नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर्स, कॉमेडियनों और यूट्यूबरों को चेतावनी दी कि यदि उन्होंने दिव्यांगजनों का मज़ाक उड़ाया या उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाई, तो उन पर न केवल जुर्माना लगाया जाएगा बल्कि सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगनी होगी। यह आदेश तब आया जब लोकप्रिय यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया (Ranveer Allahbadia) और कॉमेडियन समय रैना पर दिव्यांगजनों पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करने का आरोप लगा।
मामला कैसे शुरू हुआ
यह विवाद तब सामने आया जब रणवीर अल्लाहबादिया के शो “India’s Got Latent” के एक एपिसोड में दिव्यांगजनों के प्रति अनुचित भाषा और संवेदनहीन टिप्पणियों का प्रयोग हुआ। वहीं, समय रैना पर आरोप है कि उन्होंने अपने दो वीडियोज़ में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से पीड़ित मरीजों और नेत्रहीन व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाया। Cure SMA Foundation ने इस मामले को अदालत में ले जाते हुए कहा कि इस तरह के क्लिप्स महज़ “एक बूँद” हैं, जबकि हकीकत में सोशल मीडिया पर दिव्यांगजनों को मज़ाक, दया या मनोरंजन का विषय बना देने की प्रवृत्ति बहुत गहरी है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान बेहद सख्त लहजा अपनाया। अदालत ने कहा:
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“इन्फ्लुएंसर्स को यह समझना होगा कि वाणिज्यिक भाषण (Commercial Speech) के साथ जिम्मेदारी भी आती है। किसी वर्ग का अपमान कर मनोरंजन करना स्वतंत्रता की श्रेणी में नहीं आता।”
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“आज दिव्यांगजनों पर अपमानजनक टिप्पणी हुई है, कल यह महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों या अन्य वर्गों के साथ भी हो सकता है। समाज को कहाँ ले जाएगा यह सिलसिला?”
जस्टिस जे. बागची ने कहा कि वाणिज्यिक भाषण को वैसी स्वतंत्रता नहीं मिल सकती जैसी मौलिक अधिकारों से जुड़ी स्वतंत्र अभिव्यक्ति को मिलती है। वहीं जस्टिस सूर्यकांत ने यह स्पष्ट किया कि “सज़ा उसी अनुपात में होनी चाहिए जितना नुकसान हुआ है। अन्यथा लोग बिना डर के अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते रहेंगे।”
मंत्रालय को गाइडलाइन्स बनाने का आदेश
अदालत ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय (I&B Ministry) को निर्देश दिया कि सोशल मीडिया पर इस्तेमाल होने वाली भाषा को लेकर व्यापक गाइडलाइन्स तैयार की जाएं।
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ये गाइडलाइन्स किसी एक घटना पर आधारित न होकर व्यापक और तकनीकी चुनौतियों को ध्यान में रखकर बनाई जाएं।
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मंत्रालय को राष्ट्रीय दिव्यांगजन कल्याण बोर्ड (NBDSA) और अन्य विशेषज्ञ संस्थाओं से परामर्श कर नियम बनाने को कहा गया।
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साथ ही अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे यूट्यूब को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है यदि वे अपमानजनक कंटेंट को होस्ट करते हैं।
कंटेंट क्रिएटर्स के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश
अदालत ने स्पष्ट किया कि रणवीर अल्लाहबादिया और समय रैना समेत सभी संबंधित कंटेंट क्रिएटर्स को—
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अपने यूट्यूब चैनलों और पॉडकास्ट्स पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी होगी।
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एक शपथपत्र (Affidavit) दाखिल करना होगा, जिसमें यह बताया जाए कि वे अपनी सोशल मीडिया पहुँच का उपयोग दिव्यांगजनों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने में कैसे करेंगे।
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अदालत आगे चलकर इन मामलों में आर्थिक दंड (Financial Penalty) पर भी विचार करेगी।
Cure SMA Foundation का पक्ष
फाउंडेशन ने अदालत से गुहार लगाई कि नियमों में दिव्यांगजनों की विशेष सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। फाउंडेशन ने यह भी बताया कि एक वीडियो में समय रैना ने मात्र दो माह के SMA मरीज, जिसे ₹16 करोड़ की जीवनरक्षक इंजेक्शन की जरूरत थी, पर भी टिप्पणी की थी। इसे फाउंडेशन ने अमानवीय और संवेदनहीन कहा।
अटॉर्नी जनरल और NBDSA का मत
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि सोशल मीडिया पर कंटेंट क्रिएटर्स अक्सर केवल फॉलोअर्स और एंगेजमेंट बढ़ाने के लिए अनुचित भाषा का इस्तेमाल करते हैं और नैतिक मूल्यों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। NBDSA के वकील ने बताया कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खिलाफ 4000 से अधिक शिकायतें निपटाई गई हैं, लेकिन पॉडकास्टर्स और ऑनलाइन इन्फ्लुएंसर्स के लिए कोई ठोस नियंत्रण प्रणाली नहीं है।
व्यापक असर और भविष्य की दिशा
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख न केवल दिव्यांगजनों की गरिमा की रक्षा करेगा बल्कि सोशल मीडिया पर बढ़ती असंवेदनशीलता और गैर-जिम्मेदार भाषण पर भी अंकुश लगाएगा। अदालत ने कहा कि यह सिर्फ दिव्यांगजनों का मामला नहीं बल्कि पूरे समाज की गरिमा का सवाल है। इस फैसले ने यह साफ संदेश दिया है कि ऑनलाइन स्वतंत्रता असीमित नहीं है। जब यह स्वतंत्रता किसी वर्ग का अपमान करने में बदल जाती है, तो राज्य और न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा।
सोशल मीडिया और डिजिटल युग में जहां एक वीडियो या पॉडकास्ट लाखों लोगों तक कुछ ही घंटों में पहुँच जाता है, वहाँ जिम्मेदारी और संवेदनशीलता और भी अहम हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि अब दिव्यांगजनों का मज़ाक उड़ाना मनोरंजन नहीं बल्कि दंडनीय अपराध माना जाएगा। रणवीर अल्लाहबादिया, समय रैना और अन्य इन्फ्लुएंसर्स को अब न सिर्फ सार्वजनिक माफी मांगनी होगी बल्कि भविष्य में अपने प्लेटफॉर्म्स का उपयोग जागरूकता फैलाने और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए करना होगा। यह फैसला आने वाले समय में सोशल मीडिया नियमन की दिशा तय करेगा और साथ ही उन करोड़ों दिव्यांगजनों के लिए आवाज़ और सम्मान की नई उम्मीद जगाएगा, जो अक्सर ऑनलाइन मज़ाक और भेदभाव का शिकार होते रहे हैं।ऑनलाइन मज़ाक और भेदभाव का शिकार होते रहे हैं।