हिंदू धर्म में भगवान शिव का तांडव नृत्य एक अत्यंत महत्वपूर्ण और रहस्यमय प्रतीक माना जाता है। शिव तांडव वह दिव्य नृत्य है जिसमें शिवजी संहार, सृजन, और संरक्षण के चक्र को दर्शाते हैं। इस तांडव के पीछे एक गहरी पौराणिक कथा और दार्शनिक संदेश छुपा हुआ है। साथ ही, शिव के नटराज रूप में उनके पैरों के नीचे जो आकृति होती है, उसका भी विशेष महत्व है, जिसे समझना ज़रूरी है।
शिव तांडव की पौराणिक कथा
शिव तांडव की कथा के अनुसार, यह नृत्य भगवान शिव ने तब किया था जब वे अपने राग रूपी क्रोध को प्रकट कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि शिव का यह तांडव नृत्य तब हुआ जब उनके प्रियपुत्र कार्तिकेय और पार्वती के बीच विवाद हुआ था, या जब शनि देव ने उनकी पत्नी पार्वती का अपमान किया था। इस गहन क्रोध में शिव ने तांडव नृत्य आरंभ किया, जो सृष्टि के विनाश और पुनः सृजन का प्रतीक है।
शिव तांडव एक दिव्य नृत्य है, जिसमें भगवान शिव अपने डमरू की ताल पर जटाओं से झरते जल के साथ नृत्य करते हैं। यह नृत्य संसार के चक्र को नियंत्रित करता है—सृजन, संरक्षण, विनाश, और पुनः सृजन। शिव के इस तांडव में ब्रह्माण्ड का संपूर्ण संतुलन छुपा है।
नटराज के पैरों के नीचे कौन है?
भगवान शिव के नटराज स्वरूप में उनकी एक विशेष मुद्रा होती है, जिसमें वे एक पैर से नृत्य कर रहे होते हैं और दूसरे पैर से एक आकृति को दबाए हुए होते हैं। यह आकृति ‘अपस्मार’ या ‘मूर्खता’ के रूप में जाना जाता है। अपस्मार का अर्थ है अज्ञानता, माया, और मत्तता। यह दर्शाता है कि शिवजी नृत्य करते हुए मूर्खता और अज्ञानता को नष्ट कर रहे हैं।
नटराज के पैरों के नीचे दबाया गया यह ‘अपस्मार’ symbolizes मानव मन के अंदर छिपी अज्ञानता और भ्रम को। शिव के इस क्रियाकलाप से यह सन्देश मिलता है कि ज्ञान और विवेक की शक्ति अज्ञानता को परास्त करती है। नटराज का यह रूप यह भी बताता है कि भगवान शिव ही वे हैं जो इस दुनिया के भ्रम, माया, और अंधकार को मिटाकर उजाले और सत्य का मार्ग दिखाते हैं।
तांडव और जीवन का गहरा संदेश
शिव तांडव केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि जीवन और ब्रह्मांड के चक्र का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि विनाश के बिना सृजन संभव नहीं, और अज्ञानता के अंत के बिना ज्ञान का उदय नहीं। शिव का तांडव हमें परिवर्तन और संतुलन की महत्ता का बोध कराता है। जीवन में कठिनाइयों और बदलावों को स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए।
निष्कर्ष
भगवान शिव का तांडव नृत्य उनके विराट रूप, शक्ति, और ब्रह्माण्डीय कार्यों का प्रतीक है। उनके पैरों के नीचे दबाया गया ‘अपस्मार’ हमें यह सिखाता है कि अज्ञानता पर विजय ही सच्चे ज्ञान की शुरुआत है। नटराज का यह रूप हमें जीवन में जागरूकता, विवेक और आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देता है।
इसलिए शिव तांडव और नटराज के इस रहस्यमय रूप को समझना हमारे लिए केवल धार्मिक श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि एक गहरा दार्शनिक और आध्यात्मिक अनुभव भी है।