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3 मिनट के इस वीडियो में Osho से जानिए ध्यान, प्रेम और समर्पण से कैसे होता है अहंकार का दमन ?

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आधुनिक जीवन की तेज़ रफ्तार, प्रतिस्पर्धा और ‘मैं’ की भावना से भरी दुनिया में अहंकार (Ego) न केवल हमारे रिश्तों को प्रभावित करता है, बल्कि आंतरिक शांति और आत्मविकास की राह में भी बड़ी बाधा बनकर उभरता है। दुनिया भर में चेतना और ध्यान के प्रतीक बन चुके आचार्य रजनीश उर्फ ओशो का मानना था कि अहंकार एक भ्रम है, एक बनावटी परत, जो हमारे असली स्वरूप को ढक लेती है।

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ओशो कहते हैं – “Ego is just an idea, it has no reality.”
तो फिर हम इस भ्रम को कैसे पहचानें और इससे कैसे मुक्ति पाएं? यह सवाल आज के समय में पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है, जब सोशल मीडिया, शो-ऑफ और दिखावे की संस्कृति हर व्यक्ति को ‘विशेष’ बनने के दबाव में जीने को मजबूर कर रही है।

अहंकार क्या है? ओशो की नजर से समझिए
ओशो के अनुसार अहंकार वो ‘मैं’ है जिसे हमने समाज, शिक्षा, धर्म और परिवार से ग्रहण किया है – एक झूठा आवरण। यह ‘मैं डॉक्टर हूँ’, ‘मैं अमीर हूँ’, ‘मैं सुंदर हूँ’, ‘मुझे सब पता है’ जैसे विचारों से बनता है। ओशो कहते हैं कि यह ‘मैं’ जब तक बना रहेगा, तब तक सच्ची आत्मा से संपर्क संभव नहीं है।
“When you drop the ego, the whole universe opens up for you.” – Osho

अहंकार का प्रभाव: संबंधों से लेकर आत्मा तक
रिश्तों में दूरी: अहंकार हमें झुकने नहीं देता, माफ नहीं करने देता। इससे हमारे संबंधों में खटास आ जाती है।

निरंतर असंतोष: अहंकारी व्यक्ति हमेशा खुद को श्रेष्ठ मानता है, और जब उसे वह सम्मान नहीं मिलता, तो वह दुखी और गुस्सैल हो जाता है।

आध्यात्मिक विकास में रुकावट: अहंकार हमें ‘पूर्ण’ होने का भ्रम देता है, जिससे हम आत्म-अन्वेषण की आवश्यकता ही महसूस नहीं करते।

ओशो के सुझाव: अहंकार से मुक्ति के उपाय
1. ध्यान (Meditation):
ओशो ध्यान को अहंकार से मुक्ति का सबसे सशक्त तरीका मानते हैं। ध्यान करने से हम अपने भीतर की शून्यता को महसूस करते हैं, जहां ‘मैं’ का कोई अस्तित्व नहीं होता।
“Meditation is the death of ego.”

2. साक्षी भाव (Witnessing):
अपने विचारों और भावनाओं को केवल एक दर्शक की तरह देखना, बिना प्रतिक्रिया के। जब आप अपने गुस्से या क्रोध को देख पा रहे होते हैं, तो आप अहंकार नहीं होते – आप साक्षी होते हैं।

3. हास्य और सरलता:
ओशो कहते हैं कि जीवन को गंभीरता से नहीं, खेल की तरह जियो। अहंकार हमेशा गंभीर होता है। हंसना, स्वयं पर भी हंस पाना – यह अहंकार को तोड़ने में सहायक होता है।

4. प्रेम में विलीन होना:
प्रेम वह अनुभव है जहां ‘मैं’ गल जाता है। सच्चा प्रेम बिना शर्त होता है, और वहां कोई अहंकार नहीं टिक सकता।

5. स्वीकृति और समर्पण:
अहंकार हमेशा नियंत्रित करना चाहता है, लेकिन समर्पण से हम अस्तित्व को स्वीकारते हैं। यह स्वीकार्यता ही अंततः हमें स्वतंत्र करती है।

आज के समय में ओशो की सीख क्यों ज़रूरी?
21वीं सदी का मनुष्य बाहरी उपलब्धियों के पीछे इतना दौड़ चुका है कि वह अपने अंदर झांकना भूल गया है। ‘Success’ आज का नया धर्म बन गया है, लेकिन इसकी कीमत पर हम मानसिक शांति, आत्मीय संबंध और संतुलन खो रहे हैं।
ओशो की सीखें इस भटकाव में एक दिशा देने वाली रोशनी की तरह हैं। वह हमें याद दिलाते हैं कि –”The real journey is not outward, but inward.”

निष्कर्ष: अहंकार को छोड़ना हार नहीं, मुक्ति है
अहंकार छोड़ना आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि आत्म-स्वीकृति है। यह कोई कमजोरी नहीं, बल्कि चेतना की परिपक्वता है। ओशो कहते हैं कि जब तुम अपने भीतर की सच्चाई से जुड़ जाते हो, तो बाहरी मान-सम्मान, लड़ाई और तुलना का कोई अर्थ नहीं रह जाता।आज के तनाव, भ्रम और अहं के युग में, ओशो की ये बातें न सिर्फ प्रासंगिक हैं बल्कि जीवन को सरल, सहज और सार्थक बनाने की कुंजी भी हैं।

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