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सोनू निगम विवाद पर बोले प्रसून जोशी- एक-दूसरे को जोड़ने वाली ‘कड़ी’ है भाषा

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सोनू निगम के कर्नाटक विवाद ने हाल ही में काफी सुर्खियां बटोरी हैं, और इस पर अब केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष और प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस मामले में अपनी राय साझा करते हुए कहा कि भारतीय समाज में भाषा एक ऐसी कड़ी है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ती है, न कि बांटती है।

प्रसून जोशी ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान बताया कि भारत में सांस्कृतिक विविधता के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं और बोलियों का प्रचलन है, और ये भाषाएं ही हमें जोड़ने का काम करती हैं। जोशी का कहना था, “मुझे कभी नहीं लगा कि भाषाएं हमें बांटती हैं। मुझे लगता है कि भाषाएं हमें जोड़ती हैं। भारत एक ऐसा देश है, जहां विभिन्न भाषाएं हैं, और यह हमारी सबसे बड़ी ताकत है।”

उन्होंने इस बारे में अपने व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किए। प्रसून जोशी ने कहा, “मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि इस देश में मेरा जन्म हुआ, जहां इतनी भाषाएं हैं। जब मैं पैदा हुआ था, तो मैं कुमाऊंनी में बात करता था। बाद में मैंने हिंदी सीखी, फिर काम के लिए अंग्रेजी बोलने लगा और साथ ही बंगाली कविताओं से भी बहुत कुछ सीखा।” उनका मानना है कि यह विविधता ही भारतीय संस्कृति की खूबसूरती है और इसे हमें सहेजना चाहिए।

जोशी ने विशेष रूप से तमिल भाषा का जिक्र करते हुए कहा कि संगीतकार एआर रहमान ने तमिल कविता को एक नया आयाम दिया है। उन्होंने कहा, “रहमान के साथ काम करते हुए मैंने तमिल कविता को भी थोड़ा-बहुत समझना शुरू किया है। मुझे लगता है कि हमारे पास इतनी भाषाएं हैं, और हमें इन भाषाओं को लेकर विवादों में नहीं पड़ना चाहिए।”

जब प्रसून जोशी से गायक सोनू निगम के खिलाफ कर्नाटक में दर्ज एफआईआर और उससे जुड़ी विवादित टिप्पणियों पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मुझे इस विवाद के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, और मैंने इसे फॉलो भी नहीं किया है। मैं खुद को ऐसी चीजों से दूर रखता हूं, जो हमारे देश की विविधता में बाधा डालती हैं। मेरा मानना है कि हमारी विविधता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। हमें सभी को सकारात्मक रूप से एक-दूसरे से बात करनी चाहिए।”

प्रसून जोशी की यह प्रतिक्रिया भारतीय समाज में भाषा के महत्व और उसे लेकर उत्पन्न होने वाले विवादों को लेकर एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। उनका मानना है कि हमें अपनी सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को एक ताकत के रूप में देखना चाहिए, न कि इसे किसी विभाजन का कारण बनाना चाहिए।

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