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अहंकार में अंधा व्यक्ति क्यों लेने लगता है गलत फैसले ? 2 मिनट के वायरल वीडियो में जानिए इससे बचने के उपाय

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मनुष्य की प्रकृति जटिल है। वह जितना अधिक सीखता है, उतना ही स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगता है। यहीं से शुरू होती है एक ऐसी मानसिक अवस्था, जिसे हम ‘अहंकार’ कहते हैं। यह अहंकार धीरे-धीरे उसकी सोच, निर्णय और व्यवहार को प्रभावित करने लगता है। इतिहास, धर्म, दर्शन और मनोविज्ञान – सभी इस बात की गवाही देते हैं कि जब अहंकार मनुष्य के विवेक पर हावी हो जाता है, तो वह अपने ही विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है।

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अहंकार की शुरुआत: आत्मविश्वास या भ्रम?

प्रारंभ में अहंकार आत्मविश्वास जैसा प्रतीत होता है। व्यक्ति को लगता है कि वह अपने अनुभवों, ज्ञान या उपलब्धियों के कारण दूसरों से श्रेष्ठ है। धीरे-धीरे यह भावना उसे अलग-थलग कर देती है। वह दूसरों की सलाह, आलोचना या सुझावों को नजरअंदाज करने लगता है। उसे लगता है कि वही सही है, वही सक्षम है और बाकी सभी उसके मुकाबले तुच्छ हैं। यही भ्रम उसके फैसलों को गलत दिशा में मोड़ देता है।

गलत फैसलों की चेन: जब तर्क पर भावनाएं भारी हो जाएं
अहंकारी व्यक्ति तर्क और तथ्यों की तुलना में अपनी भावना और अहम को अधिक महत्व देता है। वह निर्णय लेते समय दूसरों की आवश्यकता, सामाजिक परिप्रेक्ष्य या दीर्घकालिक परिणामों को नजरअंदाज कर देता है। वह केवल अपने “इगो” की संतुष्टि के लिए फैसले लेने लगता है – चाहे वह व्यापार में हो, रिश्तों में या सत्ता के क्षेत्र में। यही कारण है कि ऐसे फैसले अक्सर आत्मघाती सिद्ध होते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण: अहंकार का अंत विनाश ही होता है
हिंदू धर्म में अहंकार को “अहं भाव” कहा गया है और इसे पांच प्रमुख दोषों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) में गिना गया है। रावण, कंस, दुर्योधन जैसे अनेक पात्र इसके उदाहरण हैं। रावण के पास अद्भुत विद्या, शक्ति और समृद्धि थी, लेकिन अहंकार ने उसे सीता हरण जैसे फैसले की ओर धकेला और अंततः लंका के साथ उसका भी नाश हुआ।

श्रीमद्भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:
“अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः, मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।”
(अर्थ: जो अहंकार, बल, घमंड, काम और क्रोध में डूबे हुए हैं, वे परमात्मा को और दूसरों को अपमान की दृष्टि से देखते हैं।)

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अहंकार क्यों अंधा बना देता है?
मनोविज्ञान के अनुसार, अहंकार व्यक्ति की आत्म-छवि को बनावटी रूप से बड़ा करता है। जब कोई उसे चुनौती देता है या सुधारने की कोशिश करता है, तो वह उसे व्यक्तिगत अपमान मानता है। यह रक्षात्मक प्रवृत्ति उसे सच्चाई स्वीकार करने से रोकती है। परिणामस्वरूप वह अपनी ही बनाई “अहम् की दीवार” के भीतर कैद होकर गलतियों की पुनरावृत्ति करता है।अक्सर यह देखा गया है कि अहंकारी व्यक्ति अपने आस-पास ऐसे लोगों को रखना पसंद करता है जो केवल उसकी हां में हां मिलाएं। ऐसे माहौल में सच्चाई का दर्पण दिखाने वाला कोई नहीं होता और व्यक्ति अपने ही फैसलों के जाल में फंसता चला जाता है।

आधुनिक उदाहरण: लीडरशिप और गिरावट
राजनीति, कॉर्पोरेट और फिल्मी दुनिया में भी ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ किसी व्यक्ति का अतिआत्मविश्वास और अहंकार उसकी सफलता को गिरावट में बदल देता है। जब एक नेता अपने सलाहकारों को अनसुना करने लगे, जब एक बिजनेस टायकून बाजार की सच्चाइयों को नजरअंदाज कर केवल अपनी सोच को सर्वोपरि माने, या जब एक कलाकार आलोचना सहने के बजाय विरोध करने लगे — तब नकारात्मक परिणाम निश्चित हैं।Elon Musk, Steve Jobs, जैसे सफल लोगों ने भी यह स्वीकारा है कि शुरुआती समय में उनके कई फैसले अहंकार से प्रेरित थे, और जब उन्होंने विनम्रता से टीमवर्क को अपनाया, तब जाकर वे वास्तविक सफलता के मार्ग पर आए।

अहंकार से बचने का एकमात्र उपाय है – विनम्रता और आत्मचिंतन। जो व्यक्ति स्वयं की आलोचना स्वीकार कर सकता है, जो गलतियों से सीख सकता है, वही आगे बढ़ता है। श्रीराम, भगवान बुद्ध, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों का जीवन इस सत्य की पुष्टि करता है।विनम्रता का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति स्वयं को कमजोर माने, बल्कि यह है कि वह यह समझे कि ज्ञान और निर्णय किसी एक व्यक्ति की बपौती नहीं हैं। जब तक हम दूसरों से सीखने को तैयार नहीं होंगे, तब तक हम पूर्ण नहीं बन सकते।

अहंकार एक ऐसा दर्पण है जो व्यक्ति को स्वयं की वास्तविकता से दूर कर देता है। जब मनुष्य अपने अहम को सर्वोपरि मानने लगता है, तब वह न सिर्फ दूसरों से कटने लगता है, बल्कि अपने ही आत्मविकास के मार्ग को भी अवरुद्ध कर देता है। इसलिए हर व्यक्ति को समय-समय पर आत्ममंथन करना चाहिए, अपने फैसलों की जांच करनी चाहिए और विनम्रता का अभ्यास करना चाहिए।

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