मानव जीवन में आत्म-सम्मान जितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अहंकार भी उतनी ही विनाशकारी भूमिका निभा सकता है। यह एक ऐसा मानसिक विकार है जो व्यक्ति की सोच, दृष्टिकोण और व्यवहार को भीतर से खोखला कर देता है। अक्सर, जैसे ही हम सफलता, ज्ञान, धन या शक्ति के शिखर पर पहुंचते हैं, हम खुद को श्रेष्ठ मानने लगते हैं। श्रेष्ठता का यह भ्रम धीरे-धीरे अहंकार का रूप ले लेता है – और जब तक हमें इसका एहसास होता है, तब तक बहुत कुछ हाथ से निकल चुका होता है। अहंकार न केवल दूसरों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि उस व्यक्ति को भी नुकसान पहुंचाता है जो इसके प्रभाव में सबसे अधिक होता है। आज इस लेख में हम जानेंगे कि अहंकार कैसे बर्बादी का कारण बनता है, इसके उदाहरण, प्रभाव और इससे बचने के उपाय।
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अहंकार बनाम आत्म-सम्मान: मूल अंतर को समझें
सबसे पहले, यह समझना जरूरी है कि आत्म-सम्मान और अहंकार में बहुत बड़ा अंतर है।
आत्म-सम्मान व्यक्ति को विनम्र बनाता है, आत्मविश्वास देता है और जीवन में प्रेरणा बनता है।
अहंकार व्यक्ति को अहंकारी, अंधा और जिद्दी बनाता है। जब हम खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगते हैं, उनकी भावनाओं को तुच्छ समझते हैं या खुद को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं – तो यह स्वाभिमान नहीं, बल्कि अहंकार है।
इतिहास से सीखें: अहंकार ने कैसे विनाश की कहानियाँ रचीं
रावण का पतन
रामायण का सबसे प्रसिद्ध पात्र रावण एक विद्वान ब्राह्मण, महान योद्धा और शिव का भक्त था। लेकिन जब उसके अंदर ‘मैं सबसे महान हूँ’ की भावना आई, तो उसने अहंकार में आकर सीता का हरण कर लिया और परिणामस्वरूप उसका विनाश हो गया। अगर रावण में थोड़ी भी विनम्रता होती, तो शायद आज भी लंका समृद्ध होती।
दुर्योधन की जिद और अहंकार
महाभारत में दुर्योधन के अहंकार और जिद के कारण पूरे कौरव वंश का नाश हो गया। श्री कृष्ण ने बार-बार समझाया, लेकिन अहंकार के अंधकार में डूबे दुर्योधन ने एक भी बात नहीं सुनी। और अंततः उसे अपना सब कुछ खोना पड़ा – राज्य, परिवार और जीवन।
हिटलर और तानाशाही अहंकार
इतिहास के पन्नों में एक आधुनिक उदाहरण हिटलर का है। उसकी तानाशाही सोच, श्रेष्ठता का अभिमान और नस्लवाद ने जर्मनी ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को युद्ध की आग में झोंक दिया। उसका अंत भी दुखद और अपमानजनक था।
वर्तमान जीवन में अहंकार के लक्षण और प्रभाव
निंदा और आलोचना बर्दाश्त न कर पाना – अहंकारी व्यक्ति आलोचना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकता। वह हर आलोचना को अपमान समझता है।
दूसरों को नीचा दिखाना – उसे लगता है कि वह सब कुछ जानता है, दूसरे उसके स्तर के नहीं हैं।
स्वीकार करने की क्षमता खोना – अगर उसकी गलती भी हो तो वह माफी नहीं मांगता और न ही दूसरों की सलाह मानता है।
अकेलापन – धीरे-धीरे रिश्ते खत्म हो जाते हैं, क्योंकि अहंकारी व्यक्ति के साथ रहना किसी को पसंद नहीं आता।
इन सबका नतीजा यह होता है कि व्यक्ति अंदर से खोखला हो जाता है। करियर, रिश्ते, सामाजिक स्थिति – सब कुछ प्रभावित होता है। लोग दूर चले जाते हैं, फैसले गलत साबित होते हैं और अंत में विनाश होता है।
अहंकार से छुटकारा पाने के उपाय
आत्मनिरीक्षण करें – हर दिन 10 मिनट खुद से बात करके देखें कि आपका व्यवहार किसी को दुख तो नहीं पहुंचा रहा है।
ध्यान – नियमित ध्यान करने से व्यक्ति का मन शांत होता है और अहंकार जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दूर होती हैं।
विनम्रता का अभ्यास करें – “मैं नहीं, बल्कि हम” की भावना अपनाएँ। दूसरों के विचारों को महत्व दें, भले ही वे आपके विचारों से छोटे हों।
सेवा और दान – जब हम दूसरों की सेवा करते हैं, तो विनम्रता हमारे अंदर स्वाभाविक रूप से आ जाती है।
धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें – भगवद गीता, उपनिषद, बौद्ध साहित्य या ओशो और संतों के वचन पढ़ें। ये अहंकार के जाल से बाहर निकलने में मदद करते हैं।
महापुरुषों के वचनों में अहंकार का सार
भगवद गीता में श्री कृष्ण कहते हैं:
“अहंकार, क्रोध, लोभ – ये नरक के तीन द्वार हैं। इनसे बचें।”
गौतम बुद्ध ने कहा:
“अहंकार के कारण ही मनुष्य सत्य को देखने में असमर्थ होता है।”
ओशो कहते हैं:
“जहाँ ‘मैं’ समाप्त होता है, वहाँ परम सत्य शुरू होता है।”