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AI क्या सच में इंसानों जैसी भाषा समझता है? न्यूरोसाइंटिस्ट का दावा सुनकर दंग रह जाएंगे आप

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क्या आपने कभी सोचा है कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) वाकई इंसान की भाषा, भावनाओं और उनके द्वारा कहे गए शब्दों के पीछे छिपे अर्थ को समझ सकता है? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट वीना डी. द्विवेदी का मानना ​​है कि AI चाहे जितना भी विकसित हो जाए, यह कभी भी इंसान जैसी समझ हासिल नहीं कर सकता।

समझने का क्या मतलब है?

जब हम कहते हैं कि AI भाषा समझता है, तो इसका वास्तव में क्या मतलब होता है? नोबेल पुरस्कार विजेता और AI के क्षेत्र में अग्रणी जेफ्री हिंटन ने खुद स्वीकार किया कि न्यूरल नेटवर्क भाषा को समझने में तेज़ी से सक्षम होते जा रहे हैं, और यह भी कहा कि शायद वे वास्तव में “जानते हैं कि वे क्या कह रहे हैं”। लेकिन क्या सिर्फ़ सटीक उत्तर या सुंदर वाक्य बनाना ही समझ कहलाता है? भाषा के अलावा, इंसान भाव, लहजे, हाव-भाव और संदर्भ से भी अर्थ निकालता है। जबकि AI सिर्फ़ डेटा में पैटर्न खोजता है, उसके पास न तो अनुभव होता है और न ही भावनाएँ।

संदर्भ ही सबसे ज़्यादा मायने रखता है
मान लीजिए कोई कहता है, “चलो बात करते हैं।” अगर आपका बॉस मीटिंग के बाद ऐसा कहता है तो यह तनाव हो सकता है, अगर कोई दोस्त रात में ऐसा कहता है तो यह चिंता या समर्थन हो सकता है और अगर आपका साथी ऐसा कहता है तो यह प्यार या बहस हो सकती है। शब्द समान हैं, लेकिन उनका अर्थ पूरी तरह से संदर्भ पर निर्भर करता है। मनुष्य इन बारीकियों को आसानी से समझ लेता है, लेकिन AI इन भावनात्मक परतों को नहीं समझ सकता।

लिखित भाषा ही सब कुछ नहीं है
ब्रॉक यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस की प्रोफेसर वीना द्विवेदी कहती हैं कि लिखित भाषा को ही असली भाषा मान लेना बहुत बड़ी गलती है। उदाहरण के लिए, हिंदी और उर्दू बोलने में लगभग एक जैसी हैं, लेकिन लिखने पर बिल्कुल अलग दिखती हैं। यही हाल सर्बियाई और क्रोएशियाई भाषाओं का भी है। AI सिर्फ़ टेक्स्ट पढ़ सकता है, लेकिन वह इंसानों की तरह भाषा को जी नहीं सकता।

मनुष्य और AI में अंतर
महान भाषाविद् नोम चोम्स्की ने कहा था कि मनुष्य किसी भी भाषा को सीखने की जन्मजात क्षमता के साथ पैदा होता है। लेकिन आज भी विज्ञान इस समझ को पूरी तरह से हल नहीं कर पाया है। जबकि AI के “न्यूरल नेटवर्क” सिर्फ़ गणनाओं और एल्गोरिदम का खेल हैं, उनमें न तो सोचने की शक्ति है और न ही महसूस करने की।

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