समझे दोनों का असली स्वभाव

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इंसान के व्यक्तित्व को परिभाषित करने वाले कई पहलुओं में से सबसे अहम उसका व्यवहार है। व्यवहार ही यह तय करता है कि वह दूसरों की नज़रों में कितना सम्मानित है और उसका जीवन कितना संतुलित। अक्सर लोग कहते हैं कि अमुक व्यक्ति बहुत अहंकारी है, जबकि किसी और को वे विनम्रता का प्रतीक मानते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि वास्तव में अहंकार और अहंकारहीनता में अंतर कैसे किया जाए? और किस प्रकार दोनों ही स्थितियाँ समाज और व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालती हैं।

अहंकार की पहचान

अहंकार का सीधा संबंध व्यक्ति की सोच और उसके आत्मबोध से जुड़ा होता है। अहंकारी व्यक्ति प्रायः अपनी उपलब्धियों, ज्ञान या संपत्ति का दिखावा करता है। वह हमेशा दूसरों से श्रेष्ठ साबित होने की कोशिश करता है और चाहता है कि लोग उसकी प्रशंसा करें।
ऐसे व्यक्ति के व्यवहार में अक्सर यह बातें देखने को मिलती हैं:
बातचीत में ‘मैं’ शब्द का अत्यधिक प्रयोग।
दूसरों की राय को महत्व न देना।
आलोचना सुनने पर तुरंत रक्षात्मक या आक्रामक हो जाना।
हमेशा अपनी सफलता का बखान करना।
दूसरों को नीचा दिखाकर स्वयं को बड़ा साबित करना।
यह अहंकार धीरे-धीरे व्यक्ति को समाज से दूर कर देता है। लोग उसके साथ खुलकर बात करने से कतराने लगते हैं और कई बार रिश्ते भी टूट जाते हैं।

अहंकारहीन व्यक्ति की पहचान

इसके विपरीत, अहंकारहीन व्यक्ति अपनी उपलब्धियों को कभी अहंकार का कारण नहीं बनाता। वह अपनी सफलता का श्रेय सिर्फ खुद को नहीं, बल्कि परिस्थितियों, ईश्वर, परिवार और समाज को भी देता है।

अहंकारहीन व्यक्ति की कुछ प्रमुख विशेषताएँ होती हैं:
वह अपनी बात कहते समय दूसरों को भी सुनने का अवसर देता है।
आलोचना या सुझावों को सहजता से स्वीकार करता है।
सफलता मिलने पर विनम्र रहता है और असफलता में धैर्य बनाए रखता है।
दूसरों के सम्मान और भावनाओं की कद्र करता है।
सेवा और सहयोग को जीवन का अहम हिस्सा मानता है।
ऐसा व्यक्ति समाज में लोकप्रिय होता है और लोग उसके साथ समय बिताना पसंद करते हैं।

अंतर को समझना क्यों ज़रूरी है?

आज की प्रतिस्पर्धा भरी दुनिया में सफलता पाना कठिन नहीं, लेकिन उसे संभालना मुश्किल है। सफलता के साथ अहंकार आना स्वाभाविक है, मगर वही अहंकार यदि नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो यह व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है। दूसरी ओर, अहंकारहीनता व्यक्ति को न केवल समाज में आदर दिलाती है, बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करती है।

धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण

भारतीय संस्कृति में अहंकार को सबसे बड़ा दोष बताया गया है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि अहंकार इंसान को विनाश की ओर ले जाता है। वहीं संत कबीरदास ने कहा – “जहाँ अहंकार है, वहाँ प्रेम नहीं।” अहंकारहीनता को भक्ति और आध्यात्मिकता का आधार माना गया है।

सामाजिक प्रभाव

अहंकार व्यक्ति को अकेला कर देता है। परिवार और मित्र उससे दूरी बनाने लगते हैं। कार्यस्थल पर भी ऐसा व्यक्ति सहयोगियों के बीच लोकप्रिय नहीं होता। जबकि अहंकारहीन व्यक्ति सहयोग, सम्मान और सद्भावना का वातावरण बनाता है। उसकी उपस्थिति से सकारात्मक ऊर्जा फैलती है और वह एक आदर्श नेतृत्वकर्ता के रूप में सामने आता है।

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