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शब्द कब करते हैं चमत्कार और कब कर देते हैं प्रहार, दुर्भाग्य या सौभाग्य के सृजन में शब्दों का खेल

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“शब्द” महज ध्वनि मात्र नहीं होते, ये विचारों, भावनाओं और कर्मों के वाहक होते हैं। इतिहास गवाह है कि एक वाणी ने युद्ध छेड़ दिया तो किसी की एक मीठी बात ने जीवन का संकट टाल दिया। शब्दों का खेल बड़ा गूढ़ है – यह न केवल दूसरों के मन पर प्रभाव डालता है, बल्कि खुद के भाग्य और जीवन की दिशा भी निर्धारित करता है। आज की भागदौड़ और तनाव से भरी जिंदगी में जब बोलने से पहले सोचने का समय नहीं मिलता, तब अक्सर शब्दों के तीर दूसरों को नहीं, खुद हमें ही घायल कर देते हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि शब्द कब चमत्कार करते हैं और कब प्रहार बन जाते हैं?

जब शब्द बनते हैं चमत्कार:

  1. प्रेरणा और उत्साह का संचार:
    एक शिक्षक की सटीक कही गई बात, माता-पिता का स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन या मित्र की दिल से कही तारीफ किसी व्यक्ति की सोच और आत्मबल को आसमान तक पहुंचा सकती है। ये सकारात्मक शब्द जीवन का रुख बदल सकते हैं।

  2. संवेदनाओं का स्पर्श:
    जब कोई दुखी होता है और आप उसके लिए दो सहानुभूति भरे शब्द बोलते हैं – “मैं समझ सकता हूं” या “मैं तुम्हारे साथ हूं” – तो यह भावनात्मक चमत्कार की तरह काम करता है।

  3. मनोकामना सिद्धि में सहायक:
    प्राचीन शास्त्रों में मंत्रों को ‘शब्द शक्ति’ कहा गया है। महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र या ओम नमः शिवाय जैसे पवित्र शब्दों के नियमित उच्चारण से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।

जब शब्द बनते हैं प्रहार:

  1. असभ्य या कटु वाणी का परिणाम:
    कभी-कभी गुस्से में बोले गए दो शब्द रिश्तों को तोड़ने के लिए काफी होते हैं। एक अपमानजनक टिप्पणी वर्षों के स्नेह को समाप्त कर सकती है। यही शब्द जब गलत समय पर या गलत भाव से बोले जाते हैं, तो प्रहार बन जाते हैं।

  2. शब्दों से बनता है दुर्भाग्य:
    नकारात्मक विचारों को बार-बार दोहराना जैसे “मेरे बस का नहीं”, “मैं असफल हो जाऊंगा”, “कुछ नहीं बदलेगा” – यह आत्मविश्वास को खत्म करता है और धीरे-धीरे दुर्भाग्य को बुलाता है।

  3. अविवेकी सलाह और वादे:
    जब हम बिना समझे, बिना तथ्यों के, किसी को सलाह देते हैं या वादे करते हैं, तो ऐसे शब्द धोखे की श्रेणी में आ जाते हैं। इसका प्रभाव न केवल दूसरों पर पड़ता है बल्कि अपने जीवन में भी असंतुलन लाता है।

शब्दों की शक्ति को कैसे संभालें?

  • बोलने से पहले सोचें – “क्या ये जरूरी है?”, “क्या इससे किसी को दुख पहुंचेगा?”

  • मीठा बोलें, लेकिन सच्चा बोलें – शब्दों में मिठास हो, पर झूठ न हो।

  • सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें – जैसे “मैं कर सकता हूं”, “सब अच्छा होगा”, “धन्यवाद”।

  • ध्यान और जप से शब्दों को ऊर्जा दें – दिन की शुरुआत मंत्रों से करें, ये शब्दों को शक्ति देंगे।

निष्कर्ष:

शब्दों में ब्रह्म की शक्ति होती है। यह जितनी निर्मल होगी, उतना ही जीवन पवित्र होगा। एक सही समय पर बोला गया सधा हुआ वाक्य किसी का जीवन संवार सकता है, जबकि एक कटु शब्द जीवन भर की टीस दे सकता है। इसलिए शब्दों को सोच-समझकर बोलें – क्योंकि ये ही आपके सौभाग्य या दुर्भाग्य के निर्माता हैं।

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