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सिर्फ बॉक्स ऑफिस नहीं, कंटेंट के भी किंग हैं आमिर खान, क्या Sitare Zameen Par करवा पाएगी मिस्टर पर्फेक्शनिस्ट की दमदार वापसी ?

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बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान के लिए वो बड़ा मौका बस कुछ ही दिनों की दूरी पर है जिसका वो बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे। आमिर की नई फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म के साथ आमिर तीन साल बाद बड़े पर्दे पर वापसी करने जा रहे हैं।आमिर की पिछली रिलीज ‘लाल सिंह चड्ढा’ लॉकडाउन के बाद उनकी पहली रिलीज थी। ऑस्कर विजेता हॉलीवुड फिल्म की रीमेक होने के कारण इस फिल्म से काफी उम्मीदें थीं। लेकिन ये फिल्म बहुत बड़ी फ्लॉप साबित हुई। ‘लाल सिंह चड्ढा’ से पहले आमिर ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ में नजर आए थे और वो भी फ्लॉप रही थी।ये दोनों फिल्में न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं बल्कि जनता को इनमें आमिर खान फैक्टर की कमी भी नजर आई। और अब रिलीज होने जा रही ‘सितारे ज़मीन पर’ में भी जनता को ये आमिर खान फैक्टर भरपूर देखने को मिल रहा है। आइए आपको बताते हैं कि ये फैक्टर क्या है और क्यों बॉलीवुड के तीनों खानों में से आमिर को कंटेंट का खान कहा जाता है।

अभिनेता के तौर पर आमिर का रूपांतरण
1984 में आमिर ने केतन मेहता की होली में एक ऐसे किरदार में अभिनय की शुरुआत की जिसे किसी भी तरह से आम हीरो की भूमिका नहीं कहा जा सकता था। लेकिन कयामत से कयामत तक एक तरह से आमिर की सही शुरुआत थी। इस फिल्म की ब्लॉकबस्टर सफलता ने आमिर को चॉकलेट बॉय की छवि वाला रोमांटिक हीरो बना दिया।जहां उनकी डार्क गैंगस्टर ड्रामा राख (1989) तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने के बाद भी आम सिनेमा दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय नहीं हुई, वहीं दिल, दिल है कि मानता नहीं, हम हैं राही प्यार के और राजा हिंदुस्तानी जैसी फिल्में, जिनमें आमिर को रोमांटिक भूमिका या प्रेम कहानियों में लाया गया, हिट रहीं। एक अलग तरह की फिल्म होने के बावजूद, राम गोपाल वर्मा की रंगीला ने आमिर को एक प्रेमी की भूमिका में लाया और उनकी प्रेम कहानी कहानी का कथानक थी।

इस बीच, ‘सरफरोश’ वह फिल्म थी जिसने आमिर को एक गंभीर अभिनेता की छवि दी। यह उनकी फिल्मों की सूची में पहली फिल्म थी जो न केवल मनोरंजन परोस रही थी बल्कि अपने समय की सामाजिक चेतना भी रखती थी। यह फिल्म दर्शकों को न सिर्फ पर्दे पर कहानी देखने का आनंद दे रही थी बल्कि समाज के अंदर झांकने का संदेश भी दे रही थी। गंभीर-सामाजिक संदेश वाले सिनेमा और कमर्शियल फिल्म के बीच की बारीक रेखा को तलाशने में ‘सरफरोश’ काफी सफल साबित हुई, जो बाद में आमिर की फिल्मों की पहचान बन गई।

90 के दशक के आखिर में आमिर की फिल्म चॉइस में यह बदलाव दिखने लगा। हालांकि फिल्म बिजनेस भी एक गंभीर चीज है और शायद इसी कसौटी पर खरा उतरने के लिए आमिर बीच-बीच में उचित मसाला मनोरंजन फिल्मों का भी चयन कर रहे थे। लेकिन इसी दौर में आमिर ने मीरा नायर की ‘अर्थ’ (1999) भी की, जिसे एक आर्ट-हाउस फिल्म के तौर पर देखा गया। आमिर की ‘कुछ अलग’ करने की यही भूख नई सदी में एक अभिनेता के तौर पर उनके बदलाव का आधार बनी।

