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जब Sanjay Dutt ने पिता से कहा- ‘मेरी रगों में मुस्लिम खून है’, ऐसा था सुनील दत्त का रिएक्शन

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6 जून, एक ऐसा दिन जब हिंदी सिनेमा को वो शख्स मिला, जिसने न सिर्फ अपने अभिनय से बल्कि अपने इंसानी सोच से भी लाखों दिलों को जीता—सुनील दत्त। आज उनकी जयंती पर आइए जानते हैं उस अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और नेता की कहानी, जिसने अपने जीवन के हर पहलू में इंसानियत को प्राथमिकता दी।

1955 से शुरू हुआ था सफर, ‘रेल्वे प्लेटफॉर्म’ बनी पहली फिल्म

सुनील दत्त ने 1955 में फिल्म रेल्वे प्लेटफॉर्म से अपने करियर की शुरुआत की थी। निर्देशक रमेश सहगल की इस फिल्म से भले ही बॉक्स ऑफिस को ज्यादा फायदा न हुआ हो, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को एक ऐसा नगीना मिल गया था, जिसने आने वाले दशकों में खुद को एक मजबूत कलाकार के तौर पर स्थापित किया।

‘मदर इंडिया’ से छा गए सुनील दत्त

साल 1957 में जब मदर इंडिया रिलीज़ हुई, तब सुनील दत्त घर-घर में पहचाने जाने लगे। फिल्म में उन्होंने बिरजू का किरदार निभाया, जो उनकी अब तक की सबसे यादगार भूमिकाओं में से एक रही। इस फिल्म में उनके साथ नरगिस मुख्य भूमिका में थीं। यह वही फिल्म थी, जिसने सुनील दत्त और नरगिस को न सिर्फ पर्दे पर, बल्कि असल जिंदगी में भी करीब ला दिया। एक बार मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान सेट पर आग लग गई थी, और सुनील दत्त ने अपनी जान जोखिम में डालकर नरगिस को बचाया। यही वह पल था, जब दोनों के बीच का रिश्ता सिर्फ साथ काम करने का नहीं रहा, बल्कि जिंदगीभर का साथ बन गया।

जब धर्म पर हुआ सवाल, सुनील दत्त ने दिया इंसानियत भरा जवाब

मदर इंडिया की रिलीज के लगभग एक साल बाद, 1958 में सुनील दत्त और नरगिस ने शादी कर ली। लेकिन उनकी शादी को लेकर एक सवाल हमेशा उठता रहा—“आप दोनों का धर्म अलग है, तो आपके बच्चों का धर्म क्या होगा?” इस पर सुनील दत्त का जवाब आज भी इंसानियत की मिसाल माना जाता है। “मेरे बच्चे हिंदू या मुस्लिम नहीं, इंसान की औलाद होंगे।” यह वाक्य सिर्फ एक जवाब नहीं, बल्कि एक सोच थी, जो सुनील दत्त की जिंदगी और आदर्शों को दर्शाती है। उन्होंने यह साफ कर दिया कि धर्म इंसान को नहीं बांटता, बल्कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।

दत्त परिवार और बॉलीवुड की विरासत

सुनील दत्त और नरगिस के तीन बच्चे हुए—प्रिया दत्त, नम्रता दत्त और संजय दत्त। बेटा संजय दत्त, जिनका नाम आज ‘संजू बाबा’ के तौर पर जाना जाता है, ने 1981 में रॉकी फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की, जिसे खुद सुनील दत्त ने निर्देशित किया था। संजय के करियर की शुरुआत ही पिता की छांव में हुई। उनके जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आई हों, सुनील दत्त हमेशा उनके साथ खड़े रहे—एक पिता की तरह, एक दोस्त की तरह, और एक मार्गदर्शक की तरह।

मुन्नाभाई एमबीबीएस: जब बाप-बेटे एक साथ आए

2003 में आई मुन्नाभाई एमबीबीएस सुनील दत्त की आखिरी फिल्मों में से एक रही। इस फिल्म में उन्होंने संजय दत्त के पिता की भूमिका निभाई। पर्दे पर बाप-बेटे को पहली बार साथ देखना दर्शकों के लिए बेहद भावुक पल था। खास बात ये थी कि जो रिश्ता पर्दे पर दिखा, वो ही सच्चाई में उनके बीच मौजूद था—प्यार, विश्वास और गर्व का रिश्ता।

सिर्फ अभिनेता नहीं, समाजसेवी भी थे सुनील दत्त

फिल्मों के अलावा सुनील दत्त का एक और पहलू था, जिसे लोग कम जानते हैं—उनकी समाजसेवा और राजनीतिक यात्रा। वे कांग्रेस पार्टी से सांसद बने और मनुष्य संसाधन मंत्री भी रहे। उन्होंने मुंबई दंगों के बाद शांति यात्रा निकाली, जिसमें उन्होंने दंगों से प्रभावित इलाकों में जाकर लोगों को एकजुटता का संदेश दिया।

निष्कर्ष: सुनील दत्त की विरासत आज भी जिंदा है

सुनील दत्त भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, उनके सिद्धांत और उनका जीवन आज भी प्रेरणा देता है। वह अभिनेता थे, नेता थे, पर सबसे पहले एक बेहद अच्छे इंसान थे। उनका वह जवाब—“मेरे बच्चे इंसान की औलाद होंगे”—आज के समाज के लिए भी एक सीख है। जब धर्म के नाम पर दीवारें खड़ी की जाती हैं, तब सुनील दत्त की सोच उस दीवार को तोड़ने का काम करती है। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं। अगर

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