अहंकार जितना मजबूत होगा, रिश्ते उतने ही कमजोर होंगे।” यह एक साधारण-सी प्रतीत होने वाली पंक्ति हमारे जीवन के सबसे जटिल पहलू — रिश्तों — की गहराई से पड़ताल करती है। यह सिर्फ एक कथन नहीं, बल्कि एक गूढ़ जीवन-दर्शन है, जो हमें भीतर तक झकझोर सकता है, यदि हम वास्तव में इसे समझने की कोशिश करें।आज के समय में, जब व्यक्ति सफलता, प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान की दौड़ में आगे निकलने की होड़ में है, वहाँ अहंकार (Ego) एक अनचाहा लेकिन अनिवार्य अंग बनता जा रहा है। यह अहंकार धीरे-धीरे हमारे व्यवहार, सोच और संबंधों को इस हद तक प्रभावित करता है कि हम ये भी नहीं देख पाते कि हम किन संबंधों को खोते जा रहे हैं। हम यह भी नहीं समझ पाते कि जिन रिश्तों को हमने वर्षों से सींचा है, वे कैसे हमारी “मैं” की भावना की आग में जलने लगते हैं।
” style=”border: 0px; overflow: hidden”” title=”अहंकार का त्याग कैसे करें | ओशो के विचार | Osho Hindi Speech | अहंकार क्या है और इसे कैसे पराजित करे” width=”695″>
रिश्तों में अहंकार की दखलअंदाज़ी
रिश्ते मूलतः प्रेम, समझ, त्याग और सहनशीलता की नींव पर टिके होते हैं। लेकिन जब किसी एक पक्ष का अहं बहुत प्रबल हो जाता है, तो वह स्वाभाविक रूप से दूसरों की बातों को सुनना बंद कर देता है। उसे लगता है कि वही सही है, वही श्रेष्ठ है और उसकी भावनाएँ सबसे ज़्यादा मायने रखती हैं। यहीं से शुरुआत होती है रिश्तों में दरार की।एक उदाहरण के रूप में यदि पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो जाए, तो सामान्यतः हल निकालने का एक सरल रास्ता है – संवाद। लेकिन यदि दोनों में से कोई भी यह मानने को तैयार न हो कि वह गलत हो सकता है, तो स्थिति टकराव की ओर जाती है। यही अहंकार है, जो उन्हें एक-दूसरे के नज़दीक लाने की बजाय और अधिक दूर कर देता है।
“मैं” बनाम “हम” की लड़ाई
रिश्तों की सबसे खूबसूरत बात यह होती है कि दो लोग अपना “मैं” छोड़कर “हम” बनाते हैं। लेकिन जब “मैं” बहुत बड़ा हो जाए तो “हम” का अस्तित्व खत्म होने लगता है। यह सिर्फ पति-पत्नी के बीच नहीं, बल्कि दोस्ती, भाई-बहन, माता-पिता और बच्चों के बीच भी होता है। जब कोई भी रिश्ता सुनने से ज़्यादा बोलने पर और स्वीकारने से ज़्यादा जिद पर टिकने लगे, तो वहां प्यार की जगह ईगो (ego) हावी हो जाता है।
सामाजिक संदर्भ में अहंकार का प्रभाव
आधुनिक समाज में व्यक्ति की पहचान उसके पेशे, उपलब्धियों और सामाजिक स्थिति से जुड़ने लगी है। ऐसे में अपने अस्तित्व और सम्मान को लेकर लोग ज़्यादा संवेदनशील हो गए हैं। छोटे-छोटे मतभेद अब आसानी से बड़े झगड़ों का रूप ले लेते हैं, क्योंकि हर कोई खुद को सही सिद्ध करना चाहता है।आजकल सोशल मीडिया और डिजिटल लाइफस्टाइल ने भी इस समस्या को और बढ़ाया है। लोग अपने विचार, भावनाएं और गुस्सा तुरंत पोस्ट कर देते हैं, बिना यह सोचे कि इसका असर सामने वाले पर क्या पड़ेगा। असल संवाद की जगह अब आभासी संवाद ने ले ली है, जहाँ संवेदनाएं नहीं, प्रतिक्रियाएं (reactions) ज़्यादा होती हैं।
अहंकार तोड़ें, रिश्ते जोड़ें
यह समझना ज़रूरी है कि अहंकार कोई शक्ति नहीं, बल्कि एक अवरोध है, जो हमें सच्चे रिश्तों से वंचित कर देता है। रिश्तों में अपनी गलती को मान लेना या माफ कर देना कमजोरी नहीं, बल्कि समझदारी है। जब आप सामने वाले की भावनाओं को महत्व देने लगते हैं, तब ही आप एक गहरे और स्थायी रिश्ते की ओर बढ़ते हैं।हमें यह भी समझना होगा कि हम सभी मनुष्य हैं, और गलतियां हमसे भी हो सकती हैं। रिश्तों को बचाने के लिए कई बार हमें अपने अहंकार को गिरवी रखना पड़ता है। एक छोटी-सी ‘माफ करना’ की पंक्ति या ‘तुम सही थे’ जैसी स्वीकृति कई बार टूटते रिश्तों को जोड़ सकती है।
अहंकार जितना मजबूत होगा, रिश्ते उतने ही कमजोर होंगे” — यह पंक्ति केवल एक दर्शन नहीं, बल्कि समाज, परिवार और आत्मिक विकास की कुंजी है। अगर हम सच में अपने संबंधों को मज़बूत बनाना चाहते हैं, तो हमें अपने भीतर झाँकना होगा, और यह देखना होगा कि कहीं हमारे रिश्तों की दरार का कारण हमारा अपना “मैं” तो नहीं।जब हम अपने “मैं” को थोड़ा पीछे कर देते हैं, तब “हम” की शक्ति उभरती है। और यही “हम” हमें जीवन की सबसे सुंदर, सबसे सजीव और सबसे संतोषजनक भावना – प्रेम और अपनापन – की ओर ले जाता है।