इंसान की सोच, उसके विचार और उसका नजरिया जीवन की दिशा तय करता है। ये विचार ही हैं जो हमें आत्मविश्वासी भी बनाते हैं और कभी-कभी अनजाने में अहंकारी भी। हाल के मनोवैज्ञानिक अध्ययनों और आध्यात्मिक सूत्रों से यह स्पष्ट होता है कि कुछ विशेष प्रकार के विचार इंसान को बहुत जल्दी अहंकार की ओर खींचते हैं। यह बदलाव इतना सूक्ष्म होता है कि व्यक्ति को खुद भी पता नहीं चलता कि वह आत्म-सम्मान से अहंकार की सीमा पार कर चुका है।
” style=”border: 0px; overflow: hidden”” title=”अहंकार का त्याग कैसे करें | ओशो के विचार | Osho Hindi Speech | अहंकार क्या है और इसे कैसे पराजित करे” width=”695″>
क्या है अहंकार?
अहंकार का अर्थ है – अपने अस्तित्व, ज्ञान, धन, रूप, शक्ति या पद का ऐसा भाव जो व्यक्ति को दूसरों से श्रेष्ठ और अलग समझने पर मजबूर कर दे। यह एक आंतरिक भ्रम होता है जो आत्ममूल्यांकन की जगह आत्म-प्रशंसा में बदल जाता है।अहंकार कोई एकाएक उत्पन्न होने वाली भावना नहीं है, बल्कि यह धीरे-धीरे हमारे कुछ विशेष विचारों के कारण पनपता है। आइए जानते हैं वे कौन से विचार हैं जो इंसान को सबसे पहले अहंकार की ओर आकर्षित करते हैं।
1. “मुझसे बेहतर कोई नहीं” – श्रेष्ठता की भावना
जब कोई व्यक्ति बार-बार यह सोचने लगता है कि “मैं सबसे अच्छा हूं”, “मेरे बिना कुछ नहीं हो सकता”, “मेरे जैसा कोई नहीं”, तो यह विचार धीरे-धीरे उसके भीतर अहंकार की नींव रखता है। यह भाव शुरुआत में आत्मविश्वास जैसा लगता है, लेकिन जब इसमें तुलना और दूसरों की तुच्छता का भाव जुड़ जाता है, तो यह अहंकार में बदल जाता है।
2. “मैंने सब कुछ खुद किया है” – सफलता का स्वामित्व
जब व्यक्ति अपनी उपलब्धियों का पूरा श्रेय खुद को देने लगता है और टीम, समय, भाग्य या सहयोग का महत्व नकार देता है, तब वह एक ‘स्व-अधिनायक’ मानसिकता का शिकार हो जाता है।यह सोच — कि “मेरी मेहनत के बिना कुछ भी नहीं होता” — धीरे-धीरे व्यक्ति को ऐसा बनाती है जो दूसरों की मेहनत, सुझाव और भागीदारी को महत्व देना बंद कर देता है।
3. “लोग मेरी बात क्यों नहीं मानते?” – नियंत्रित करने की प्रवृत्ति
कुछ लोग हर स्थिति में खुद को ‘सही’ मानते हैं और चाहते हैं कि सब उनकी ही बात मानें। इस सोच से उत्पन्न निराशा और गुस्सा, दरअसल अंदर छिपे अहंकार का लक्षण होता है। यह विचार जब किसी की सोच का हिस्सा बन जाता है, तो वह धीरे-धीरे दूसरों के दृष्टिकोण को तुच्छ मानने लगता है।
4. “मुझे किसी की ज़रूरत नहीं” – आत्मनिर्भरता से अलगाव तक
आत्मनिर्भर होना एक गुण है, लेकिन जब यह सोच इस स्तर तक पहुंच जाए कि व्यक्ति किसी के सुझाव, मार्गदर्शन या समर्थन को स्वीकार ही न करे, तब वह अहंकार के मकड़जाल में फँसने लगता है। “मैं अकेले सब कर सकता हूँ” – यह सोच दूसरों को दूर करने लगती है और व्यक्ति अकेलेपन व भ्रम में जीने लगता है।
5. “मेरा अपमान कैसे हुआ?” – असहिष्णुता और संवेदनशीलता का अभाव
जो व्यक्ति हर आलोचना या सलाह को अपमान मानने लगता है, उसमें अहंकार गहराई तक घर कर चुका होता है। आलोचना को आत्ममंथन का अवसर मानने के बजाय, उसे व्यक्तिगत आघात मानना, दरअसल अपने ‘अहम्’ को आहत होने से बचाना है। यह सोच इंसान को दूसरों की बातें सुनने, समझने और सुधारने की क्षमता से दूर कर देती है।
कैसे बचें इस मानसिक जाल से?
स्व-निरीक्षण (Self Reflection): प्रतिदिन कुछ समय अपने विचारों और कार्यों की समीक्षा करें। क्या मैं खुद को दूसरों से बेहतर मानता हूँ? क्या मैं सबकी बात सुन पाता हूँ?
आभार की भावना: जो कुछ भी हमें मिला है, उसके पीछे अनेक लोगों, हालात और ऊपरवाले का भी योगदान होता है। इसे समझना और महसूस करना अहंकार को दूर रखने में मदद करता है।
सीखने की प्रवृत्ति: हर किसी से कुछ सीखने का भाव रखें। ज्ञान का अहंकार सबसे खतरनाक होता है, क्योंकि वह सीखने की प्रक्रिया को रोक देता है।
संतुलन बनाए रखें: आत्मविश्वास और अहंकार के बीच एक पतली रेखा होती है। इस रेखा को पहचानना और संतुलित रहना आवश्यक है।
अहंकार तोड़ता है रिश्ते, आत्मिक विकास को रोकता है
अहंकार का सबसे पहला और बड़ा नुकसान हमारे रिश्तों में होता है। जब व्यक्ति में “मैं” का भाव अत्यधिक हो जाता है, तो वह दूसरों की भावनाओं, ज़रूरतों और अस्तित्व की कद्र करना छोड़ देता है। इससे व्यक्ति अकेला पड़ता है और उसका मानसिक संतुलन भी डगमगाने लगता है।आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अहंकार आत्मा के प्रकाश को ढक देता है। वह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की बजाय, उसे भ्रम और भौतिकता में उलझा देता है।
निष्कर्ष
विचारों की दिशा ही जीवन की दिशा होती है। यदि हमारे विचार विनम्रता, सहयोग, सीखने और आभार से जुड़े हों, तो अहंकार कभी पास नहीं आएगा। लेकिन जैसे ही हम अपने अस्तित्व को ही सबसे बड़ा मानने लगते हैं, हमारा पतन शुरू हो जाता है – चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक।इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने विचारों पर निगरानी रखें, उन्हें समय-समय पर जांचें और विनम्रता को जीवन का हिस्सा बनाएं।