अहंकार – यह शब्द जितना साधारण लगता है, उसका प्रभाव उतना ही गहरा और विनाशकारी होता है। ओशो रजनीश, जिनकी वाणी और विचारों ने पूरी दुनिया में चेतना की लहरें पैदा कीं, उन्होंने अहंकार को आत्म-विकास की राह में सबसे बड़ी रुकावट माना है। ओशो के अनुसार, अहंकार व्यक्ति को न केवल अंदर से खोखला करता है, बल्कि संबंध, समाज और आत्मा – तीनों स्तरों पर विनाश की नींव रखता है।इस लेख में हम ओशो की शिक्षाओं के आधार पर यह समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर अहंकार क्या है, यह कैसे जन्म लेता है, जीवन में इसे कैसे पहचाना जा सकता है और इससे मुक्ति का मार्ग क्या है।
” style=”border: 0px; overflow: hidden”” title=”अहंकार का त्याग कैसे करें | ओशो के विचार | Osho Hindi Speech | अहंकार क्या है और इसे कैसे पराजित करे” width=”695″>
अहंकार की परिभाषा: “वो जो तुम नहीं हो”
ओशो कहते हैं – “Ego is a false center.” यानी अहंकार एक झूठा केंद्र है। यह वह छवि है जो हम दूसरों की नजरों में खुद के बारे में बनाना चाहते हैं, या जो हमें बताया गया कि हम हैं। परंतु यह हमारी वास्तविकता नहीं होती।बचपन से ही समाज, परिवार, धर्म और शिक्षा प्रणाली हमें सिखाती है कि तुम खास हो, तुम सबसे बेहतर बनो, तुम्हें जीतना है, आगे बढ़ना है। यह प्रतिस्पर्धा धीरे-धीरे हमारे भीतर एक अलग अस्तित्व को जन्म देती है, जो हमारे “स्व” से अलग होता है – यही है अहंकार।
अहंकार कैसे बनता है विनाश का कारण?
संबंधों में दरार:
अहंकारी व्यक्ति हमेशा चाहता है कि वह सही हो, उसकी बात मानी जाए। यह भाव रिश्तों को विषाक्त बना देता है। ओशो कहते हैं, “जहां अहंकार होता है, वहां प्रेम नहीं रह सकता।”
सीखने की प्रवृत्ति का अंत:
अहंकार यह मानने नहीं देता कि हम गलत हो सकते हैं। इससे आत्म-विकास रुक जाता है। व्यक्ति भ्रमित होकर अपने ही बनाए भ्रम में जीने लगता है।
आत्मा से दूराव:
अहंकार बाहरी पहचान पर टिका होता है – जैसे पद, पैसा, प्रतिष्ठा। लेकिन आत्मा को जानने के लिए भीतर की ओर मुड़ना होता है, जहां अहंकार बाधा बनता है।
क्रोध, द्वेष और हिंसा को जन्म देता है:
जब अहंकार को चोट लगती है, तो मनुष्य क्रोधित हो जाता है, बदला चाहता है। यही भाव बड़े युद्धों, समाज में हिंसा और अशांति का कारण बनते हैं।
ओशो के अनुसार अहंकार की पहचान कैसे करें?
ओशो के मुताबिक अहंकार को पहचानना मुश्किल नहीं है – बस थोड़ा सचेत होने की ज़रूरत है। जैसे:
आप कब सबसे ज्यादा अपमानित महसूस करते हैं?
क्या आप हर समय खुद को साबित करना चाहते हैं?
क्या दूसरों की तारीफ़ से आप फूल जाते हैं और आलोचना से टूट जाते हैं?
यदि इन प्रश्नों के जवाब “हाँ” में हैं, तो समझिए अहंकार हावी है।
अहंकार से मुक्ति कैसे पाएँ? ओशो की दृष्टि से समाधान
ध्यान (Meditation):
ओशो का पहला और सबसे महत्वपूर्ण उत्तर है – ध्यान। ध्यान अहंकार को मिटाने की नहीं, उसे पार करने की प्रक्रिया है। जब आप मौन में बैठते हैं, तो धीरे-धीरे आपकी झूठी पहचानें गिरने लगती हैं और “जो शुद्ध आत्मा है” वह प्रकट होती है।
स्वीकृति (Acceptance):
ओशो कहते हैं – “तुम जैसे हो, वैसे ही खुद को स्वीकार करो।” न बेहतर बनने की दौड़, न किसी से तुलना। जब आप खुद को वैसे ही स्वीकार करते हैं, जैसे आप हैं – तब अहंकार की जड़ें कटने लगती हैं।
हास्य (Humor):
ओशो जीवन को एक लीला मानते थे – वह गंभीरता को अहंकार की खुराक कहते थे। हंसने की कला, खुद पर हँसना सीखना – ये अहंकार को हल्का कर देते हैं।
प्रेम और करुणा:
अहंकार “मैं” पर टिका होता है, जबकि प्रेम और करुणा “तुम” पर। जब आप सेवा, प्रेम और करुणा के भाव से कार्य करते हैं, तो धीरे-धीरे ‘मैं’ का दायरा सिकुड़ने लगता है।
अहंकार की जगह अगर शून्यता हो जाए तो?
ओशो कहते हैं – “Ego is the wall, nothingness is the door.”
जब आप खुद को खाली करते हैं – विचारों, छवियों, अपेक्षाओं से – तभी सच्चा अनुभव आता है। यह खालीपन डरावना हो सकता है, क्योंकि अहंकार से बंधे रहना सुरक्षित लगता है। लेकिन यही शून्यता आत्मज्ञान का द्वार है।