अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% शुल्क लगाए जाने के बाद, भारत के प्रमुख निर्यात संगठनों ने आज भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की। इस बैठक में, निर्यातकों ने कारोबार को बचाने और इस अप्रत्याशित संकट से निपटने के लिए कई तरह की राहत और छूट की मांग की। उनकी मांगों में सबसे प्रमुख हैं ऋण भुगतान पर एक साल तक का मॉरेटोरियम, NPA मानदंडों में ढील और बिना किसी जुर्माने के ऋण की देय तिथि को आगे बढ़ाना।
निर्यातकों के संगठन फियो (FIEO) के महानिदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अजय सहाय ने बताया कि निर्यातकों की दो मुख्य मांगें हैं: एक, 50% शुल्क के सीधे असर से राहत, और दूसरा, निर्यातकों के लिए महत्वपूर्ण बैंकिंग मुद्दों का समाधान करना। अमेरिका ने 27 अगस्त, 2025 से भारत पर 50% का शुल्क लगाया है, जिससे भारतीय निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना बेहद मुश्किल हो गया है।
प्रमुख मांगें: ऋण और तरलता
निर्यातकों ने RBI से अपील की है कि उन्हें इस संकट से उबरने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए। उनकी मुख्य मांगों में शामिल हैं:
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ऋण भुगतान पर मॉरेटोरियम: निर्यातकों ने कम से कम एक वर्ष के लिए अपने मौजूदा ऋणों के मूलधन और ब्याज भुगतान पर स्थगन (moratorium) की मांग की है। उनका तर्क है कि इससे उन्हें अपनी कार्यप्रणाली को पुनर्गठित करने और नई बाजार रणनीतियों पर काम करने के लिए “सांस लेने की जगह” मिलेगी।
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NPA मानदंडों में ढील: निर्यातकों ने RBI से NPA (गैर-निष्पादित आस्तियाँ) मानदंडों में ढील देने का आग्रह किया है। उनका मानना है कि अमेरिकी शुल्क के कारण घटती कमाई से कई छोटे और मझोले उद्यम (MSME) डिफॉल्ट कर सकते हैं। NPA नियमों में ढील से उन्हें तत्काल दिवालिया होने से बचाया जा सकेगा।
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प्राथमिकता वाले क्षेत्र में उप-श्रेणी: निर्यातकों ने बैंकों से ऋण के प्रवाह को बढ़ाने के लिए “प्राथमिकता वाले ऋण क्षेत्र” (Priority Sector Lending) के तहत निर्यातकों के लिए एक उप-श्रेणी बनाने की मांग की है। उनका कहना है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में निर्यात का 20% से अधिक हिस्सा होने के बावजूद, इस क्षेत्र को बैंकों से पर्याप्त ऋण नहीं मिल पा रहा है।
भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद (EEPC) के चेयरमैन पंकज चड्ढा ने MSME के लिए विशेष ब्याज अनुदान योजना (interest subvention scheme) शुरू करने का भी अनुरोध किया, ताकि वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धी बने रह सकें।
विनिमय दर और सरकारी सहायता
एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा जो बैठक में उठाया गया, वह था रुपये की विनिमय दर (exchange rate)। निर्यातकों ने RBI से रुपये को स्वाभाविक रूप से गिरने देने की अपील की, जिससे वे अमेरिकी शुल्क से होने वाले नुकसान की कुछ हद तक भरपाई कर सकें। उनका तर्क है कि डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने के बावजूद, अन्य मुद्राओं के मुकाबले भी रुपया नरम हुआ है, जिससे उन्हें कोई खास फायदा नहीं हो रहा है।
सूत्रों के अनुसार, RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने निर्यातकों की चिंताओं को गंभीरता से सुना, लेकिन तत्काल किसी विशेष कार्रवाई के लिए प्रतिबद्धता नहीं जताई। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही संकेत दिया है कि सरकार अमेरिकी शुल्क से प्रभावित भारतीय निर्यातकों को समर्थन देने के लिए एक व्यापक पैकेज पर काम कर रही है। यह पैकेज संभवतः तरलता सहायता, रोजगार सुरक्षा और नए बाजारों में प्रवेश करने के लिए मदद पर केंद्रित होगा।
इस बैठक में फियो, सीआईआई, फिक्की, एसोचैम जैसे प्रमुख व्यापारिक संगठन शामिल थे। यह दिखाता है कि अमेरिकी शुल्क का प्रभाव काफी व्यापक है और सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों इस चुनौती से निपटने के लिए कदम उठा रहे हैं।