महाभारत सिर्फ युद्ध की गाथा नहीं, बल्कि इसमें छिपी कहानियां भारतीय समाज, संस्कृति और जीवन मूल्यों की गहराई को दर्शाती हैं। ऐसी ही एक अनसुनी, किंतु बेहद महत्वपूर्ण कथा है अर्जुन के किन्नर पुत्र अरावन और श्रीकृष्ण से जुड़ी। इस कथा में श्रीकृष्ण ने एक ऐसा कार्य किया, जो आज भी समाज के कई रूढ़ विचारों को चुनौती देता है। आइए जानें — क्यों श्रीकृष्ण ने स्वयं विवाह किया अर्जुन के किन्नर पुत्र से?
कौन थे अरावन?
महाभारत के अनुसार, अरावन अर्जुन और नाग कन्या उलूपी के पुत्र थे। उलूपी, नाग वंश की राजकुमारी थीं, और उन्होंने अर्जुन से विवाह किया था जब अर्जुन वनवास के दौरान उत्तर दिशा में गए थे। इस विवाह से अरावन का जन्म हुआ। अरावन बेहद शक्तिशाली, साहसी और नीतिवान योद्धा थे। उनका पालन-पोषण नागलोक में हुआ, लेकिन युद्ध की आहट सुनकर वे कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों की सहायता के लिए आए।
युद्ध से पहले मांगा गया बलिदान
जब महाभारत युद्ध की तैयारियां चल रही थीं, तब कौरवों और पांडवों दोनों पक्षों ने कई देवी-देवताओं की पूजा और यज्ञ किए। इसी दौरान देवी काली को प्रसन्न करने के लिए एक बलिदान की आवश्यकता पड़ी, जिसमें किसी श्रेष्ठ और निडर योद्धा को अपने प्राण देने थे।
कोई भी योद्धा इसके लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि यह बलिदान मृत्यु का निश्चित आमंत्रण था। ऐसे समय में अरावन ने स्वयं आगे बढ़कर यह बलिदान देने की घोषणा की, जिससे देवी प्रसन्न हो सकें और पांडवों को विजय प्राप्त हो।
विवाह की अनोखी शर्त
हालांकि अरावन ने बलिदान देने की स्वीकृति दी, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा, “मैं अपना बलिदान अवश्य दूंगा, लेकिन उससे पहले मेरी इच्छा है कि मैं विवाह करूं, ताकि मुझे भी एक सामान्य मानव की तरह जीवन का वह अनुभव प्राप्त हो।”
यह एक बड़ी समस्या बन गई। कोई भी कन्या एक दिन के लिए विवाह कर विधवा बनने को तैयार नहीं थी। सभी राजाओं और राजकुमारियों ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। समाज में यह सोच गहरी थी कि कोई स्त्री एक दिन की पत्नी बनकर विधवा क्यों बने?
श्रीकृष्ण ने निभाई पत्नी की भूमिका
जब किसी भी कन्या ने विवाह की स्वीकृति नहीं दी, तब श्रीकृष्ण ने समाज की सीमाओं को तोड़ते हुए स्वयं मोहिनी रूप धारण किया। मोहिनी एक अद्भुत सौंदर्य वाली स्त्री के रूप में जानी जाती हैं — श्रीकृष्ण का स्त्री स्वरूप।
मोहिनी रूप में श्रीकृष्ण ने अरावन से विवाह किया, उन्हें वह मान और प्रेम दिया जो एक पत्नी अपने पति को देती है। विवाह के अगले दिन अरावन ने देवी काली के लिए बलिदान दिया। उसके बलिदान से देवी प्रसन्न हुईं और पांडवों को युद्ध में विजय का आशीर्वाद मिला।
अरावन की पूजा आज भी होती है
अरावन की यह गाथा भारत के कई हिस्सों में विशेषकर तमिलनाडु के कोवगम में आज भी जीवित है। यहां हर वर्ष किन्नर समुदाय (हिजड़ा समुदाय) अरावन के प्रतीक से विवाह करते हैं और अगले दिन विधवा के रूप में शोक मनाते हैं। यह किन्नर समुदाय के अधिकार, सम्मान और अस्तित्व को मान्यता देने का एक पवित्र पर्व बन गया है।
श्रीकृष्ण का संदेश
श्रीकृष्ण ने यह विवाह केवल अरावन की इच्छा पूरी करने के लिए नहीं किया, बल्कि यह दर्शाने के लिए किया कि प्रेम, सम्मान और अधिकार किसी भी व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है — चाहे वह स्त्री हो, पुरुष या फिर किन्नर। उनका यह कार्य हमें यह भी सिखाता है कि ईश्वर किसी भी रूप में स्वीकार करते हैं — भक्ति, समर्पण और सच्चाई से।
निष्कर्ष
अरावन और श्रीकृष्ण की यह कथा आज के समाज के लिए एक दर्पण है। यह बताती है कि हमारी परंपराओं में भी समावेशिता, समानता और मानवता की जड़ें गहरी रही हैं। श्रीकृष्ण ने अरावन से विवाह कर न केवल एक यज्ञ पूर्ण किया, बल्कि मानव समाज को यह सिखाया कि किसी के अस्तित्व को छोटा नहीं आंका जा सकता। यही है श्रीकृष्ण की दिव्यता और यही है महाभारत की अप्रतिम गहराई।