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शादी के बाद 45 दिन तक दुल्हन को बाहर क्यों नहीं भेजते? रहस्य और ज्योतिषीय कारण

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शादी होते ही हनीमून की प्लानिंग शुरू हो जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं, भारतीय परंपरा कहती है कि दुल्हन को 45 दिनों तक बाहर नहीं भेजना चाहिए? क्या यह सिर्फ एक मिथक है या इसमें कोई गंभीर चेतावनी छिपी है? जानिए कैसे शरीर, मन और ग्रह मिलकर तय करते हैं कि शादी के बाद पहली यात्रा कैसी होगी। भारतीय परंपरा में नई दुल्हन को शादी के बाद यात्रा न करने की सलाह दी जाती है, इसके पीछे कुछ गहरे पारंपरिक और शास्त्रीय कारण हैं। ये परंपराएं सिर्फ अंधविश्वास नहीं हैं बल्कि शरीर, मन और ग्रहों की गंभीरता से जुड़ी हैं। कैसे?

शादी के बाद हर दुल्हन के लिए एक समय ऐसा आता है जब उसे अपने शरीर, मन और रिश्तों को नए सांचे में ढालना होता है। इस समय को ‘शरीर और मन का संतुलन’ कहा जाता है, जिसे शास्त्रों में ‘ऋतु ​​शुद्धि’, ‘गृहस्थ व्रत’ या ‘गर्भ संयम’ कहा जा सकता है और आधुनिक व्याख्या में इसे शादी के बाद महिला शरीर और मानसिक ऊर्जा के संतुलन को इंगित करने के लिए ‘योनिक संयोजन’ कहा जा सकता है। इसे अंग्रेजी में पोस्ट-मैरिटल फिजिकल एंड इमोशनल एडजस्टमेंट कहते हैं। ज्योतिष और शास्त्रों में इसे ‘योनिक संयोजन’ यानी नवविवाहित महिला के शरीर और मन का संतुलन कहा जाता है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है।

पोस्ट-मैरिटल बायो-साइको एडजस्टमेंट पीरियड एक महिला के लिए:

  • हार्मोनल संतुलन
  • मानसिक स्थिरता
  • नवग्रह प्रभावों के साथ तालमेल
  • और यह नवविवाहित जीवन की तैयारी का समय है।

बृहद्वाज गृह्यसूत्र में भी इसके बारे में एक श्लोक है, ‘योनिसंस्कारं गृहस्थाश्रमे प्रवृत्ते स्त्री चरेत शुचिन व्रतम्’ इसका मतलब है कि जब कोई महिला विवाह के बाद गृहस्थ जीवन में प्रवेश करती है, तो उसे शुद्ध और संयमित आचरण का व्रत लेना चाहिए ताकि उसका शरीर, मन और ऊर्जा विवाह के बाद की स्थिति के अनुसार शुद्ध और संतुलित हो सके। आज के आधुनिक युग में इस श्लोक का अर्थ समझें तो दुल्हन को विवाह के बाद एक समायोजन अवधि मिलनी चाहिए, जहां उसे भावनात्मक विनियमन, हार्मोनल संरेखण और घरेलू एकीकरण के लिए समय और समर्थन मिलता है।

अगर अनदेखा किया जाए तो क्या हो सकता है?

हाल ही में राजा रघुवंशी और सोनम का मामला सामने आया है, जिसकी पूरे देश में काफी चर्चा है। यह मामला खबरों और सोशल मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। इसे लेकर कई तरह के ट्रेंड चल रहे हैं। इस मामले में नवविवाहित जोड़ा यात्रा पर गया था और फिर पति की मौत हो गई और दुल्हन खुद लापता हो गई, 9 जून को पता चला कि लापता दुल्हन को पुलिस ने ढूंढ लिया है। इस घटना से दोनों परिवारों में दुख का माहौल है। राजा रघुवंशी और सोनम का यह मामला दर्शाता है कि ज्योतिषीय चेतावनियां सिर्फ मान्यता नहीं बल्कि जीवन की सुरक्षा हैं। क्योंकि एक ज्योतिषी ने ग्रहों की चाल देखकर इस संबंध में पहले ही चेतावनी दे दी थी।

ज्योतिषीय आधार पर इसे कैसे समझें

विवाह से पहले कुंडली मिलान करते समय केवल गुण ही नहीं, बल्कि दशा और ग्रह बल की स्थितियों की भी समीक्षा करें। यदि कुंडली में पाप ग्रह सक्रिय हैं तो यात्रा, तीर्थयात्रा और हवाई यात्रा से बचें। 30 से 45 दिनों तक दुल्हन को घर पर ही रखें। यह पवित्र स्त्री एकीकरण अवस्था है। शादी एक नई शुरुआत है और इसे शांत मन से महसूस किया जाना चाहिए। आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित होकर इसके दर्शन से दूर नहीं भागना चाहिए, बल्कि रुककर सोचना और विचार करना चाहिए, जो जीवन की नई यात्रा के लिए आवश्यक है।

हमेशा ध्यान रखें कि यह जीवन की ऐसी यात्रा की शुरुआत है, जहां से जो छूट गया, वह कभी वापस नहीं आएगा। इसीलिए हमारे चरण के पूर्वजों ने इसे ‘योनि संयोजन’ कहा, आज का विज्ञान इसे विवाहोत्तर शारीरिक और भावनात्मक समायोजन कहता है। दोनों का सार है ‘महिला के मन, शरीर और ग्रहों को समय दें ताकि वह अपने नए जीवन को सुरक्षित और सशक्त बनाने की प्रक्रिया में प्रवेश कर सके।’

प्रश्न: योनिक संयोजन को आसान शब्दों में कैसे समझें?

यह नवविवाहित जोड़े के शरीर और मन का समायोजन है, जो विवाह के बाद जैविक और मानसिक स्थिरता के लिए एक आवश्यक कदम है।

प्रश्न: क्या योनिक संयोजन एक शास्त्रीय शब्द है?

नहीं, यह एक आधुनिक व्याख्या है जिसका उपयोग विवाह के बाद महिला शरीर और मानसिक ऊर्जा के संतुलन को इंगित करने के लिए किया जाता है। शास्त्रों में इसे ‘ऋतु ​​शुद्धि’, ‘गृहस्थ व्रत’ या ‘गर्भ संयम’ जैसे नामों से वर्णित किया गया है।

प्रश्न: इसका अंग्रेजी में क्या अर्थ है?

विवाह के बाद शारीरिक और भावनात्मक समायोजन चरण” या “पवित्र स्त्री स्थिरीकरण।

प्रश्न: क्या यह केवल एक धार्मिक मान्यता है?

नहीं, यह शास्त्रों और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान दोनों द्वारा सिद्ध है।

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