हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहाँ कई दोहरे मापदंड हैं। इनमें से एक यह है कि शादी से पहले प्यार करना शर्मनाक है, जबकि शादी के बाद प्यार सम्मानजनक हो जाता है। अगर कोई जोड़ा शादी से पहले एक-दूसरे का हाथ थाम लेता है, तो उसे बेशर्म करार दिया जाता है, लेकिन शादी के बाद वही जोड़ा एक “परफेक्ट कपल” बन जाता है। क्या शादी के बाद प्यार वाकई इतना बदल जाता है? या यह सिर्फ़ समाज की झूठी मान्यताओं का खेल है? आइए समझने की कोशिश करें कि समाज शादी से पहले प्यार को शर्मनाक और शादी के बाद प्यार को सम्मानजनक क्यों मानता है।
बिना इजाज़त के प्यार करना ग़लत है!
दरअसल, समाज को प्यार से कोई दिक्कत नहीं है, उसे दिक्कत इस बात से है कि वह प्यार “किसकी इजाज़त” से हो रहा है। शादी से पहले प्यार को गलत इसलिए माना जाता है क्योंकि उसे माता-पिता, रिश्तेदारों और जाति-बिरादरी की मंज़ूरी नहीं होती। लेकिन जैसे ही शादी किसी धार्मिक रीति-रिवाज़ से होती है, वही रिश्ता स्वीकार कर लिया जाता है। यहाँ प्यार की गहराई मायने नहीं रखती, बल्कि सामाजिक इजाज़त मायने रखती है।
ख़ुशी से ज़्यादा ज़रूरी है सम्मान!
“लोग क्या कहेंगे?” का डर हमारे समाज में यह भावना इतनी गहरी है कि व्यक्ति की खुशी का कोई मोल नहीं रह जाता। अगर लड़का-लड़की अपनी मर्ज़ी से प्यार करते हैं, तो उन्हें परिवार की इज़्ज़त से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन अगर यही रिश्ता शादी के बाद हो, तो परिवार की गरिमा का प्रतीक बन जाता है। इससे साबित होता है कि समाज को प्यार में नहीं, बल्कि नियंत्रण में दिलचस्पी है।
सिर्फ़ शादी ही प्यार को पवित्र बनाती है!
क्या शादी वाकई प्यार के मायने बदल देती है? कल तक गंदा रहा प्यार आज पवित्र कैसे हो गया? दरअसल, शादी बस एक बंधन है, जो रिश्ते को क़ानूनी और धार्मिक मान्यता देता है। प्यार तो वही रहता है, बस समाज की नज़र में उसकी वैधता बदल जाती है।
भेदभाव इसका एक बड़ा कारण है
लड़कियों के लिए यह दोहरा मापदंड ज़्यादा कठोर है। अगर कोई लड़की शादी से पहले प्यार करती है, तो उसे “चरित्रहीन” कहा जाता है, लेकिन लड़के के लिए इसे एक भूल माना जाता है। शादी के बाद भी लड़की से “सीता-सावित्री” बनने की उम्मीद की जाती है, जबकि लड़के के लिए उदारता बरती जाती है। यह पितृसत्तात्मक सोच दर्शाती है कि समाज लड़कियों के प्यार को शक की नज़र से देखता है।
माता-पिता की पसंद बेहतर!
हमारा समाज मानता है कि अगर रिश्ता माता-पिता तय करें, तो बेहतर है। लेकिन अगर दो लोग खुद एक-दूसरे को चुनते हैं, तो ऐसा नहीं माना जाता। ऐसा माना जाता है कि उम्र और अनुभव की कमी के कारण युवा अपने लिए सही जीवनसाथी नहीं चुन पाते। इसलिए, माता-पिता की पसंद को ज़्यादा सुरक्षित माना जाता है।