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आख़िर अहंकार में मनुष्य क्यों लेने लगता है गलत फैसले ? वीडियो में जाने कैसे ‘मैं’ की भावना बनती है पतन का कारण

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मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत उसका विवेक है, और उसकी सबसे बड़ी कमजोरी उसका अहंकार। इतिहास, धर्मग्रंथ और वर्तमान समाज सभी यह प्रमाणित करते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, तो वह सही और गलत के बीच की रेखा को मिटा देता है। उसका आत्मविश्वास धीरे-धीरे अंधे अहंकार में बदल जाता है और वह निर्णय क्षमता खो बैठता है। नतीजा – वह ऐसे फैसले लेने लगता है जो अंततः उसे पतन की ओर ले जाते हैं। प्रश्न उठता है – ऐसा क्यों होता है?

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अहंकार क्या है?
अहंकार (Ego) एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति स्वयं को अत्यधिक महत्वपूर्ण समझने लगता है। वह अपने ज्ञान, शक्ति, धन, पद या प्रसिद्धि के मद में चूर होकर यह मान लेता है कि वह हर स्थिति को नियंत्रित कर सकता है और उसे किसी की आवश्यकता नहीं है। यह अहसास धीरे-धीरे उसकी सोचने-समझने की क्षमता को कुंद कर देता है।

निर्णय लेने की क्षमता पर असर
जब व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, तो वह दूसरों की राय को महत्व नहीं देता। उसे लगता है कि उसकी सोच ही अंतिम और सही है। वह आलोचना को अपमान समझता है और प्रशंसा को अधिकार। यही कारण है कि वह अपने निर्णयों की समीक्षा नहीं करता, गलती स्वीकार नहीं करता और एकतरफा फैसले लेने लगता है।उदाहरणस्वरूप, कई बड़े नेता, राजा, उद्योगपति और यहां तक कि सामान्य लोग भी, जब अहंकार के प्रभाव में आते हैं, तो वे सलाह लेने से कतराते हैं और उस रास्ते पर चल पड़ते हैं जो उन्हें अंततः विफलता की ओर ले जाता है।

पौराणिक दृष्टिकोण
भारतीय धर्मग्रंथों में अहंकार के कारण हुए पतन के कई उदाहरण मिलते हैं। रावण, जो अत्यंत ज्ञानी, शक्तिशाली और शिवभक्त था, अपने अहंकार के कारण राम से युद्ध में मारा गया। उसने सीता का हरण कर यह मान लिया कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। लेकिन यही निर्णय उसके संपूर्ण वंश के विनाश का कारण बना।
इसी तरह दुर्योधन, जो सत्ता और अधिकार के मद में पागल था, उसने धर्म और नीति की बात को नकारा और अंततः महाभारत जैसे भीषण युद्ध में सब कुछ खो दिया। ये कथाएं केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी हमें यह सिखाती हैं कि अहंकार दृष्टि को संकुचित कर देता है।

आधुनिक समाज में अहंकार का प्रभाव
आज के समय में भी हम यह देख सकते हैं कि कैसे लोग अपने छोटे-छोटे अहं को बचाने के लिए बड़े फैसले ले बैठते हैं – नौकरी छोड़ देना, संबंध तोड़ लेना, झूठे मुकदमे करना या अनावश्यक प्रतिस्पर्धा में उतर जाना।कभी-कभी माता-पिता बच्चों से यह अपेक्षा करते हैं कि वह हमेशा उनकी कही बात माने, और जब ऐसा नहीं होता तो उनके रिश्तों में दरार आ जाती है। ऑफिस में एक बॉस अपने अधीनस्थ की योग्य राय को इसीलिए नकार देता है क्योंकि उसे लगता है कि उसकी ‘पोजीशन’ पर कोई सवाल नहीं उठा सकता।

मनोवैज्ञानिक कारण
मनोविज्ञान के अनुसार, अहंकार व्यक्ति की “सेल्फ-इमेज” से जुड़ा होता है। जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी छवि खतरे में है, तो वह उस छवि को बचाने के लिए आक्रामक या ज़िद्दी निर्णय लेने लगता है। उसे लगता है कि यदि वह पीछे हटा, तो वह कमजोर माना जाएगा।यही कारण है कि कई बार इंसान बहस में हारना तो स्वीकार करता है, पर सच्चाई स्वीकार नहीं कर पाता।

समाधान क्या है?
इससे उबरने का पहला कदम है आत्मचिंतन। व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि विनम्रता कमजोरी नहीं होती, बल्कि शक्ति का उच्चतम रूप होती है। जिस प्रकार नदी हमेशा नीचे बहती है, परंतु समंदर में जाकर मिलती है, उसी प्रकार विनम्रता इंसान को बड़ा बनाती है।इसके अलावा, योग, ध्यान और आत्मअन्वेषण से भी अहंकार को कम किया जा सकता है। यह अभ्यास व्यक्ति को अपने “सच्चे स्वरूप” से जोड़ता है और बाहरी मान-सम्मान की अपेक्षा को कम करता है।

अहंकार एक ऐसा जहर है जो मीठा लग सकता है, लेकिन धीरे-धीरे सोच, संबंध और निर्णय क्षमता को नष्ट कर देता है। जब भी व्यक्ति अपने अस्तित्व को दूसरों से ऊपर समझने लगे और आलोचना से भागने लगे, तो समझिए कि विनाश की ओर पहला कदम रख दिया गया है।सच्चा बुद्धिमान वही है जो अपनी सीमाओं को पहचाने, सलाह को सुने और समय रहते अहंकार को त्याग कर विवेक से मार्ग चुने। यही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है – स्वयं को जानकर स्वयं को संभालना।

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