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गंगा भी पाप धोने आती हैं इस नदी में! जानिए कहां और क्यों?

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भारत की दो पवित्र नदियां—मां गंगा और मां नर्मदा—के जलधाराएं मात्र नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं। जहां गंगा को मोक्षदायिनी नदी कहा जाता है, वहीं नर्मदा को जीवन दायिनी के रूप में पूजा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि गंगा नदी खुद नर्मदा में स्नान करने आती हैं?

यह कोई कल्पना या मिथक नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के सागर-नरसिंहपुर बॉर्डर पर स्थित बरमान घाट पर सदियों से प्रचलित एक पौराणिक मान्यता है। हर साल हजारों श्रद्धालु इस मान्यता को गंगा सप्तमी से लेकर गंगा दशहरा तक जीवंत करते हैं और यहां आस्था के साथ स्नान, पूजा-अर्चना करते हैं।

बरमान घाट: ब्रह्मा की तपोभूमि

बरमान घाट केवल एक घाट नहीं, बल्कि यह ब्रह्मा जी की तपोस्थली मानी जाती है। इसे ब्रह्मांड घाट भी कहा जाता है। इस पवित्र स्थल पर स्नान करने का एक विशेष धार्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यहां स्नान करने से व्यक्ति एक साथ मां गंगा और मां नर्मदा दोनों नदियों के पुण्य का लाभ प्राप्त करता है।

स्थानीय विद्वान पंडित बृजेश कुमार मिश्रा बताते हैं कि गंगा सप्तमी के दिन मां गंगा नर्मदा नदी से मिलने बरमान घाट आती हैं और गंगा दशहरा तक वहीं रहती हैं। इस दौरान वे नर्मदा में स्नान कर अपने ऊपर चढ़े श्रद्धालुओं के पापों को धोती हैं।

गंगा का पापों का भार

लोकमानस में प्रचलित है कि लाखों लोग गंगा नदी में स्नान कर अपने पापों से मुक्त होते हैं, लेकिन मां गंगा स्वयं उन पापों का भार लेकर नर्मदा नदी में स्नान करने आती हैं ताकि वह पाप का बोझ हल्का हो सके। यह भावना श्रद्धालुओं के मन में गहरी आस्था का कारण बनती है और उन्हें अपनी आध्यात्मिक सफाई के लिए इस पवित्र स्थल की ओर आकर्षित करती है।

गंगा दशहरा पर श्रद्धालुओं की भीड़

गंगा सप्तमी से गंगा दशहरा तक का यह धार्मिक पर्व विशेष महत्त्व रखता है। गंगा दशहरा के दिन नर्मदा नदी में स्नान करने का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। यही वजह है कि हर साल गंगा दशहरा के अवसर पर बरमान घाट पर भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। वे यहां न केवल स्नान करते हैं, बल्कि दान-पुण्य और विशेष पूजा-अर्चना भी करते हैं।

बरमान घाट पर न केवल धार्मिक क्रियाकलाप होते हैं, बल्कि यह स्थान आध्यात्मिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी माना जाता है। भक्तगण यहां आकर अपने मन की शांति, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

निष्कर्ष

मां गंगा और मां नर्मदा के इस पावन संगम की कथा केवल एक धार्मिक विश्वास नहीं, बल्कि लोगों की आस्था और जीवन की आध्यात्मिक यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बरमान घाट की यह प्राचीन परंपरा हमें याद दिलाती है कि नदी मात्र जल का प्रवाह नहीं, बल्कि संस्कृतियों, विश्वासों और भावनाओं का संगम भी होती है।

यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु न केवल अपनी आस्था की पुष्टि करते हैं, बल्कि अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए भी इस पवित्र जल में स्नान कर जीवन के नए सिरे से आरंभ की प्रेरणा लेते हैं।

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