प्यार एक ऐसी भावना है जो इंसान को दुनिया की सबसे खूबसूरत ऊंचाइयों पर ले जा सकती है, और कभी-कभी सबसे गहरी चोट भी दे सकती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अक्सर लोग उन्हीं से सबसे ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं, जो उन्हें सबसे अधिक दर्द देते हैं। यह प्रश्न जितना सरल लगता है, उसका उत्तर उतना ही जटिल, गहराई भरा और व्यक्तिगत अनुभवों से जुड़ा हुआ है।
प्यार और दर्द का गहरा रिश्ता
कई लोग यह अनुभव करते हैं कि वे बार-बार ऐसे लोगों की ओर खिंचते हैं जो भावनात्मक रूप से अनुपलब्ध होते हैं, जिन्होंने उन्हें ठुकराया हो या जिन्होंने उन्हें पीड़ा दी हो। इस प्रवृत्ति के पीछे केवल इमोशनल वीकनेस नहीं, बल्कि गहरे मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं।
1. बीते बचपन के अनुभवों की छाया
मनोविश्लेषकों के अनुसार, बचपन के अनुभव हमारी भावनात्मक पसंद-नापसंद को काफी हद तक आकार देते हैं। अगर किसी व्यक्ति ने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में उपेक्षा, अस्वीकृति या अस्थिर प्रेम का अनुभव किया हो, तो वह अनजाने में उसी पैटर्न को दोहराने लगता है। जब कोई उसे नजरअंदाज करता है या प्रेम में अस्थिरता दिखाता है, तो उसे ऐसा लगता है मानो वह बचपन के अधूरे रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहा हो।
2. डोपामिन और भावनात्मक उत्तेजना
जब हमें दर्द होता है, तब भी हमारे शरीर में डोपामिन (एक फील-गुड हार्मोन) रिलीज़ होता है। यही हार्मोन प्यार में खुशी देने का भी काम करता है। जब कोई हमें बार-बार ठुकराता है, तो उस व्यक्ति से जुड़ी अस्थिरता और अनिश्चितता हमारे मस्तिष्क में डोपामिन को अनियमित रूप से रिलीज़ करती है, जिससे हम उसके प्रति और अधिक आकर्षित होने लगते हैं। इसे “emotional addiction” कहा जा सकता है।
3. ‘प्यार पाना’ बन जाता है ‘अचीवमेंट’
जब कोई हमें प्यार नहीं देता, तब उसका प्यार पाना हमारे लिए एक लक्ष्य या चुनौती बन जाता है। ये मन में एक तरह की प्रतियोगिता उत्पन्न करता है – जैसे कि खुद को यह साबित करना कि “मैं उसके प्यार के काबिल हूँ।” इस मानसिकता में इंसान यह भूल जाता है कि प्यार मांगने की नहीं, मिलने की चीज है।
4. कम आत्म-सम्मान की भूमिका
कई बार जब व्यक्ति के आत्म-सम्मान में कमी होती है, तो वह ऐसे संबंधों में फंसता है जहां उसे बार-बार नीचा दिखाया जाता है या तकलीफ दी जाती है। वह सोचता है कि शायद यही वह प्यार है जिसका वह हकदार है। यह सोच धीरे-धीरे उसे विषाक्त संबंधों में बनाए रखती है।
5. फिल्मों और समाज का प्रभाव
फिल्मों, धारावाहिकों और साहित्य में “टॉक्सिक रिलेशनशिप” को कभी-कभी रोमांटिक और आदर्श प्रेम की तरह प्रस्तुत किया जाता है। समाज भी उस दर्द को ‘सच्चे प्यार की निशानी’ मानने लगता है। इससे व्यक्ति यह मान लेता है कि जिस रिश्ते में संघर्ष और आंसू न हों, वह सच्चा नहीं हो सकता।
क्यों यह चक्र तोड़ना ज़रूरी है?
किसी ऐसे व्यक्ति से जुड़े रहना जो आपको बार-बार तोड़ता है, न केवल आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि आपके आत्म-सम्मान, करियर और अन्य संबंधों को भी नष्ट कर सकता है।सच्चा प्यार आपको संपूर्ण बनाता है, न कि अधूरा। यह आपको शांति देता है, असुरक्षा नहीं। अगर कोई रिश्ता आपको बार-बार चोट पहुंचा रहा है, तो यह समय है खुद से पूछने का – क्या मैं अपने आपसे प्यार करता/करती हूँ? क्योंकि जब तक आप खुद को प्यार नहीं करेंगे, तब तक आप उन लोगों को अनुमति देते रहेंगे जो आपको केवल दर्द देते हैं।
कैसे पहचानें और खुद को बचाएं?
Self-awareness बढ़ाएं – क्या आप बार-बार उन्हीं तरह के लोगों की ओर आकर्षित होते हैं?
Boundaries बनाएं – किसी के भी प्यार में अपने आत्म-सम्मान को न खोएं।
थेरेपी या काउंसलिंग लें – अगर आप एक ही पैटर्न में फंसे हैं तो मनोचिकित्सक की मदद ज़रूर लें।
खुद से सवाल पूछें – क्या यह प्यार मुझे खुशी देता है या दुख?
Toxicity को पहचानें और छोड़ना सीखें – दर्द में रहकर सच्चा प्रेम नहीं मिलता।
हम उन लोगों से प्यार क्यों करते हैं जो हमें सबसे ज्यादा दर्द देते हैं – इसका उत्तर हमारी भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक संरचनाओं में छिपा होता है। लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि प्रेम कोई पीड़ा नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान और शांति की भावना है। यदि किसी रिश्ते में बार-बार दर्द हो रहा है, तो उसे ‘किस्मत’ मानकर झेलते रहना आत्मा के साथ अन्याय है। खुद को समझिए, खुद से प्रेम करिए – तब जाकर आप सही व्यक्ति को पहचान सकेंगे, जो आपको सच्चे प्रेम और सम्मान से भर देगा।