अहंकार यानी ‘मैं’ की भावना — जब यह संतुलन में हो, तो आत्मविश्वास बनकर सफलता की सीढ़ियाँ तय कराता है, लेकिन जब यह सीमाएं लांघता है, तो व्यक्ति के पतन का कारण बन जाता है। इतिहास, धर्म, मनोविज्ञान और आज की समाजिक स्थिति — सभी इस एक ही बात की पुष्टि करते हैं कि हद से ज्यादा अहंकार विनाश की ओर ले जाता है।
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अहंकार और आत्मसम्मान में अंतर जरूरी है समझना
कई बार लोग अहंकार को आत्मसम्मान समझ बैठते हैं। जबकि आत्मसम्मान आत्म-बोध पर आधारित होता है, जिसमें व्यक्ति अपनी सीमाओं और गुणों को पहचानते हुए दूसरों का भी आदर करता है। इसके विपरीत अहंकार व्यक्ति को दूसरों से श्रेष्ठ मानने का भ्रम देता है। यही भ्रम जब बढ़ता है, तो इंसान अपने रिश्ते, करियर, समाज और यहाँ तक कि खुद से भी दूर होता चला जाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण: रामायण और महाभारत की सीख
भारतीय धार्मिक ग्रंथों में अहंकार के परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
रामायण में रावण एक ज्ञानी, शक्तिशाली और समृद्ध राजा था, लेकिन उसका अहंकार उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया। उसने सीता हरण कर के भगवान राम से शत्रुता मोल ली और अंततः उसका समूल नाश हो गया।
महाभारत में दुर्योधन का अहंकार, पांडवों के प्रति द्वेष और सत्ता की लालसा ने पूरा कौरव वंश समाप्त करवा दिया।इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि जब ‘मैं’ की भावना इतनी बढ़ जाए कि वह तर्क, न्याय और सहानुभूति को दबा दे — तो विनाश निश्चित है।
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण: जब अहंकार बनता है मानसिक अवरोध
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अत्यधिक अहंकार व्यक्ति को “नरकसिस्टिक” यानी आत्ममुग्धता की ओर धकेलता है। ऐसे लोग दूसरों की राय को महत्व नहीं देते, आलोचना से चिढ़ते हैं और अपनी गलती स्वीकार नहीं करते। धीरे-धीरे उनका सामाजिक दायरा सिमटने लगता है, रिश्ते कमजोर हो जाते हैं और कार्यस्थल पर भी लोग उनसे कटने लगते हैं।एक रिपोर्ट के अनुसार, 80% कॉर्पोरेट विफलताएं नेतृत्वकर्ताओं के अहंकार और संवादहीनता के कारण होती हैं।इसका असर सिर्फ व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि परिवार, संस्था और समाज तक फैलता है।
राजनीति और नेतृत्व में अहंकार का प्रभाव
इतिहास गवाह है कि जब नेताओं ने अपनी शक्ति और पद का दुरुपयोग कर अहंकारवश फैसले लिए, तो परिणाम विनाशकारी हुए।हिटलर, मुसोलिनी से लेकर गद्दाफी तक — सभी की एक विशेषता थी: अहंकारपूर्ण सत्ता का मोह।भारत में भी कई ऐसे राजनीतिक उदाहरण हैं जहाँ बड़े नेताओं का पतन उनके अहंकार और आलोचना को न स्वीकारने की प्रवृत्ति से जुड़ा रहा।
आधुनिक समय में सोशल मीडिया और ‘इगो’ कल्चर
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया ने लोगों को अभिव्यक्ति का माध्यम तो दिया है, लेकिन साथ ही ‘इगो बूस्टिंग प्लेटफॉर्म’ भी बना दिया है।लाइक्स, कमेंट्स और फॉलोअर्स की दौड़ में लोग अपने वास्तविक व्यक्तित्व से दूर होते जा रहे हैं।जब सोशल वेलिडेशन ही आत्म-मूल्यांकन का आधार बन जाए, तो अहंकार तेजी से पनपता है — और यही लोगों को डिप्रेशन, अकेलेपन और गुस्से की ओर ले जाता है।
तो क्या करें? अहंकार से कैसे बचें?
स्व-चिंतन और आत्ममूल्यांकन: हर दिन कुछ मिनट खुद से सवाल करें — क्या मैं सबको सुनता हूं? क्या मैं हर बार खुद को ही सही मानता हूं?
आलोचना को स्वीकारें: हर आलोचना में सीख छुपी होती है। आलोचना को व्यक्तिगत हमला न मानें।
योग और ध्यान: मानसिक संतुलन के लिए योग और मेडिटेशन जरूरी है। यह आपको ‘अहम’ की पकड़ से बाहर निकलने में मदद करता है।
कृतज्ञता का अभ्यास करें: जिन लोगों ने जीवन में मदद की, उन्हें याद रखें और आभार प्रकट करें।
सच्चे रिश्तों को महत्व दें: आपके जीवन में ऐसे लोग जरूर होंगे जो आपकी सच्चाई से परिचित हैं — उन्हें नजरअंदाज न करें।