सुपरस्टार सिर्फ अपनी फिल्म का हीरो नहीं होता, वह फिल्म बिजनेस का ऐसा ताकतवर शख्स होता है जो अपने स्टारडम की ताकत से चुन सकता है कि सिनेमा के जरिए किस तरह की कहानियां लोगों के सामने पेश की जा सकती हैं। वर्ष 2000 में नई सहस्राब्दी की दहलीज पार करने के बाद आमिर ने कुछ नया करने की भूख को अपनी पहचान बना लिया। इसी भूख के साथ उन्होंने ऐसी कहानियों को चुनना शुरू किया, जिनका नायक दरअसल सिर्फ एक किरदार नहीं, बल्कि एक विचार था। एक ऐसा विचार जो समाज को प्रेरणा भी देता हो।

नई सहस्राब्दी में उनकी पहली फिल्म ‘लगान’ (2001) थी। इस फिल्म में आमिर का किरदार भुवन सिर्फ एक पुरानी सच्ची कहानी का नायक नहीं था, जो अंग्रेजों के सामने खड़ा था। वह एक ऐसे विचार का प्रतीक था, जो पूरे समाज के हित के लिए आपसी मतभेद मिटाने की बात करता था। एक बड़ी गलती के बावजूद भुवन ने अपने गांव के एक नकारात्मक किरदार लाखा को एक बार फिर मौका दिया। यह समाज के लिए एक संदेश था कि अपनों को साथ रखें।

‘लगान’ के बाद आमिर 2001 में ‘दिल चाहता है’ में नजर आए। नई सदी के साथ समाज में बहुत कुछ बदल रहा था। बदलाव की आंधी आ रही थी और ऐसे में खुद को महत्व देना, अपनी जरूरतों और खुद को एक्सप्लोर करना एक अहम विचार था। ‘दिल चाहता है’ इसी विचार पर आधारित फिल्म थी। एक ऐसी फिल्म जो लड़कों से मर्द बनते जा रहे पुरुषों के संकट को समझती है, एक ऐसी फिल्म जो दोस्ती, प्यार और रिश्तों को आधुनिक नजरिए से देखती है।

9 साल बाद लौट रहा है ‘आमिर खान फैक्टर’

‘सितार ज़मीन पर’ में ‘दंगल’ के 9 साल बाद आमिर एक ऐसी कहानी लेकर आ रहे हैं जिसमें वो सब कुछ है जो एक ‘आमिर खान फिल्म’ में माना जाता है। ‘सितार ज़मीन पर’ ऑटिज्म और डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की कहानी है, जो कभी-कभी किसी मेडिकल कंडीशन की वजह से थोड़े अलग दिख सकते हैं। या उनका व्यवहार थोड़ा अलग लग सकता है। चूंकि अधिकांश आबादी ने एक ही व्यवहार को पूरे समाज के लिए ‘सामान्य’ मान लिया है, इसलिए इन लोगों को ‘असामान्य’ कहा जाने लगा है।

जिस तरह ‘सितार ज़मीन पर’ ने यह संदेश दिया कि हर बच्चे का अपना ‘सामान्य’ होता है, उसी तरह ‘सितार ज़मीन पर’ भी इन लोगों के प्रति संवेदनशीलता की बात करती है। फिल्म में संदेश देने का माध्यम कॉमेडी और ड्रामा है। ‘दंगल’ की तरह आमिर खान खुद खलनायक का किरदार निभा रहे हैं, जिसके ज़रिए जनता अपना नज़रिया बदलना सीखेगी। ‘सितार ज़मीन पर’ के ट्रेलर को काफ़ी पसंद किया गया है और यह इस साल के सबसे बेहतरीन फ़िल्म ट्रेलर में से एक है। अब अगर दर्शक फिर से आमिर खान की किसी फ़िल्म को देखने के लिए सिनेमाघरों में आते हैं, तो आमिर 9 साल बाद बड़ी वापसी करेंगे।

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