मानव जीवन की सबसे सूक्ष्म लेकिन घातक प्रवृत्तियों में से एक है — अहंकार। यह एक ऐसा भाव है, जो न केवल हमारे संबंधों को प्रभावित करता है बल्कि आत्मविकास के मार्ग को भी अवरुद्ध कर देता है। आधुनिक समय में जब आत्मप्रशंसा और ‘मैं’ का भाव सामाजिक मंचों से लेकर व्यक्तिगत सोच तक हावी होता जा रहा है, तब यह प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है कि अहंकार क्या है, और इसे कैसे पराजित किया जाए?
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अहंकार की पहचान: यह है क्या?
संस्कृत में ‘अहं’ का अर्थ होता है “मैं”। जब यह ‘मैं’ की भावना सीमा लांघकर दूसरों को तुच्छ समझने लगे, तो वह अहंकार कहलाता है। यह एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति स्वयं को सर्वोपरि समझने लगता है और दूसरों की उपलब्धियों या विचारों को महत्वहीन मानता है। चाहे वह ज्ञान का क्षेत्र हो, धन, रूप, शक्ति या पद — अहंकार हर रूप में आकार ले सकता है।मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि अहंकार आत्मरक्षा की एक प्रक्रिया है। जब व्यक्ति अंदर से असुरक्षित होता है, तो वह बाहर से खुद को बड़ा दिखाकर अपने आत्मबल को बनाए रखने की कोशिश करता है। लेकिन धीरे-धीरे यही सुरक्षा कवच घातक भ्रम बन जाता है।
अहंकार के दुष्परिणाम: संबंधों में दरार, आत्मविकास में रुकावट
अहंकार का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि यह व्यक्ति को सुनना बंद करवा देता है। वह केवल खुद की बातों में यकीन करता है और दूसरों की सलाह, आलोचना या मार्गदर्शन को नकार देता है। यह स्थिति व्यक्ति को अकेलेपन की ओर धकेलती है। संबंधों में कटुता, कार्यस्थल पर विवाद और मानसिक तनाव – ये सभी अहंकार के उपजाए हुए फल हैं।आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अहंकार ही माया है, जो आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर कर देती है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – “अहंकारम बलं दर्पं कामं क्रोधं च संसिताः”, अर्थात जो अहंकार और क्रोध से ग्रसित हैं, वे विनाश की ओर अग्रसर होते हैं।
अहंकार बनाम आत्मसम्मान: अंतर समझना है आवश्यक
कई बार लोग अहंकार और आत्मसम्मान को एक जैसा समझ बैठते हैं। जबकि इन दोनों में बुनियादी अंतर है। आत्मसम्मान वह भावना है जो खुद के प्रति विश्वास और स्वीकृति को जन्म देती है। जबकि अहंकार दूसरों को दबाकर खुद को ऊपर दिखाने की प्रवृत्ति है। आत्मसम्मान में नम्रता होती है, जबकि अहंकार में घमंड।
अहंकार को पराजित कैसे करें?
1. आत्मनिरीक्षण करें:
हर दिन खुद से सवाल करें – “क्या मैं दूसरों को नीचा दिखा रहा हूं? क्या मेरी बातों में दूसरों की अनदेखी हो रही है?” यह आत्मचिंतन अहंकार की जड़ों को कमजोर करता है।
2. विनम्रता को अपनाएं:
विनम्रता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि यह एक गहन आंतरिक शक्ति है। जब आप किसी से सहमत नहीं होते हुए भी उसकी बात को सुनते हैं और आदर देते हैं, तब आप अहंकार से ऊपर उठते हैं।
3. दूसरों की सफलता का सम्मान करें:
अपने से छोटे या समान स्तर के लोगों की उपलब्धियों को खुले दिल से सराहें। जब आप प्रशंसा देना सीखते हैं, तो आपके भीतर का अहंकार पिघलने लगता है।
4. आध्यात्मिक अभ्यास करें:
ध्यान, प्रार्थना और सत्संग जैसे अभ्यास आत्मचेतना को बढ़ाते हैं और अहंकार को कमजोर करते हैं। जब व्यक्ति यह समझने लगता है कि वह इस ब्रह्मांड का केंद्र नहीं है, बल्कि उसका एक अंश है — तब विनम्रता स्वतः आ जाती है।
5. सेवा का भाव विकसित करें:
जब आप बिना स्वार्थ के दूसरों की मदद करते हैं, तो ‘मैं’ की भावना धीरे-धीरे ‘हम’ में बदल जाती है। यही अहंकार पर सबसे बड़ा प्रहार है।
धार्मिक उदाहरण और प्रेरणा
भगवान राम, श्रीकृष्ण, महावीर, बुद्ध और संतों की परंपरा में विनम्रता और अहंकार-त्याग सबसे महत्वपूर्ण मूल्य रहे हैं। रावण जैसे ज्ञानी, बलशाली और विद्वान व्यक्ति का पतन केवल अहंकार के कारण हुआ। वहीं हनुमान जैसे महान योद्धा को आज भी पूजा जाता है क्योंकि उन्होंने अपना सारा सामर्थ्य प्रभु की सेवा में समर्पित कर दिया — बिना किसी अहंकार के।
अहंकार एक अदृश्य लेकिन प्रभावशाली बाधा है, जो व्यक्ति को अपनी ही श्रेष्ठता के भ्रम में कैद कर लेता है। लेकिन जैसे ही व्यक्ति भीतर झांकता है, विनम्रता और सेवा को अपनाता है, वह इस मानसिक कैद से मुक्त हो सकता है। आज के तेज़ और प्रदर्शन प्रधान युग में, यदि हम अहंकार को पहचान कर उससे ऊपर उठ सकें, तो न केवल व्यक्तिगत सुख बढ़ेगा बल्कि सामाजिक समरसता भी स्थापित होगी।