ओशो, जिनका असली नाम रजनीश था, आधुनिक समय के सबसे प्रभावशाली और विवादास्पद गुरुओं में से एक रहे हैं। उन्होंने जीवन, प्रेम, ध्यान और अस्तित्व के गहरे पहलुओं पर अपने विचार साझा किए। ओशो ने न केवल पश्चिमी दुनिया को आकर्षित किया, बल्कि भारतीय समाज में भी उनके विचारों ने गहरी छाप छोड़ी। उनके उपदेशों में अहंकार के बारे में विशेष रूप से उल्लेखनीय बातें हैं। ओशो का मानना था कि अहंकार मनुष्य की सबसे बड़ी बाधा है और यही वह कारण है जो इंसान की बर्बादी की कहानी लिखता है।
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अहंकार क्या है?
अहंकार का अर्थ केवल दूसरों से श्रेष्ठ महसूस करना या आत्ममुग्धता नहीं है। ओशो के अनुसार, अहंकार एक मानसिक स्थिति है, जो हमें अपने असली अस्तित्व से अलग कर देती है। यह एक नकली पहचान है जिसे हम अपने ‘मैं’ के रूप में अपनाते हैं। अहंकार खुद को दूसरों से ऊंचा या अलग मानने की भावना से पैदा होता है, और यह उस व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर ले जाता है। ओशो कहते थे, “अहंकार एक आवरण है, जो हम अपने असली स्वभाव के ऊपर ओढ़ लेते हैं।”अहंकार न केवल व्यक्तिगत सुख और शांति में बाधा डालता है, बल्कि यह सामाजिक रिश्तों में भी विकार उत्पन्न करता है। ओशो ने इसे एक तरह की मानसिक बीमारी बताया है, जिसमें व्यक्ति अपने ही भ्रम में खो जाता है और अपनी असलियत को नजरअंदाज करता है।
अहंकार की उत्पत्ति
ओशो के अनुसार, अहंकार का जन्म बचपन में होता है जब हम सामाजिक मान्यताओं और अपेक्षाओं को समझते हैं। बचपन में ही हम यह सीखते हैं कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। इससे हमारी मानसिकता पर असर पड़ता है, और हम अपने आप को अच्छे या बुरे के दायरे में बांध लेते हैं। इस प्रकार, हम एक पहचान बना लेते हैं जिसे हम अहंकार के रूप में विकसित करते हैं। यह पहचान हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अलग हैं, और इस सोच का परिणाम केवल मानसिक तनाव और आत्ममूल्य की कमी होती है।
ओशो ने उदाहरण दिया था कि अगर कोई व्यक्ति अपने बचपन में लगातार यह सुनता है कि वह ‘सर्वश्रेष्ठ’ है, तो वह बड़ा होकर खुद को दूसरों से अलग और बेहतर महसूस करने लगेगा। और अगर यह व्यक्ति कभी असफलता का सामना करता है, तो उसका अहंकार टूटता है और उसे गहरे मानसिक आघात का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार, अहंकार हमारी असली पहचान और आंतरिक शांति से हमें दूर कर देता है।
अहंकार और मनुष्य की बर्बादी
ओशो के अनुसार, अहंकार मनुष्य को आत्महत्या की ओर भी ले जा सकता है, न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी। जब व्यक्ति अपने अहंकार को पूरी तरह से अपने अस्तित्व का हिस्सा बना लेता है, तो वह अपनी असफलताओं और कमजोरियों को स्वीकार करने में असमर्थ हो जाता है। यह अहंकार उसे इस कदर अपनी गिरफ्त में ले लेता है कि वह अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है और दूसरों से हमेशा प्रतिस्पर्धा करने की मानसिकता अपनाता है।ओशो कहते थे, “अहंकार उस दरवाजे की तरह है, जो हमें अपने वास्तविक अस्तित्व से बाहर कर देता है। जब हम इस दरवाजे के अंदर रहते हैं, तो हम कभी भी खुद को ठीक से नहीं समझ सकते।” अहंकार की वजह से मनुष्य केवल दूसरों से भिन्न दिखने की कोशिश करता है, लेकिन वह इस कोशिश में अपनी असली खुशी और संतुष्टि को खो देता है। ओशो ने कहा कि जब अहंकार इतना गहरा हो जाता है कि व्यक्ति उसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानने लगता है, तो यही अहंकार उसकी बर्बादी की वजह बनता है।
