संत कबीर दास जी की जयंती यानि कबीर जयंती उनकी जन्मस्थली ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह पर्व मानवता, समानता और आडंबर से ऊपर उठने के संदेश को याद करने का एक खास अवसर है। हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाई जाने वाली संत कबीरदास जयंती इस बार 10 या 11 जून को होने से कुछ लोगों में असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है। आइए जानते हैं पंचांग के अनुसार कबीर दास जयंती की सही तिथि और इसका महत्व।
2025 में ज्येष्ठ पूर्णिमा कब है?
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 10 जून 2025 को सुबह 11:35 बजे शुरू होगी। जो 11 जून को दोपहर 1:13 बजे समाप्त होगी। चूंकि कोई भी त्योहार उदया तिथि के अनुसार मनाया जाता है, इसलिए संत कबीरदास जयंती 11 जून को ही मनाई जाएगी।
संत कबीरदास 15वीं सदी के महान कवि, समाज सुधारक और संत थे। उनका जन्म वाराणसी के लहरतारा में हुआ था। उन्होंने अपने पदों और पदों दोनों के माध्यम से समाज में व्याप्त आडंबर, पाखंड और भेदभाव का खंडन किया। उन्होंने एकता, प्रेम, समानता और भाईचारे का संदेश दिया। कबीरदास जी ने मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा और कर्मकांड का विरोध किया और ईश्वर की प्रत्यक्ष भक्ति पर जोर दिया। उनका मानना था कि ईश्वर एक है और उसकी पूजा किसी भी रूप में की जा सकती है। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर समाज बनाने की प्रेरणा देते हैं।
संत कबीरदास जयंती का महत्व
संत कबीरदास जयंती कबीरदास जी के विचारों और शिक्षाओं को याद करने और उन्हें अपने जीवन में अपनाने का अवसर है। इस दिन पूरे देश में भजन, कीर्तन, प्रवचन और सत्संग सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोग कबीरदास जी के दोहे पढ़ते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि सच्चा धर्म प्रेम, करुणा और मानवता की सेवा में निहित है। हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और ऐसा समाज बनाना चाहिए जहां कोई भेदभाव न हो।