भगवान शिव की पूजा में शिवलिंग की परिक्रमा का विशेष महत्व होता है। हिन्दू धर्म में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, परंतु बहुत कम लोग इस बात की जानकारी रखते हैं कि शिवलिंग की परिक्रमा कैसे और किस दिशा से की जानी चाहिए। यदि भगवान शिव की परिक्रमा नियमों के अनुसार की जाए, तो भक्त को विशेष पुण्य प्राप्त होता है, वहीं नियमों का उल्लंघन करने से पुण्य के बजाय अनजाने में पाप का भागी बन सकता है। तो आइए जानते हैं शिवलिंग की परिक्रमा से जुड़े शास्त्रीय नियम, दिशा और उसके पीछे का आध्यात्मिक महत्व।
शिवलिंग की परिक्रमा किस दिशा से करनी चाहिए?
शिवपुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, शिवलिंग की परिक्रमा बाईं ओर से (वाम दिशा) प्रारंभ करनी चाहिए और परिक्रमा अर्धचंद्राकार (आधा चक्कर) तक ही करनी चाहिए। शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा (360 डिग्री) करना वर्जित माना गया है। परिक्रमा करते समय “यमरेखा” यानी लिंग के पीछे का वह भाग, जहां जल अर्पित होता है (जालधारी या जलनाली), उसे पार नहीं करना चाहिए। इस रेखा को पार करना अशुभ माना गया है।
परिक्रमा की विधि क्या है?
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भक्त शिवलिंग की बाईं ओर से परिक्रमा शुरू करता है।
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जब वह जालधारी (पानी निकलने वाली नाली) के पास पहुंचे, तो वहीं रुक जाए।
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फिर वहीं से उलटी दिशा में वापस आए और अपने स्थान पर पहुंचकर प्रणाम करें।
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इस तरह की परिक्रमा को “अर्ध परिक्रमा” कहा जाता है, जो शिवभक्ति में सर्वमान्य है।
शिवलिंग की परिक्रमा से जुड़ी धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिवलिंग की जालधारी दिशा यम का प्रतीक मानी जाती है। इसलिए इस दिशा से गुजरना मृत्यु को निमंत्रण देना माना जाता है। शास्त्रों में लिखा गया है कि भगवान शिव की परिक्रमा करते समय यमरेखा का उल्लंघन करना गंभीर भूल होती है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि परिक्रमा करते समय मन, वचन और कर्म से पवित्र रहना चाहिए। ध्यान, मंत्र और श्रद्धा के साथ की गई परिक्रमा जीवन में शुभ फल प्रदान करती है।
परिक्रमा के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
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परिक्रमा के समय भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
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परिक्रमा नंगे पांव करें और जमीन पर दृष्टि रखकर शांत मन से करें।
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शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, भांग, धतूरा चढ़ाने के बाद ही परिक्रमा आरंभ करें।
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परिक्रमा करते समय मन में कोई नकारात्मक विचार या द्वेष नहीं होना चाहिए।
शिवलिंग की परिक्रमा क्यों है महत्वपूर्ण?
शिवलिंग की परिक्रमा व्यक्ति के अहंकार को समाप्त करती है और विनम्रता सिखाती है। यह आत्मचिंतन और भक्ति का मार्ग है। कहा जाता है कि परिक्रमा से व्यक्ति के पूर्वजन्म के पाप भी नष्ट होते हैं और भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। शिवलिंग की परिक्रमा एक आध्यात्मिक अभ्यास है जो केवल चलने भर का क्रियाकलाप नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और नियमों का पालन है। यदि इसे विधिवत और सही दिशा में किया जाए, तो यह न केवल भक्त के पापों को हर लेता है, बल्कि उसे जीवन में सुख, शांति और मोक्ष की ओर भी ले जाता है। इसलिए अगली बार जब भी आप शिव मंदिर जाएं, तो इन नियमों का पालन अवश्य करें और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करें।