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जब जीवन में सब कुछ बिखर जाए तो रास्ते ही रास्ता बन जाते हैं, वीडियो में जाने बुरी यादों को भुलाने में ट्रेवलिंग कैसे है मददगार?

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कहते हैं, “समय सब कुछ ठीक कर देता है”, लेकिन जब बात बुरी यादों और गहरे ज़ख्मों की हो, तो केवल समय ही नहीं, माहौल, अनुभव और सोच का बदलाव भी ज़रूरी हो जाता है। ऐसे में ट्रेवलिंग यानी यात्रा, एक ऐसा प्रभावशाली माध्यम बनकर उभरी है, जो मानसिक पीड़ा और नकारात्मक सोच से छुटकारा पाने में अहम भूमिका निभा रही है।आज जब तनाव, ब्रेकअप, नौकरी छूटना, या किसी अपने को खोने जैसे अनुभव आम होते जा रहे हैं, लोग आत्म-संवेदना की तलाश में अलग-अलग उपाय अपना रहे हैं। इसी कड़ी में ट्रेवलिंग एक ऐसा तरीका बन चुका है जिसे लोग न सिर्फ घूमने-फिरने के लिए, बल्कि खुद को “रीसेट” करने के लिए भी अपनाने लगे हैं।

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ट्रेवलिंग क्यों देती है मानसिक सुकून?
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई इंसान दुखद अनुभव से गुजरता है, तो उसका मन एक बंद कमरे की तरह हो जाता है — घुटन भरा, अंधेरा और एक ही सोच में उलझा हुआ। ऐसे में यात्रा उसे एक नई खिड़की खोलने का अवसर देती है। नए स्थान, नए लोग, नई भाषा और अलग संस्कृति व्यक्ति के सोचने के तरीके को व्यापक बनाते हैं।डॉ. श्रुति माथुर, एक मनोवैज्ञानिक, कहती हैं, “जब हम किसी नये स्थान पर जाते हैं, तो हमारे दिमाग में डोपामीन और एंडोर्फिन जैसे ‘हैप्पी हार्मोन्स’ रिलीज होते हैं, जो तनाव को कम करते हैं और हमें सकारात्मक महसूस कराते हैं।”

ब्रेन रीवायरिंग का असर
यात्रा का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि यह हमारे मस्तिष्क को ‘रीवायर’ करने में मदद करता है। एक ही तरह की दिनचर्या और यादें हमारे सोचने के तरीके को जकड़ लेती हैं। लेकिन जैसे ही आप पहाड़ों, समुद्र तटों या ऐतिहासिक जगहों पर जाते हैं, आपका मन अतीत से हटकर वर्तमान को महसूस करने लगता है। इससे बुरी यादें धीरे-धीरे पीछे छूटने लगती हैं।

खुद से जुड़ने का माध्यम
ट्रेवलिंग केवल एक भौगोलिक बदलाव नहीं है, यह आत्म-खोज का सफर भी होता है। जब आप अकेले या किसी करीबी के साथ ट्रैवल करते हैं, तो आप अपने विचारों और भावनाओं को बेहतर तरीके से समझते हैं। आप खुद से सवाल करते हैं और जवाब भी ढूंढने लगते हैं।पुष्कर के निवासी अमन मिश्रा, जिन्होंने अपने जीवन में एक कठिन ब्रेकअप का अनुभव किया, बताते हैं, “मैं बहुत टूट गया था। फिर मैंने अकेले ऋषिकेश की यात्रा की। गंगा आरती के दौरान जो शांति मैंने महसूस की, उसने मुझे खुद से मिलवा दिया।”

सोशल मीडिया और ट्रेवलिंग
आधुनिक युग में जहां सोशल मीडिया हर चीज़ का हिस्सा है, ट्रेवलिंग का अनुभव भी इंस्टाग्राम और यूट्यूब के ज़रिये साझा किया जा रहा है। कई लोग अपने ट्रैवल व्लॉग के माध्यम से दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं कि कैसे यात्रा ने उनकी ज़िंदगी में एक नई रोशनी दी। इससे उन लोगों को भी हिम्मत मिलती है जो मानसिक तनाव में फंसे हैं।

बजट फ्रेंडली ट्रेवल का विकल्प
अगर आप सोचते हैं कि ट्रेवलिंग महंगी होती है, तो यह पूरी तरह सही नहीं है। भारत में कई ऐसे स्थान हैं जो बजट में घूमे जा सकते हैं — जैसे कि कसौली, मैक्लोडगंज, पुष्कर, वाराणसी, और हम्पी। आप चाहें तो बैकपैकिंग करके भी यात्रा का अनुभव ले सकते हैं।

कब और कैसे करें ट्रैवल?
यदि आप किसी दुखद अनुभव से गुजर रहे हैं और मानसिक रूप से थकान महसूस कर रहे हैं, तो निम्नलिखित तरीके अपनाकर ट्रेवल को अपनाया जा सकता है:

शुरुआत नज़दीकी जगहों से करें
प्रकृति से जुड़ी जगहें चुनें जैसे पहाड़, झीलें या जंगल
अकेले या किसी विश्वस्त दोस्त के साथ यात्रा करें
डिजिटल डिटॉक्स अपनाएं — यात्रा के दौरान फोन का कम उपयोग करें
डायरी में यात्रा के अनुभवों को लिखें

ट्रेवलिंग थैरेपी बन रही है नया ट्रेंड
आजकल कई थेरेपिस्ट ट्रेवलिंग को ‘सपोर्टिव थैरेपी’ के रूप में अपनाने की सलाह देते हैं। कुछ काउंसलिंग फर्म तो ट्रैवल-बेस्ड हीलिंग प्रोग्राम भी चला रही हैं, जहां लोग ग्रुप में ट्रैवल करते हैं और अपनी भावनाओं को साझा करते हैं। यह सोशल कनेक्शन को भी बढ़ाता है।

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