अहंकार और रिश्ते
अहंकार न केवल व्यक्ति की मानसिकता को प्रभावित करता है, बल्कि इसके कारण रिश्तों में भी दरारें आ जाती हैं। ओशो का मानना था कि जब हम अपने अहंकार को रिश्तों में घुसने देते हैं, तो हम दूसरों से वास्तविक प्रेम और समझ की अपेक्षा नहीं कर पाते। रिश्ते केवल तभी सही होते हैं जब दोनों पक्ष अपने अहंकार को किनारे रखकर एक-दूसरे के साथ सच्चे भाव से जुड़ते हैं। ओशो कहते थे, “जब दो व्यक्तियों का अहंकार एक-दूसरे से भिड़ता है, तो प्यार की बजाय संघर्ष जन्म लेता है।”इसलिए, ओशो का सुझाव था कि हमें अपने अहंकार को पहचानना और उसे नियंत्रित करना चाहिए ताकि हम अपने रिश्तों को मजबूत बना सकें। अहंकार का भूत हर रिश्ते को नष्ट कर सकता है, क्योंकि यह हमें दूसरे व्यक्ति को समझने और स्वीकार करने की जगह खुद को सबसे ऊपर रखने के लिए प्रेरित करता है। ओशो का कहना था कि हम जो कुछ भी दूसरों से उम्मीद करते हैं, वह सब हमें अपने अंदर पहले विकसित करना चाहिए। जब हम अपने अहंकार को समाप्त करते हैं, तब हम दूसरों के साथ सच्चे और शुद्ध रिश्ते बना सकते हैं।
अहंकार और समाज
समाज में भी अहंकार का प्रभाव बहुत गहरा होता है। ओशो का मानना था कि आज के समाज में हर व्यक्ति अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता है, और यह पहचान आमतौर पर उसके आंतरिक स्वभाव से नहीं, बल्कि बाहरी प्रदर्शन से जुड़ी होती है। लोग दिखावा करते हैं, खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने के लिए संघर्ष करते हैं, और इस प्रक्रिया में वे अपने अस्तित्व के सबसे महत्वपूर्ण पहलू, यानी अपनी आंतरिक शांति और संतुलन, को खो देते हैं। समाज में फैले हुए अहंकार के इस माहौल में हम अपनी असली पहचान को भूल जाते हैं और केवल दिखावे की दुनिया में खो जाते हैं।
ओशो का समाधान
ओशो का सबसे महत्वपूर्ण समाधान था—ध्यान और आत्मचिंतन। ओशो के अनुसार, अगर व्यक्ति अपने अहंकार से छुटकारा पाना चाहता है, तो उसे अपने भीतर की शांति को महसूस करना होगा। ध्यान, ओशो के अनुसार, वह साधना है जो अहंकार को खत्म करने का सबसे प्रभावी तरीका है। जब हम खुद को समझते हैं और अपने भीतर की आवाज को सुनते हैं, तो हमें अहंकार की कोई आवश्यकता नहीं महसूस होती। ओशो ने ध्यान को ‘अहंकार के खत्म होने का तरीका’ कहा था। जब हम अपने अहंकार को त्यागकर अपने असली स्वरूप को पहचानते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बनाते हैं, बल्कि हम समाज और दुनिया के लिए भी एक सकारात्मक बदलाव लाते हैं।
निष्कर्ष
अहंकार एक मानसिक बंधन है जो मनुष्य को उसकी असली पहचान से दूर कर देता है। ओशो के विचारों के अनुसार, यह बंधन मनुष्य की बर्बादी की कहानी लिखता है। केवल जब हम अपने अहंकार को छोड़कर अपनी आंतरिक शांति और सच्चाई को पहचानते हैं, तब हम वास्तविक सुख और संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं। ओशो का जीवन और उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि अहंकार को छोड़कर ही हम जीवन में सच्ची स्वतंत्रता और शांति पा सकते हैं।